मौलिक अधिकारों का प्रस्ताव
26 जनवरी 1930 को संपूर्ण आजादी का प्रस्ताव पारित करने के बाद रावी तट पर इसी तिरंगे की कसम ली गई थी। भगत सिंह और उनके साथियों ने ये स्पष्टता मांगी थी कि संपूर्ण आजादी से आम मेहनतकश लोगों को क्या मिलेगा? इस पर 26 मार्च 1931 को कराची अधिवेशन में सामाजिक मूल्यों को परिभाषित कर तिरंगे को कौमी झंडे की मान्यता दी गई। मौलिक अधिकारों का प्रस्ताव पारित कर भरोसा दिया गया कि मौलिक अधिकारों की स्थापना से यह मूल्य हर नागरिक तक पहुंचाए जाएंगे।
मूल्यों का संकल्प
इसी तिरंगे के अधीन देश के नौजवानों ने 9 अगस्त 1942 को अगस्त क्रांति में अपनी आहुतियां दी थीं। आजाद हिंद फौज के गठन पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने इन्हीं मूल्यों के संकल्प पर तिरंगे को अपनाया था। 1946 में जब भारतीय नौसेना ने बगावत की और जवान हड़ताल पर चले गए, तब भी भारतीय एकता के प्रतीक के रूप में यही तिरंगा फहराया गया था।
तिरंगे के यही हैं तीन मूल्य
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय स्थापित करने के लिए तिरंगे के तीनों मूल्यों को लेकर वर्ष 1950 में भारतीय संविधान की प्रस्तावना में स्पष्ट उल्लेख किया गया है।
1- स्वतंत्रता: विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की आजादी।
2- समानता: प्रतिष्ठा और अवसर की समानता।
3- भाईचारा: व्यक्ति की गरिमा, राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए भाईचारा।
कहीं ये सफर बदल तो नहीं रहा?
वक्त सोचने का है। कहीं हमारे तिरंगे का सफर बदल तो नहीं रहा? संवैधानिक तिरंगा स्वदेशी की अवधारणा को मजबूती देता है। उसकी भावना लाखों हाथों को रोजगार देने की है। वर्तमान में जो धनी कॉर्पोरेट मशीनरी से बना तिरंगा है, हमें उसका ग्राहक बनाकर हमारी ऐतिहासिक भावनाओं और विचारों पर गहरी चोट तो नहीं की जा रही? आप तिरंगा तो जरूर उठाएं, पर इसके तीन मूल्यों स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा को याद रखते हुए उठाएं। यह सवाल भी जरूर करें कि यह स्वदेशी तिरंगा है या कॉर्पोरेट (पूजीपतियों) का बना तिरंगा?