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Janmashtami 2023: ‘मां यशोदा’ से सीखनी चाहिए ये 7 बातें, कैसे दें अपने बच्चे को अच्छे संस्कार ?

Janmashtami 2023: मां यशोदा को अपने पुत्र कान्हा से प्राणों से भी अधिक प्रेम था, जब कान्हा पर कोई संकट आता तो मां यशोदा की चेतना भी चली जाती। फिर कान्हा को वापस पाने पर ही मां यशोदा में चेतना का संचार होता। ऐसा था वात्सल्यमयी यशोदा का अपने पुत्र श्रीकृष्ण के लिए प्रेम। लेकिन लाड़-प्यार के साथ ही कान्हा की गलतियों की सजा देने में मां यशोदा जरा भी संकोच नहीं करती थी।

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Janmashtami 2023

मां यशोदा ने श्रीकृष्ण को साधारण बालक जान संस्कारों का पाठ पढ़ाया। असल में माता-पिता की दी गई शिक्षा और संस्कार ही बच्चे के कर्मों का मोल है। माता-पिता अपनी संतानों का जैसा चरित्र बनाते हैं वैसा ही उनका भविष्य बनता है। लेकिन कुछ माता-पिता बच्चे का भविष्य सुरक्षित करने की चिंता में चरित्र का निर्माण करना भूल जाते हैं। इसलिए मां यशोदा की तरह हर मां-पिता को बच्चे में संस्कारों का बीज डालना चाहिए।

हम जो करते हैं बच्चे वही सीखते

बच्चे में न तो कोई गुण होता है और न ही कोई दोष, तो ये गुण-दोष उसमें किस तरह से आता है। इस पर हमें विचार करने की जरूरत है। असल में बच्चा माता-पिता के मुंह से जो बात निरंतर सुनता है वही बात उसके हृदय का संस्कार बनती है यानी माता-पिता की इच्छाएं ही संतान के हृदय में गुण-दोष के रूप में जन्म लेती हैं। मां यशोदा हमेशा से ही कन्हैया को अच्छे कार्य के लिए प्रेरित करती हैं। गोपियों का माखन खाने की सूचना मिलने पर उन्हें दंडित भी करती हैं।

डांटने-मारने की जगह प्रलोभन देना

बच्चों की परवरिश में माता-पिता का बहुत रोल होता है। आजकल के माता-पिता अपने बच्चे को छोटी-छोटी बातों के लिए डांटते और मारते हैं। लेकिन बच्चों को दूसरे तरीकों जैसे कि उन्हें चीजों का प्रलोभन देकर अपने मन के हिसाब से काम करवाया जा सकता है। मां यशोदा भी श्रीकृष्ण को डांटने की जगह प्रलोभन देती हैं। उन्हें उनके मन पसंद माखन-मिश्री का हवाला देकर कई काम करवा लेती हैं।

दबाव न बनाना

कई बार श्रीकृष्ण के कार्यों के लिए नंदजी उन्हें डांटना चाहते हैं लेकिन मां यशोदा उनको बीच में ही रोक देती हैं। वे कहती हैं कि छोटे बच्चों पर बातों का अनावश्यक दबाव होगा। वे डांटने से रोकती हैं।

प्यार-दुलार के साथ सख्ती जरूरी

आजकल माता-पिता, दोनों की व्यस्तता बढ़ गई है। भागदौड़ भरी इस जिदंगी में माता-पिता बच्चे के साथ बैठकर बातचीत करने का समय नहीं निकाल पा रहे हैं। बच्चों की गलत मांगों को भी मान लेते हैं। जरूरत पड़ने पर उनके साथ सख्ती नहीं करते हैं जिसके चलते वे बड़े होने पर हठी हो जाते हैं। मां यशोदा से सीखें कि प्यार और दुलार में कभी कमी नहीं होने दी लेकिन जरूरत पड़ने पर उनके साथ सख्ती के साथ भी पेश आईं। कई बार तो कमरे में भी बंद कर दिया था।

संतान पर भरोसा करना

मां यशोदा हमेशा कृष्ण के लिए चिंतित रहती हैं। वह क्या करते हैं इसके लिए जागरूक भी रहती हैं। साथ में उन्हें पूरा भरोसा रहता है कि कन्हैया गलत नहीं करेगा। गोपियों की झूठी बातों पर भरोसा नहीं करतीं।

धैर्य रखने की प्रेरणा

मां यशोदा श्रीकृष्ण की चंचलता से परेशान रहती हैं। लेकिन कभी उन्होंने उन्हें दंडित नहीं किया। एक बार उन्होंने छड़ी उठाई थी लेकिन उन्होंने फेंक दी। इसके बाद उन्होंने श्रीकृष्ण को ओखली में बंधाने का विफल प्रयास किया था।

दोस्तों के साथ मिलकर रहना

कृष्ण के अच्छे रिश्तों के पीछे मां यशोदा का ही हाथ था। वह बचपन से दोस्तों यानी ग्वाल-बाल के साथ मिलकर रहने का संस्कार देती थीं। यशोदा ने कभी भी श्रीकृष्ण को यह दंभ नहीं होने दिया कि वे राजा परिवार से संबंध रखते हैं।