
Javed Akhtar Birthday: मशहूर लेखक, कवि, गीतकार या कहें शब्दों का जादूगर… आज जावेद अख्तर का जन्मदिन है। ये ऐसे तमगे हैं जो जावेद अख्तर की शख्सियत बयां करते हैं। पांच नेशनल फिल्म अवॉर्ड, पद्मश्री और पद्मभूषण जैसे पुरस्कार हासिल करने वाले जावेद अख्तर के 80वें जन्मदिन पर पत्रिका.कॉम आपको बता रहा है जादू की जिंदगी के कुछ अनसुने रोचक किस्से, कैसे एक दिन अचानक मां की मौत ने उनके लिए सब कुछ बदल कर रख दिया था, लेकिन आज भी हर कामयाबी में मां उनके साथ होती है….
भोपाल से प्रकाशित एक किताब में ऐसे कई किस्से मिले जो जादू (जावेद अख्तर) की जिंदगी को करीब से जानने का मौका देते हैं। जावेद अख्तर अपनी मां को अम्मी कहकर पुकारते थे। वहीं अपने पिता को अब्बी कहा करते थे। जावेद बताते हैं कि उनके अम्मी और अब्बू केवल 9 साल साथ रहे। इनमें भी 6 साल अलग-अलग शहरों में नौकरी करने में गुजरे। जनवरी 1953 में उनकी अम्मी चल बसी थीं। जावेद अख्तर और उनके छोटे भाई सलीम दोनों भोपाल में ही साथ रहे।
जावेद अख्तर अपने जन्मदिन का एक किस्सा भी सुनाते हैं, जिसके मुताबिक मुस्लिम परिवारों में बच्चे के जन्म पर उसके कान में अजान पढ़ने की परम्परा होती है। लेकिन जावेद अख्तर जब पैदा हुए तो उनके अम्मी और अब्बी ने ऐसा नहीं किया। अलग विचारधारा के होने के कारण वे पहले सोचने लगे कि उन्हें क्या करना चाहिए. तब उनके अब्बी ने उस वक्त कॉम्यूनिस्ट मैनिफेस्टो की किताब की कुछ लाइनें उनके कान में पढ़ दी थीं, क्योंकि उनके हाथ में उस वक्त वही किताब थी।
जावेद बताते हैं कि जब उनका नाम रखा जा रहा था, तब उनके दोस्त ने उन्हें एक गजल की याद दिलाई, जिसके अल्फाज कुछ यूं थे
-लम्हा-लम्हा किसी जादू का फसाना होगा-
ये वही गजल थी जो अब्बी ने अपनी शादी के वक्त लिखी थी। इस तरह उन्हें जादू कहकर बुलाया जाने लगा। लेकिन जब किंडरगार्टेन जाना शुरू किया, तब दोबारा उनका नाम रखा गया और वे जादू से जावेद हो गए। बता दें कि जावेद अख्तर के पिता का नाम जान निसार और मां का नाम सफिया अख्तर था।
जावेद अख्तर अपने घर में आने वाली ऐसी खुशी थे जिसने हर किसी के चेहरों का नूर बढ़ा दिया था। इसका कारण था 22 साल के लंबे अंतराल के बाद घर में कोई पैदा हुआ था। ऐसे में जावेद अख्तर अपने घर-परिवार के लिए किसी चांद से कम नहीं थे।
हर किसी की लाइफ में अच्छी-बुरी यादें ता जिंदगी तारी रहती हैं। कुछ लम्हे एक पल में आपकी जिंदगी बदल देते हैं। जावेद अख्तर की लाइफ से जुड़ा एक ऐसा ही किस्सा जावेद अख्तर की लाइफ से भी जुड़ा है। कैसे उनकी मां की मौत ने उनकी जिंदगी बदलकर रख दी।
जावेद अख्तर कहते हैं कि अगर उनसे कोई पूछे कि उनका बचपन ट्रॉमा या दुखों के बीच गुजरा है, तो वे यही कहेंगे कि कम उम्र में ही, जब वे केवल 8 साल के थे, तब उनकी मां की मौत हो गई थी। मां की मौत ने एक मासूम बच्चे के लिए सबकुछ बदल दिया था। अगर इतनी कम उम्र में उनकी मां दुनिया को अलविदा ना कहतीं तो आज शायद ही वो ऐसी शख्सियत होते, जो वे हैं। जावेद अख्तर मानते हैं कि अगर मां होती तो उनकी जिंदगी कुछ अलग होती। लेकिन मां का इस तरह चले जाना उनकी जिंदगी को एक खास दिशा भी दे गया।
जावेद अख्तर मानते हैं कि मां का जाना उनकी जिंदगी का एक अहम हिस्सा है, लेकिन उनकी हर कामयाबी में आज भी उनकी मां साथ चलती हैं।
जावेद अख्तर के पिता ने 1947 में ग्वालियर छोड़ दिया था। वे यहां गवर्नमेंट हमीदिया आर्ट्स एंड कॉमर्स कॉलेज के उर्दू विभाग के प्रमुख नियुक्त किए गए। जावेद की अम्मी ने भी वहां लेक्टरर के तौर पर काम किया। छुट्टियों में वे अपने ननिहाल लखनऊ जाया करते थे। फिर भोपाल में बीता बचपन।
जावेद अख्तर का बचपन एमपी की राजधानी भोपाल में भी गुजरा। वे अपने परिवार के साथ महबूब मंजिल के पहले फ्लोर पर रहा करते थे। उसकी बालकनी में दो बेंचे रखी होती थीं। एक नीली और दूसरू पीली। नीली बैंच उनकी थी और पीली भाई सलीम की हो गई थी। ये वही बालकनी थी जहां बैठकर जावेद और उनके भाई सलीम अम्मी और अब्बी को घर लौटते देखते थे। क्योंकि बालकनी के सामने लाल परेड ग्राउंड था और हमीदिया कॉलेज भी जहां वो पढ़ाया करते थे।
बचपन का एक किस्सा भी मिला, जिसके मुताबिक जब जावेद किंडरगार्टेन में पढ़ते थे, तब उनकी टीचर ने झंडा बनाने के लिए कहा। उन दिनों कॉम्यूनिस्ट पार्टी पर प्रतिबंध लग चुका था। लेकिन जावेद ने एक लाल झंडा बनाया और टीचर को दे दिया। इसकी शिकायत मेरी मां तक पहुंच गई। देखिए आपके बेटे ने क्या बनाया है। ध्यान रहे आप अपनी नौकरी गंवा सकती हैं। याद रखिए आप सरकारी कॉलेज में पढ़ा रही हैं।
माता-पीता दोनों की नौकरी के चलते जावेद और सलीम दोनों भाईयों पर ध्यान देना मुश्किल होता जा रहा था। तब असगोर से आई नानी उन्हें संभालती थीं। 6 साल के जावेद और साढ़े चार साल के सलीम को संभालने आई नानी जावेद की नानी की दूर की रिश्तेदार थीं। इसलिए वे उन्हें नानी ही कहा करते थे। असरोगे उत्तर प्रदेश का एक गांव है।
ऐसे ही एक इंटरव्यू में सुने थे जावेद अख्तर के करियर से जुड़े संघर्षों के किस्से। क्योंकि मुंबई में अपने शुरुआती करियर में जावेद अख्तर को संघर्षों के कठिन दौर से गुजरना पड़ा। इसके मुताबिक, जावेद बताते हैं कि उन्होंने फैसला किया कि ग्रेजुएशन की पढ़ाई के बाद वे बॉम्बे जाएंगे और सहायक निर्देशक के रूप में काम करेंगे। वो भी गुरु दत्त या राज कपूर के साथ। यही नहीं उन्हें यकीन था कि कुछ साल ऐसा करने के बाद, वे निश्चित रूप से निर्देशक बन जाएंगे।
जावेद अख्तर जब पहली बार मुंबई गए तो, उनके संघर्षों के दिन भी कम नहीं रहे। वे कहते हैं कि वे ठीक पांच दिन के लिए अपने पिता के घर में थे और वे अपने आप वहां से चले गए। कुछ दोस्तों के साथ रहे। रेलवे स्टेशनों, पार्कों, गलियारों, स्टूडियो और बेंचों पर सोते थे। वे दादर से बांद्रा तक पैदल जाते थे, क्योंकि उनके पास बस के किराए के लिए भी पैसे नहीं होते थे।
जावेद अख्तर ने एक बार रोते हुए कहा था, 'वंचना दो तरह की होती है - नींद की और भोजन की - जो आप पर ऐसी छाप छोड़ती है जिसे आप कभी नहीं भूलते। वे बताते हैं कि वे फाइव स्टार होटलों में, बड़े डबल बेड वाले सुइट्स में रुकते हैं और जब पीछे मुड़कर देखते हैं, तो याद आता है कि कैसे वे थर्ड क्लास के डिब्बे में बंबई आए। इसमें बैठने के लिए भी जगह नहीं थी। कैसे उनकी नींद उड़ गई थी और वे थक कर चूर हो गए थे।
उन्होंने आगे कहा, उन्हें बस उस कमरे का एक छोटा सा हिस्सा चाहिए था, जो अब उनके पास है। वे लोग बहुत सारा खाना लाते हैं और उन्हें हैरानी होती है कि जिन दिनों उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं था, उन दिनों यह खाना कहां था। आज तक, उन्हें ऐसा लगता है कि वे इस खाने के हकदार नहीं हैं। जावेद अख्तर ने आगे कहा कि उन्हें एक दिन एहसास हुआ कि उनके पास पहनने के लिए कुछ नहीं है। उनके पास केवल एक पैंट बची थी।
कभी-कभी उन्हें ऐसा लगता था कि उन्हें दो दिन तक खाना नहीं खाया है। वे हमेशा मन में सोचते थे कि अगर एक दिन मेरे बारे में कोई जीवनी लिखी जाए, तो यह सुनहरा पल होना चाहिए।
बता दें कि आज ही के दिन 17 जनवरी 1945 जावेद अख्तर का जन्म को ग्वालियर में हुआ था। उनके पिता जां निसार अख्तर एक प्रसिद्ध और प्रगतिशील कवि थे। तो उनकी अम्मी सफिया अख्तर मशहूर उर्दु लेखिका तथा शिक्षिका थीं। जावेद प्रगतिशील आंदोलन के सितारे और लोकप्रिय कवि मजाज के भांजे भी हैं। अपने दौर के प्रसिद्ध शायर मुज्तर खैराबादी जावेद के दादा थे। लेकिन इतना सब होने के बावजूद जावेद का बचपन विस्थापितों सा बीता। छोटी उम्र में ही मां का साया सिर से उठा तो वे लखनऊ में अपने नाना नानी के घर रहे। बाद में उन्हें अलीगढ़ अपनी खाला के घर भेज दिया गया, जहां के स्कूल में उनकी शुरुआती पढ़ाई हुई।
जावेद अख्तर ने दो शादियां की हैं। उनकी पहली पत्नी से दो बच्चे हैं- फरहान अख्तर और जोया अख्तर। फरहान पेशे से फिल्म निर्माता, निर्देशक, अभिनेता, गायक हैं। जोया भी निर्देशक के रूप में अपने करियर कि शुरुआत कर चुकी हैं। वहीं उनकी दूसरी पत्नी अभिनेत्री शबाना आजमी हैं।
Updated on:
17 Jan 2025 04:58 pm
Published on:
17 Jan 2025 04:56 pm
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