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लता और प्रदीप के गीतों के बगैर अधूरे रहते हैं देशभक्ति आयोजन, आज भी भर आती हैं आंखें

देशभक्ति का कोई भी आयोजन इस गीत के बगैर अधूरा ही माना जाता है...।

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भोपाल

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Manish Geete

Feb 06, 2022

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उज्जैन। कवि प्रदीप के गीत और लता मंगेशकर की आवाज आज भी लोगों की आंखें नम कर देती है। दोनों के अद्भुत संयोग से उनके गीत अमर हो गए। उनके गीत और लता की आवाज के बगैर हर देशभक्ति के आयोजन अधूरे ही रहते हैं। कवि प्रदीप का जन्म उज्जैन जिले के बड़नगर में 6 फरवरी 1915 को हुआ था। आज ही के दिन 6 फरवरी 2022 को भारत रत्न लगा मंगेशकर का भी निधन हो गया।

कवि प्रदीप के जन्म दिवस के मौके पर प्रस्तुत है, यह विशेष स्टोरी...।

कवि प्रदीप का जन्म उज्जैन में 6 फरवरी 1915 को है। कवि के कई देशभक्ति गीत और भजन प्रसिद्ध हैं, लेकिन गायिका लता मंगेशकर की आवाज मिलते ही उनके गीतों को पंख लग गए। ऐ मेरे वतन के लोगो.. देशभक्ति गीत जो आज भी किसी भी आंखों में पानी ले आता है। एक के बाद एक कई देशभक्ति और प्रेरणा देने वाले गीत लिखने वाले कवि प्रदीप और लता की जोड़ी को कोई नहीं भूल सकता।

आज 6 फरवरी को सुबह भारत रत्न लता मंगेशकर वेंटीलेटर पर जिंदगी की जंग हार गईं। देशभर में शोक की लहर दौड़ गई। देशभर में इस सरस्वती स्वरूपा लता मंगेशकर के लिए दुआओं का दौर चला लेकिन वो बेअसर रहा।

इस गीत के बगैर अधूरे रहते हैं कार्यक्रम

जब भी देशभक्ति का अवसर आता है तो कवि प्रदीप का लिखा और लता का गाया हुआ यह गीत जरूर गाया जाता है। ऐ मेरे वतन के लोगों, ज़रा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करों कुर्बानी...। लता मंगेशकर (lata mangeshkar) का गाया यह गीत जिसे सुनकर देश के प्रधानमंत्री तक की आंखों में आंसू आ गए थे। आज भी इस गीत के बगैर कोई भी देशभक्ति कार्यक्रम अधूरा ही माना जाता है। देश के प्रति श्रद्धा और प्रेरणा देने वाले इस गीत को देने वाले कवि प्रदीप ही थे।


कवि प्रदीप (kavi pradeep) का लिखा यह गीत अमर हो जाएगा, यह किसी को नही पता था। आजादी के बाद से देशभक्ति के भाव को प्रकट करने के लिए यह गीत गाया जाता है। यह गीत किसी राष्ट्र गान जैसा ही भाव उत्पन्न करता है। यह गीत लोगों में अपने देश के प्रति शिद्दत बयां करता है। आज की युवा पीढ़ी को भी यह गीत प्रेरणा देता रहेगा।

1962 में भारत और चीन युद्ध के दौरान मारे गए सैनिकों का जिक्र इस गीत में मिलता है। लता मंगेश्कर ने जब पहली बार यह गीत 27 जनवरी 1963 को नई दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में गाया तो उस समय तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन और तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू भी मौजूद थे। इस गीत को सुनकर प्रधानमंत्री की आंखें भी नम हो गई थीं।

लता ने मना कर दिया था

पहले तो लता मंगेशकर ने इस गीत को गाने का ऑफर ठुकरा दिया था। क्योंकि उनके पास रिहर्सल का वक्त नहीं था। लेकिन जब लता ने इस गाने को बगैर रिहर्सल किए ही गाया तो वहां मौजूद पं. नेहरू की आंखें भी छलक आईं। इसके बाद यह गीत और अधिक प्रसिद्धि के शिखर पहुंच गया। अब कोई भी देशभक्ति का कार्यक्रम हो, इस गीत के बगैर पूरा नहीं होता है।

कौन थे कवि प्रदीप

'रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी' जिन्हें हम कवि प्रदीप के नाम से जानते हैं। उज्जैन जिले के बड़नगर में जन्मे कवि प्रदीप को पहचान 1940 में रिलीज हुई फिल्म बंधन से मिली थी। इसके बाद 1943 मे आई स्वर्ण जयंती हिट फिल्म किस्मत के गीत 'दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है' ने उन्हें देशभक्ति गीत के रचनाकारों में अमर कर दिया। यह गीत काफी हिट हुआ और इसके अर्थ से गुस्साई ब्रिटिश सरकार ने कवि प्रदीप की गिरफ्तारी के आदेश जारी कर दिए थे। इससे बचने के लिए कवि प्रदीप को अंडरग्राउंड होना पड़ा था।

कवि प्रदीप के बारे में