मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। पहले यहां एक सिद्ध मढि़या हुआ करती थी। इसके बाद १९६७ में हरियाली अमावस्या के दिन मंदिर का निर्माण किया गया। मंदिर के रजनीश सिंह बगवार ने बताया कि काली जी के इस मंदिर का शिखर बहुत ऊंचा बनाया गया है. इस मंदिर का शिखर पूरे १०८ फीट ऊंचा है। नवरात्र के अलावा यहां आम दिनों में भी बड़ी संख्या में दर्शनार्थी आते हैं।
इस मंदिर की एक और खासियत है. कालीजी का यह मंदिर तालाब के किनारे बना हुआ है. तालाब के किनारे होने के कारण इसे एक सिद्धपीठ माना गया है. यही वजह है कि यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए आते हैं. यहां आनेवाले भक्त मंदिर में स्थापित कालीजी को सिद्धिदात्री देवी के रूप में मानते हैं।
मुंहमांगी मुराद होती है पूरी, गर्भगृह के पीछे श्रद्धालु मन्नत के लिए बांधते हैं धागा
इस मंदिर में श्रद्धालुओं की मुंहमांगी मुराद पूरी होती है। इसके लिए एक विशेष उपाय भी किया जाता है. काली मंदिर के गर्भगृह के पीछे कई श्रद्धालु मन्नत मांगने के साथ धागा बांधते हैं और जब मनोकामना पूरी हो जाती है, तो वह धागा खोल देते हैं। आज भी गर्भगृह के पीछे मन्नत के कई धागे बंधे हुए हैं। नवरात्र में तो यहां भक्तों की कतार लग जाती है.