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अरुणिमा ने पत्रिका से बांटा अपना दर्द, कहा – मेरा मजाक उड़ाने वालों को महाकाल देंगे सजा

अरुणिमा का कहना था कि जहां भगवान रहते हैं वहां पर जाने के लिए इतनी तकलीफों का सामना नहीं करना पड़ा लेकिन यहां करना पड़ा।

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arunima sinha

भोपाल। रविवार की सुबह एक दिव्यांग युवती आंखों में आंसू लिए अपनी दो महिला साथियों के साथ विश्वप्रसिद्ध उज्जैन महाकाल मंदिर से बाहर आ रही थी। ज्यादातर लोग उसे अनदेखा कर निकल जा रहे थे, शायद ही कोई था जिसे उसके आंसुओँ की फिक्र थी। कुछ ही देर पहले ये युवती मंदिर परिसर के भीतर बाबा महाकाल के दर्शनों के लिए मिन्नतें कर रही थी। इस दिव्यांग युवती के पास अनुमति भी थी, लेकिन मंदिर प्रशासन द्वारा व्यवस्था में लगे सुरक्षाकर्मियों ने उसकी एक नहीं सुनी, यहां तक की उसके दिव्यांग होने के बाद भी उसे दर्शन के लिए आगे नहीं जाने दिया गया। काफी देर तक बहस करने के बाद भी जब उन लोगों का दिल नहीं पसीजा तो हजारों किमी दूर से आई ये युवती एलईडी स्क्रीन पर ही बाबा महाकाल के दर्शन कर मंदिर से रोते हुए वापस लौट आई।

ये सच्ची घटना है देश की उस पहली दिव्यांग युवती की, जिसने अपने दम पर पैर न होते हुए भी एवरेस्ट फतह किया, इस युवती का नाम है पद्मश्री अरुणिमा सिन्हा। अरुणिमा सिन्हा की ये कहानी वास्तव में बहुत तकलीफदेह है और शायद इसीलिए मंदिर से वापस लौटते हुए अरुणिमा का कहना था कि जहां भगवान रहते हैं वहां पर जाने के लिए इतनी तकलीफों का सामना नहीं करना पड़ा लेकिन यहां करना पड़ा।

मंत्री के मेहमान के रूप में दर्ज था नाम, फिर भी हुई उपेक्षा
मंदिर से बाहर निकलने के बाद अरुणिमा ने बताया कि वे दो महिलाओं के साथ रविवार तड़के साढ़े चार बजे मंदिर पहुंची। पुलिस चौकी के रजिस्टर में महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनीस के मेहमान के रूप में अरुणिमा सिन्हा का नाम दर्ज था। अरुणिमा को उम्मीद थी कि मंत्री की मेहमान होने के नाते उन्हें बाबा महाकाल के दर्शन अच्छे से हो जाएंगे।

जिस वक्त अरुणिमा मंदिर में पहुंची तब भस्मारती चल रही थी। एंट्री के बाद अरुणिमा और उनके साथ की दोनों महिलाओं को कर्मचारियों ने नंदी हॉल के ऊपर कार्तिकेय मंडपम् में बैठा दिया। यहां से उन्होंने एलईडी स्क्रीन पर भस्मारती देखी। भस्मारती के बाद गर्भगृह से दर्शन के लिए वे चैनल गेट पर रैंप के समीप पहुंची तो सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें रोक दिया।

इसके बाद अरुणिमा बार बार अपना परिचय देकर आग्रह करती रहीं, लेकिन किसी ने उनकी एक नहीं सुनी। काफी देर तक हुई बहस के बाद सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें अंदर जाने दिया, लेकिन साथ आई महिलाओं को रोक लिया। अरुणिमा ने बताया कि ऐसा नहीं था कि सिर्फ वे ही अंदर जाना चाहती थीं, जिस वक्त वे भीतर जाने के लिए अनुमति मांग रहीं थीं उसी वक्त अऩ्य लोग भी अंदर आ जा रहे थे। इस बात का हवाला देकर भी उन्होंने अंदर जाने की मांग की, लेकिन सुरक्षाकर्मी नहीं माने। रोते हुए अरुणिमा बताती हैं कि सिर्फ दर्शन करने भर के लिए ही इतनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, जितनी एवरेस्ट पर चढ़ाई के दौरान नहीं आईं। अरुणिमा का कहना था कि जिंदगी में कई विपदाएं आईं लेकिन कभी उनके आंसू नहीं आए थे।

पत्रिका से कहा - महाकाल देंगे मजाक उड़ाने वालों को सजा
अरुणिमा ने लखनऊ से टेलीफोन पर पत्रिका से बात करते हुए कहा कि मुझे मंदिर प्रशासन के रवैये से दुख पहुंचा है। मैंने खुद को दिव्यांग बताते हुए दर्शन करने की बात कही, लेकिन वहां के स्टाफ ने कहा कि ऐसे बहुत आते हैं। अरुणिमा ने कहा कि अगर मंदिर में सिर्फ साड़ी पहनने वालों को ही भस्म आरती में प्रवेश दिया जाता है तो इसकी जानकारी न तो मंदिर की वेबसाइट पर है और ना ही मंदिर के बाहर बोर्ड पर। भगवान ने दिव्यांग होते हुए भी मुझे वहां (एवरेस्ट) भेजा, जहां पहुंचने की आम आदमी सोच भी नहीं सकता, लेकिन मंदिर में वहां के स्टाफ ने मुझे दर्शन से ही रोक दिया। मैंने तो भगवान से शिकायत कर दी है, भगवान ही उन्हें सजा देगा

घुटना खोलकर बताया तब भी नहीं पिघला दिल

अरुणिमा ने बताया कि मंदिर में प्रवेश के दौरान उन्होंने अपने पैर का घुटना खोलकर वहां के कर्मचारियों को बताया लेकिन वहां तैनात महिला कर्मचारियों का दिल नहीं पसीजा। अरुणिमा को धकियाते हुए उन्होंने कहा कि आप इन कपडो़ं में तो अंदर नहीं जा सकती हैं। उनका कहना था कि जब अनुमति के बाद उनके साथ इस तरह का व्यवहार हो रहा है तो आम दिव्यांगों के साथ क्या होता होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

पीएम और सीएम दोनों को बताऊंगी शिकायत - अरुणिमा
अरुणिमा के मुताबिक वहां पर कोई बोर्ड नहीं लगा है, कोई यह जानकारी देने वाला नहीं था कि मंदिर में किन वस्त्रों में प्रवेश किया जाना चाहिए। यदि ये सब पहले से ही पता होता तो नियमों का पालन किया जाता। अरुणिमा का कहना था कि वे पहली बार किसी मंदिर से रोकर बाहर निकली हैं। मैं पीएम और सीएम दोनों को अपना व्यथा से अवगत कराऊंगी। अरुणिमा ने ये भी कहा कि रात ढ़ाई बजे तक वीवीआईपी के लिए रिजर्व है, क्या आम आदमी भगवान के दर्शन भी नहीं कर सकता।

दिन भर छाया रहा मुद्दा, मंदिर प्रशासन ने मांगी माफी
सोमवार को ये खबर प्रदेश सहित देशभर में फैल चुकी थी। इसके बाद मंदिर प्रशासन की ओर से न सिर्फ अरुणिमा सिन्हा से माफी मांगी गई, बल्कि उन्हें वापस उज्जैन आने का न्यौता देने की बात कही गई। हालांकि अरुणिमा अपनी बात पर अड़ी रहीं, उनका कहना था कि वे अब मध्यप्रदेश सरकार के बुलावे पर भी कभी नहीं आएंगी।

मुद्दे का दूसरा पहलू
इस पूरे मामले में सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि उज्जैन के महाकाल मंदिर में दिव्यांगों के लिए दर्शन की आदर्श व्यवस्था के लिए मंदिर समिति प्रशासन को राष्ट्रीय पुरस्कार सम्मान से नवाजा जा चुका है। ये कोई सालों पुरानी बात नहीं है, इसी महीने ये राष्ट्रीय पुरस्कार मंदिर प्रशासन समिति को दिया गया है। उसके बाद भी देश का नाम दुनिया भर में ऊंचा करने वाली अरुणिमा सिन्हा को इन सब दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

2011 में हुईं थी हादसे का शिकार, दो साल बाद ही फतह किया एवरेस्ट
यूपी में 1988 में जन्मी अरुणिमा सिन्हा 2011 में उस वक्त हादसे का शिकार हुईं थीं जब वे लखनऊ से दिल्ली जा रहीं थीं। बदमाशों की लूट का शिकार हुईं अरुणिमा से बैग और सोने की चैन छीनने के बाद उन्हें चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया गया था। हादसे में अरुणिमा अपना एक पैर खो बैठीं थीं। लेकिन इस हादसे ने अरुणिमा को और मजबूत कर दिया। ठीक होने के बाद उन्होंने पर्वतारोही बनने का फैसला किया और अपनी मेहनत के दम पर सिर्फ दो साल में ही कड़ी मेहनत के दम पर एवरेस्ट फतह कर लिया। 2013 में अरुणिमा एवरेस्ट पर पहुंचने वाली पहली दिव्यांग बनीं, उनकी इस उपलब्धि पर भारत सरकार की ओर से उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया।