
Crime Against Women in MP: पत्रिका स्टिंग ऑपरेशन में बड़ा खुलासा, सार्वजनिक जगहों पर सेफ नहीं महिलाएं और लड़कियां.
MP News: सामाजिक सरोकार में नई पहल के तहत अब पत्रिका ने बीड़ा उठाया है समाज में अपराध की बढ़ती दर कम करने का। पत्रिका ने पाठकों की सहभागिता के साथ अपराध नियंत्रण के लिए 'रक्षा कवच' अभियान की नींव रखी है। इसमें हर उस चेहरे को बेनकाब किया जाएगा, जो समाज की सुरक्षा पर खतरा हैं।
आर्थिक अपराध, साइबर ठग, महिला उत्पीडऩ, बाल-अपराध, चोरी, हत्या हर क्षेत्र में क्राइम ग्राफ बढ़ रहा है। अपराधों की बढ़ोतरी का मुख्य कारण बचाव के तरीकों की जागरुकता में कमी भी है। पुलिस-प्रशासन अपना काम कर रहे हैं, पर पाठकों की सहभागिता के बिना अपराध दर में कमी मुश्किल है… तो आइए इसे कम करने के लिए कदमताल करें। आंखें खोलतीं यह चंद रिपोर्ट नहीं हैं, बल्कि उस डर और घुटन की सच्चाई है, जो हर रोज महिलाओं को झेलनी पड़ती है।
छेड़छाड़ ऐसा मुद्दा है जो हम सभी के बीच हर दिन घटित होता है, लेकिन इसे नजरअंदाज करते हैं। जब अवाज उठाने की कोशिश की जाती है तो समाज और जिम्मेदारों की खामोशी हमें और भी सख्त ताले में बंद कर देती है। पत्रिका ने 3 राज्यों में स्टिंग ऑपरेशन के जरिए उन दरिंदों की पहचान की है, जो छिपकर महिलाओं का शिकार करते हैं, जबकि समाज में खुद के सभ्य होने का ढोंग करता है।
चाय ठेले पर 30-40 की उम्र के दो लोग बैठे थे। उनकी निगाहें पत्रिका रिपोर्टर को घूर रही थीं। आंखें मिली तो एक व्यक्त और पास आ गया। बगल में एक और युवती चाय पी रही थी। उसके मोटापे पर बॉडी शेमिंग वाली फब्तियां कसीं। युवती कुल्हड़ लेकर सड़क के दूसरी ओर पार्किंग में जाकर चाय पीने लगी। तब भी दोनों बुरी नजरों से रिपोर्टर को घूरते रहे। इसके बाद नर्मदापुरम रोड से बोर्ड ऑफिस तक सिटी बस में सफर किया। पर्याप्त जगह के बाद भी लड़के बस में लड़कियों से सटकर खड़े थे। कई भद्दे कमेंट भी सुनाई दिए। एक लड़की उतरने लगी तो एक लड़का उसे धक्का देते उतरा।
रात 9:30 बजे रिपोर्टर ऑफिस से निकली। 10 बजे इंजीनियरिंग कॉलेज के पास पुलिस की सतर्कता जांची। डायल-100 पर कॉल किया तो 10 मिनट में भी संपर्क नहीं हो पाया। फोन एंगेज रहा। राहगीर रिपोर्टर को पलटकर देखते रहे। रांझी टीआई से फोन पर मदद मांगी। 4 मिनट में पुलिस वाहन पहुंच गया। आरक्षक, चालक के साथ महिला पुलिसकर्मी थी। रिपोर्टर ने आरक्षक ज्ञानलता को बताया कि सुनसान के कारण वह डर गई। डायल-100 से संपर्क नहीं होने से परेशान हुई। महिला आरक्षक ने घर ड्रॉप करने की पेशकश की। पुलिस सतर्क दिखी, पर डायल 100 को संवेदनशील बनाने की जरूरत।
सड़क पर चलना दूभर
बसों में 'बैड टच' का मौका
पर्यटन स्थल पर भी सुकून नहीं
2022- 7431
2023- 7121
2024- 6701
गिरावट: 5.9 फीसदी
बीएनएस (354 क, ख, ग, घ)
लैंगिक भेदभाव, सामाजिक ढांचा और महिलाओं के प्रति दुराग्रह से छेड़छाड़ जैसे अपराध आम हैं। ज्यादातर या कहें सभी महिला-लड़कियां जीवन में कभी न कभी इससे प्रभावित होती हैं। स्कूल में शिक्षक कर्मचारी, विद्यार्थी, ट्यूशन के दौरान बच्चियों से भी यह अपराध होता है। शिकायत का प्रतिशत 15-20 होगा। वजह है सामाजिक ताना-बाना, जहां लैंगिक अपराध पर महिलाओं को ही दोषी करार देते हैं। धारणा है कि ऐसे अपराध की शिकायत होगी तो पीड़िता और परिवार की बदनामी होगी। अपराधी की नहीं। कोई महिला थाने में शिकायत करती भी है तो सजा शायद 5 फीसदी या उससे कम मामलों में ही होती है। अदालत में यह साबित करना जटिल है।
थाना पुलिस में संवेदनशीलता का नितांत अभाव है। कोई हिम्मत करती भी है तो घंटों इंतजार और पुलिस के बेतुके सवाल झेलने पड़ते हैं। ले-देकर रिपोर्ट के बाद थाने के चक्कर, जबकि महिलाओं के लिए प्रावधान है कि रिपोर्ट के बाद अन्य पूछताछ के लिए पुलिस सूर्योदय के बाद सूर्यास्त से पहले पीडि़त के घर जाकर बयान दर्ज करे, पर इसका पालन बेहद कम होता है। अभियोजन के लिए अहम होता है कि वह किस तरह मामले को कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत कर रहा है, फिर न्यायालय की कार्यवाही लंबी हो जाती है। आरोपी पक्ष भी मामले को लंबा खींचना चाहता है। इससे पीड़ित पक्ष हताश होने लगता है। छेड़छाड़ जैसे मामलों में सभी को संवेदनशील होना चाहिए। निपटारे और सजा दिलाने के लिए एक समय सीमा तय होना अतिआवश्यक है।
-निरुपमा वाजपेयी, एडवोकेट हाईकोर्ट
Updated on:
04 Feb 2025 05:15 pm
Published on:
04 Feb 2025 08:47 am
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