11 दिसंबर 2025,

गुरुवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

पत्रिका का चौंकाने वाला खुलासा! अप्राकृतिक मौतों पर ALERT के लिए नहीं MSU

MP news: कफ सिरप से मौतों के मामले में पत्रिका की पड़ताल, एमपी में अप्राकृतिक मौतों पर समय रहते रोक लगाने वाला सिस्टम ही ध्वस्त, सरकार और सिस्टम को अलर्ट करने होती है यूनिट... जानें क्या है MSU... कैसे करती है काम...

2 min read
Google source verification
MP News

MP News

MP news: प्रदेश में अप्राकृतिक मौतों पर समय रहते रोक लगाने वाला सिस्टम ध्वस्त है। आमतौर पर अप्राकृतिक मौतों पर तुरंत सरकार और सिस्टम को अलर्ट करने सर्विलांस यूनिट होती हैं, लेकिन प्रदेश में ऐसी कोई यूनिट नहीं है। वर्तमान में पुणे, हैदराबाद, बेंगलूरु और नागपुर जैसे शहरों में यूनिट हैं। देश में 20 से ज्यादा यूनिट स्थापित की जानी थीं। भोपाल भी शामिल था, पर अफसरों की अनदेखी के कारण अब तक चालू नहीं हो पाई।

दवाओं की निगरानी और सैंपलिंग की व्यवस्था पर भी सवाल उठ रहे हैं। कई दुकानों से बिना पर्चे के दवाएं मिल रही हैं। जन स्वास्थ्य अभियान के सदस्य अमूल्य निधि, गैस पीड़ित संगठनों की आवाज उठाने वालीं रचना ढींगरा के अनुसार सिस्टम ही अनदेखी करता रहा है। इससे मैदानी स्तर पर कई लोग फायदा उठाते हैं।

क्या होती है एमएसयू (MSU)

मेट्रो सर्विलांस यूनिट (MSU) राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) द्वारा स्थापित की जाती है। बीमारी के प्रकोप की निगरानी-रोकथाम के लिए काम करती है। रोग निगरानी, संभावित महामारी की शुरुआती पहचान में अहम भूमिका निभाती है।

इन डेप्थ: 150 कॉल के बाद भी दवाब में नहीं आए कलेक्टर

जिस कोल्ड्रिफ सिरप (Cough Syrup Death Case) को सरकार ने चार अक्टूबर को मध्यप्रदेशमें बैन किया, उसे छिंदवाड़ा में 29 सितंबर को ही बैन किया जा चुका था। इसके पीछे छुपी छिंदवाड़ा के तत्कालीन कलेक्टर शीलेंद्र सिंह की इनसाइड स्टोरी हम बताते हैं।

कलेक्टर ने नहीं बदला इरादा

दरअसल शीलेंद्र सिंह ने सिरप पर बैन लगाने के मौखिक निर्देश दिए तो, बात भोपाल, दिल्ली और तमिलनाडु तक पहुंची। लिखित में आदेश जारी होने से पहले इन शहरों से 150 से ज्यादा फोन आए। दबाव था, दवा तो अच्छी है… बैन नहीं कर सकते। जांच रिपोर्ट भी नहीं है। ऐसा करना उल्टा पड़ सकता है। इसके बावजूद सिंह ने इरादा नहीं बदला। सिरप बैन कर दी। 2010 बैच के आइएएस अफसर सिंह ने पत्रिका (patrika investigation) को बताया कि सिरप को पूरी तरह जिम्मेदार नहीं माना, पर लगा कि यदि बच्चों की जान बचाने रिपोर्ट आने तक कुछ दवाइयों को बैन कर किया जा सकता है तो पीछे नहीं हटना चाहिए।