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Success Story: आप भी रोते हैं किस्मत का रोना… तो ये खबर जरूर पढ़ें, कभी नहीं कहेंगे Bad luck

MP News: अक्सर लोग अपनी हार का ठीकरा किस्मत पर या दूसरों के सिर फोड़ते हैं और अपनी विफलता का रोना रोते हैं... इससे इतर patrika.com पर पढ़ें, संघर्षों के बीच अपनी किस्मत खुद लिखने वालों की सच्ची कहानियां... इनके जज्बे को आप भी करेंगे सलाम...

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MP news Success Story

MP news Success Story(फोटो: patrika)

MP news Success Story: अक्सर लोग जिंदगी में मिलने वाली हार का ठीकरा अपने या दूसरों के सिर फोड़ते नजर आते हैं। ये दूसरे लोग परिवार के ही सदस्य यहां तक कि माता-पिता तक होते हैं। हमारी आवाज में दबा दर्द अक्सर यही कहता सुनाई देता है मेरे पास ये नहीं था... मेरा परिवार ने साथ नहीं दिया.. इसलिए मैं कुछ नहीं कर पाया। लेकिन इससे इतर कुछ लोग दुनिया भर के लिए सबक बन जाते हैं.. शारीरिक अपंगता भी इन्हें आगे बढ़ने से नहीं रोक पाती। इनका साहस और हौसला बताता है.. जज्बा जिंदा है तो आप मजबूत भविष्य की नींव रख सकते हैं। फिर न कोई कमी आड़े आती है ना असुविधाएं। एक ऐसे ही जज्बे की कहानी है मध्य प्रदेश क्रिकेट टीम कप्तान राधा बडगूजर की। सीहोर की रहने वाली राधा की जिंदगी का संघर्ष काफी बड़ा है... लेकिन उसे पार करते हुए आज वो सफलता का नया इतिहास रच रही है।

कामयाबी का शिखर छूने को बेताब ये खिलाड़ी

ओल्ड कैंपियन मैदान पर चल रहे उमंग अंतरराष्ट्रीय व्हीलचेयर पुरुष और अस्थिबाधित महिला क्रिकेट टूर्नामेंट जज्बे की कहानी बयां कर रहा है। महाराष्ट्र, राजस्थान, झारखंड और मप्र की दिव्यांग महिला खिलाड़ी अपने संघर्षों को पीछे छोड़कर कामयाबी का शिखर छूने को बेताब हैं। इनका कहना है कि असली दिव्यांगता संसाधनों या शारीरिक कमी में नहीं, बल्कि इरादों की कमजोरी में होती है।

एक फोन कॉल... एक सवाल... शुरू हो गई सक्सेज स्टोरी

मध्य प्रदेश टीम की कप्तान राधा बडगूजर सीहोर की रहने वाली हैं। 3 साल की उम्र में बुखार से पैरालिसिस हो गया। राधा बताती हैं कि एक दिन उन्हें मध्य प्रदेश व्हीलचेयर टीम के कप्तान का फोन आया कि तुम क्रिकेट खेल सकती हो। उस एक सवाल ने उनकी जिंदगी का रुख सक्सेज की ओर मोड़ दिया। स्टिक के सहारे चलने वाली गुमनामी और अंधेरों में जीवन जीने वाली राधा आज खुद अपनी नई पहचान गढ़ चुकी है। सफलता की नई राहें मुड़ रही हैं। मध्य प्रदेश क्रिकेट टीम की कप्तान बनकर अपनी जिंदगी का इतिहास बदल रही हैं।

ये कहानी अकेली राधा की नहीं है, बल्कि ओल्ड कैम्पियन मैदान में चल रहे क्रिकेट टूर्नामेंट में पहुंची देशभर से आई और भी खिलाड़ियों की है... शारीरिक कमियां इनकी कामयाबी इनसे छीन नहीं सकीं और क्रिकेट पिच पर इनकी किस्मत चमकती जा रही है। यहां जानें कैसे बदल गई इनकी जिंदगी...

करंट भी नहीं तोड़ पाया मुझे

राजस्थान दिव्यांग महिला क्रिकेट टीम की कप्तान संगीता विश्नोई जब 6 साल की थी तक वे करंट की चपेट में आ गई थीं। उनका एक हाथ और एक पैर काटना पड़ा। 2003 में लंदन मिनी पैरालंपिक में क्रिकेट बॉल थ्रो में गोल्ड मेडल जीता। उन्हें डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

दिन में बेचती है मछली रात में करती है प्रेक्टिस

महाराष्ट्र दिव्यांग टीम की खिलाड़ी शिल्पा गोवद गाउकर 3 साल की उम्र में पोलियो के कारण 72 प्रतिशत हैंडीकैप हो गईं। लोग कहते थे, तुम चल नहीं सकती, भाग नहीं सकती, लेकिन शिल्पा ने न केवल चलकर बल्कि दौड़कर भी दिखाया। पति ने घर में ही उन्हें बैटिंग और बॉलिंग के गुर सिखाए। खाली समय में घर चलाने के लिए मछली बेचती हैं और रात में प्रैक्टिस करती हैं।

सब्जी की दुकान से अंतरराष्ट्रीय मैदान तक

झारखंड की पुष्पा मिंज के सिर से बचपन में मां का साया उठ गया। पिता का निधन भी हो चुका है। किराए के मकान में अकेले रहने वाली पुष्पा का जुनून ही उनका सहारा है। क्रिकेट को ऐसा जुनून कि आजीविका के लिए 6 दिन सब्जी की दुकान चलाती हैं और 7वें दिन 5 किमी दूर जाकर प्रैक्टिस करती हैं।