इससे न केवल लाइब्रेरी स्टाफ का कार्यभार कम होगा, बल्कि यूजर्स को भी किसी प्रकार की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। इस सुविधा से पुस्तकालय सेवाओं में पारदर्शिता और गति दोनों बढ़ेगी। खास बात यह है कि यह तकनीकी समाधान आने वाले दस साल तक प्रभावी रहेगी।
264 कॉलेजों में नहीं हैं ग्रंथपाल
इस मशीन का पायलट प्रोजेक्ट हर संभाग के एक कॉलेज में लगाया जाएगा। इसके लिए भोपाल के पीएमश्री हमीदिया पीजी कॉलेज का चयन किया गया है। प्रदेश के 562 सरकारी कॉलेजों में ग्रंथपाल के 547 स्वीकृत पदों में से 264 पद खाली हैं, ऐसे में यह सुविधा छात्रों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगी। ये भी पढ़ें: ‘सोनम के शरीर पर एक भी खरोंच नहीं…’ राजा की मां को लगा बड़ा झटका
छह माह में किया तैयार
डॉ. प्रभात पांडेय और उनकी टीम ने इसे लगभग 6 महीने में तैयार किया है। भारत सरकार ने इस एआइ बेस्ड कियोस्क को पेटेंट प्रदान किया है, जिसका आवेदन 18 मार्च को दिया गया था और स्वीकृति 5 जून को मिली। इस तकनीक से पुस्तकालयों में किताबों की इश्यू और रिटर्न प्रक्रिया को सरल और तेज बनाया जाएगा, जिससे छात्रों का समय बचेगा और लाइब्रेरी सेवाओं में सुधार होगा। इस नई पहल से न केवल छात्रों को लाभ होगा, बल्कि यह पुस्तकालयों की कार्यप्रणाली को भी आधुनिक बनाएगी।