
भीमसेन जोशी के पुत्र का गायन, पंचनाद में बिखरा संगीत का जादू
सम्मोहित वातावरण
पंचनाद संतूर पर भोपाल की श्रुति अधिकारी, सितार पर बनारस की श्रावणी विश्वास, वॉयलिन पर चेन्नई की अनुत्तमा मुरली, तबला पर मुंबई की मिताली विन्चुरकर और मृदंगम पर बैंगलूर की रंजनी सिद्धांती वेंकटेश ने पारस्परिक सामंजस्य के साथ शास्त्रीय संगीत पेश किया। इसमें ताल एवं तार दोनों शामिल रहे। इससे उन्होंने सम्मोहित करने वाला वातावरण बनाया। श्रीनिवास जोशी ने गायन की शुरुआत राग बिहाग में भजन से की। जिसके बोल तुम बिन मोरी.... रहे। उन्होंने ठुमरी में भैरवी की प्रस्तुति दी। उन्होंने बाद भक्ति रचनाएं प्रस्तुत कीं। उनका गायन महान संगीतज्ञ के संस्कार एवं परम्परा का स्मरण कराता रहा। श्रीनिवास जोशी बहुत तन्मय और अपनी अभिव्यक्ति के प्रति सदैव की तरह सुचिंतित और सचेत प्रतीत हुए। उनके साथ तबले पर मनोज पाटीदार, हारमोनियम पर माजिद खां ने संगत दी।
25 वर्ष की उम्र में पहली बार मंच पर प्रस्तुति देने पहुंचा था
भा रत रत्न स्व. पंडित भीमसेन जोशी के सुपुत्र पंडित श्रीनिवास जोशी ने कहा कि पंडित भीमसेन ने एक ओर जहां पिता के रूप में बखूबी कर्तव्य निभाया, वहीं दूसरी ओर गुरु होने के नाते उन्होंने गुरु-शिष्य परंपरा के तहत मुझे तालीम दी। आज कल लोग एक चरण सिखाने के बाद यह नहीं देखते कि शिष्य ने कितना सीखा या नहीं। सीधे उसे मंच पर गाने के लिए भेज देते है। उन्होंने बताया कि हमारे यहां गुरुकुल पद्धति में ऐसा बिल्कुल नहीं होता। मुझे याद है कि जब में 25 वर्ष का था, तब पहली बार मंच पर प्रस्तुति देने पहुंचा। उसके बाद कई ऐसे कार्यक्रम हुए जिनमें पिता श्रोता के रूप में शिरकत करते थे, लेकिन जहां भी सुर लय ताल में उतार-चढ़ाव आता तो वो घर पर आकर जरूर बताते थे। यह मेरा सौभाग्य ही रहा है कि इतने बड़े संगीतज्ञ के घर पैदा होने की वजह से देश के कई नामचीन कलाकारों से मिलने, उनसे बात करने का अवसर मिला। चाहे वो रविशंकर जी हों या फिर अमजद अली खान, कुमार गंधर्व। जब यह सब मेरे घर आते तो मेरी मां मेरी मुलाकात उनसे यह कहकर करवाती थी कि यह मेरा बेटा भी गाना सीख रहा है, आप इसको कुछ सीखा दो।
Published on:
20 Sept 2019 01:30 am
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