
Scindia Family is always Kingmaker in madhya pradesh
भोपाल। सिंधिया परिवार से जुड़ी यूं तो कई बातेंं प्रचलित हैं, लेकिन भारतीय राजनीति में हमेशा ही सिंधिया परिवार काफी मजबूत रहा है। खास तौर से मध्यप्रदेश की राजनीति में तो ये परिवार कई बार किंगमेकर भी भूमिका में भी रह चुका है।
यह हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि मध्यप्रदेश की राजनीति में मुख्यमंत्री की कुर्सी भले ही अब तक सिंधिया परिवार से दूर बनी रही हो, लेकिन यह भी सच्चाई है कि मप्र के 64 सालों के इतिहास में इस परिवार ने कई बार किंगमेकर की भूमिका निभाई है।
वहीं इस समय सियासी घमासान के बीच राजमाता विजयराजे और स्व. माधवराव के बाद अब इस परिवार की तीसरी पीढ़ी के ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रदेश के सियासी कैनवास पर बदलाव की नई लकीरें खींचने की तैयारी में हैं।
60-70 के दशक से हुई निर्णायक हस्तक्षेप की शुरुआत...
भोपाल के सत्ताकेंद्र में रहे ग्वालियर के इस पुराने राजपरिवार के निर्णायक हस्तक्षेप की शुरुआत 60-70 के दशक से तब से हुई, जब कांग्रेस के खांटी नेता द्वारका प्रसाद मिश्रा मुख्यमंत्री पद पर थे। उस वक्त राजमाता विजयराजे सिंधिया ग्वालियर से लोकसभा की कांग्रेस सांसद थीं। एक ही दल में होने के बावजूद दोनों ही नेताओं के बीच मतभेद गहरे होते चले गए।
इस मतभेद में ग्वालियर में छात्र आंदोलन ने भी घी का काम किया, जिसके चलते राजमाता सिंधिया करीब तीन दर्जन विधायकों को लेकर अलग हो गईं।
इस दौरान जनसंघ के समर्थन के बावजूद राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने खुद मुख्यमंत्री का पद न लेते हुए, कांग्रेस के बागी हुए वरिष्ठ विधायक गोविंद नारायण सिंह को संयुक्त विधायक दल की सरकार का मुख्यमंत्री बनवा दिया। इसके बाद सन् 1977 से 1990 में राजमाता ने जनता पार्टी व भाजपा नेतृत्व से मिले सीएम बनने के प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए कैलाश जोशी व सुंदरलाल पटवा के नाम प्रस्तावित किए।
एकबार फिर आया 1989 में किंगमेकर की भूमिका निभाने का मौका...
इन सब के बाद सिंधिया परिवार के लिए किंगमेकर की भूमिका निभाने का मौका जनवरी 89 में एकबार फिर आया। इस समय राजीव गांधी माधवराव सिंधिया को केंद्र से प्रदेश की राजनीति में भेजकर मुख्यमंत्री बनाने का मन पक्का कर चुके थे, लेकिन स्व. अर्जुन सिंह, दिग्विजय सिंह व शुक्लबंधुओं का खेमा माधव के नाम पर एकमत नहीं हो सका।
सिंधिया से ही मांगा : अपनी जगह दूसरा वैकल्पिक नाम...
इस पर स्व. राजीव गांधी ने माधवराव सिंधिया से ही अपनी जगह दूसरा वैकल्पिक नाम मांगा और इस तरह मोतीलाल वोरा मुख्यमंत्री बन। मोतीलाल वोरा माधवराव के आगे नतमस्तक थे और उनकी सरकार को मोती—माधव एक्सप्रेस कहा जाता था।
प्रदेश की वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों ने एकबार फिर ग्वालियर के सिंधिया परिवार को किंगमेकर की भूमिका में लाकर खड़ा कर दिया है। यह निर्विवाद तथ्य है कि सवा साल बाद यदि भाजपा प्रदेश की सत्ता में वापसी करती है तो इसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया की ही अहम भूमिका होगी।
Updated on:
17 Mar 2020 05:22 pm
Published on:
17 Mar 2020 05:19 pm
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