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देश की पहली महिला कव्वाल, जिसे गैस ट्रेजेडी के बाद कोई सुन न सका

गैस त्रासदी की 38वीं बरसी पर mppatrika.com आपको बताने जा रहा है उसी गायिका का दर्द जिसे गैस त्रासदी ने खामोशी के सिवा कुछ न दिया...

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भोपाल। देश की पहली महिला कव्वाल के नाम से मशहूर एक गायिका भी गैस त्रासदी का शिकार हुई थीं। अपनी मखमली आवाज और जुदा अंदाज से दुनिया भर के लोगों के दिलों पर राज करने वाली इस भोपाली गायिका की आवाज सुनने दिलीप कुमार से लेकर जैकी श्राफ तक दौड़ पड़ते थे। गैस त्रासदी की 38वीं बरसी पर mppatrika.com आपको बताने जा रहा है उसी गायिका का दर्द जिसे गैस त्रासदी ने खामोशी के सिवा कुछ न दिया...

यहां हम बात कर रहे हैं कव्वाल शकीला बानो भोपाली के बारे में जिन्होंने, भोपाल को अलग पहचान दिलाई। शकीला का जन्म 1942 में और मृत्यु 16 दिसंबर 2002 में हुई। पूरी जिंदगी भोपाल में रहने वाली शकीला की आवाज इतनी पसंद की जाती कि वह अफ्रीका, इंग्लैंड और कुवैत में कव्वाली मुकाबलों में शामिल होने लगीं। इसके साथ ही बॉलीवुड में भी इन्हें हाथों हाथ लिया जाने लगा।

गैस कांड में हो गई थी 'मौत'
शकीला बानो की कव्वाली के दिवाने लोग कहते हैं कि भले ही उनका निधन 16 दिसंबर 2002 को हुआ, लेकिन वो तो बहुत पहले ही खत्म हो गई थीं। 2-3 दिसंबर 1984 को भोपाल गैस त्रासदी का जख्म शकीला को भी मिला। ये दर्द ऐसा था कि दुनिया में उनका वजूद रहने के बावजूद उन्हें दोबारा कोई नहीं सुन सका। जीहां यहां हम आपको बताना चाहते हें कि इस गैस त्रासदी ने उनकी आवाज को खामोशी में बदल दिया। गैस के रिसावा से न केवल उनकी आंख की रोशनी गई, बल्कि उनकी आवाज भी चली गई। अब उनकी जिंदगी खाली हो चली थी। यह वही दौर था जब शकीला की आवाज दुनियाभर में सुनी जा रही थी, उनका गायिकी का कॅरियर आसमान पर था और उसी दौरान किसी गायक की आवाज छिन जाए तो, इसका दर्द शायद ही कोई और महसूस कर पाए।

बेबाक अंदाज से बनाई बेहतरीन छवि
उस दौर में एक मुस्लिम महिला का परदे से बाहर निकलना और पुरुषों के सामने बैठकर कव्वाली करना लोगों को बड़ा हैरान करता था, लेकिन शकीला ने अपने बेबाक अंदाज और दबंग व्यक्तित्व के कारण अपनी अलग ही धाक जमाई थी। काफी लम्बे संघर्ष के बाद उन्हें फि़ल्में और स्टेज पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने का मौका मिला। शकीला बानो ने कभी विवाह नहीं किया। उनके परिवार में एक बहन और एक भाई हैं। उनके साथ बाबू कव्वाल के साथ उनकी जोड़ आज भी जानी जाती है। दोनों के बीच होने वाला मुकाबला दर्शकों को बांधे रखता था।

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बॉलीवुड में भी कमाया नाम
50 के दशक में शकीला बॉलीवुड के संपर्क में आ गई। उस जमाने के सुपर स्टार दिलीप कुमार भी शकीला के फैन हो गए। वे जब दिलीप कुमार के बुलावे पर मुंबई पहुंची तो, कव्वाली के शौकीन लोगों ने उन्हें हाथों-हाथ लिया। इसके बाद फिल्मों में भी उनकी आवाज का जादू चला। 1957 में निर्माता जगमोहन मट्टू ने अपनी फि़ल्म 'जागीर' में एक्टिंग करने का मौका दिया। इसके बाद उन्हें सह-अभिनेत्री, चरित्र अभिनेत्री की भूमिका मिलती रही। ॥रूङ्क कंपनी ने 1971 में उनकी कव्वाली का पहला एलबम बनाया तो पूरे भारत में शकीला बानो एक नयी पहचान मिली।

तब जैकी श्राफ ने की थी मदद
गैस त्रासदी में आवाज छिन जाने के बाद शकीला अक्सर बीमार रहने लगी थीं। उन्हें दमा, डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर की समस्याओं ने घेर लिया था। जब उनका अंतिम दौर अभाव में गुजर रहा था, तब जैकी श्राफ जैसे नामी कलाकार उनकी मदद के लिए आगे आए, लेकिन वो मदद भी काफी नहीं रही। इसके बाद शकीला ने अपना सबकुछ भाग्य पर छोड़ दिया था। उनके इन हालात पर उन्हीं की एक मशहूर कव्वाली याद आ रही है...


'अब यह छोड़ दिया है तुझ पर चाहे जहर दे या जाम दे...'