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गाय चराने ब्रज से यहां तक आ जाते थे श्रीकृष्ण, आज भी मौजूद हैं प्रमाण

घर-घर गोवर्धन पूजा होती है भिंड में, चंबल में जमीन पर आते थे गाय चराने, ये कस्बा था गायों की हद इसलिए बोलते हैं गोहद

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घर-घर गोवर्धन पूजा

भिंड. इलाके में आज गोवर्धन पूजा का पर्व उत्सवपूर्वक मनाया जा रहा है। भिंड जिले में गोवर्धन पूजा ब्रज भूमि की तर्ज पर ही की जाती है। यहां के किसान गाय-भैंस व अन्य पशुओं का पूजन करते हैं। गोबर से जमीन पर गोवर्धन पर्वत की प्रतिमा तैयार की जाती है और फिर पूजा की जाती है। इस इलाके में घर-घर यह उत्सव मनाया जाता है क्योंकि यह माना जाता है कि श्रीकृष्ण यहां तक गाय चराने आते थे. इस बात के कुछ प्रमाण भी बताए जाते हैं.

चंबल अंचल मथुरा-वृंदावन के बहुत नजदीक है। इसलिए कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ब्रज से यहां तक गायों को चराने के लिए आते थे। इसके प्रमाण के रूप में कुछ बातें भी बताई जाती हैं. भिंड जिले का गोहद का नाम इसके सबूत के रूप में बताया जाता है. कहा जाता है कि श्रीकृष्ण की गायों की चराने की सीमा अर्थात गायों की हद के कारण इसका नाम गोहद पड़ा है।

गोहद में भगवान श्रीकृष्ण व राधा रानी के भव्य मंदिर भी बनवाए गए। इसके अलावा यहां की गलियां भी बेहद संकरी हैं। इसे भी ब्रज से संबंधित बताया जाता है. लोग कहते हैं कि गोहद की बनावट भी मथुरा वृंदावन की तर्ज पर की गई, यहां की गलियां भी इसलिए संकरी हैं।

गोहद जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर है। यहां आने-जाने के लिए सड़क मार्ग व रेलवे मार्ग सुलभ है। गोहद के निवासियों का भी यही मानना है. उनका कहना है कि ब्रज की भूमि गोहद तक मानी जाती थी। भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में यहंा तक ब्रज से गायें चराने के लिए आते थे। यही कारण है कि यहां के निवासियों में श्रीकृष्ण व राधा के प्रति विशेष आस्था है।