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मध्यप्रदेश के इन स्थानों से गुजरे थे श्रीराम, जानें पूरा मार्ग

- कैबिनेट बैठक में श्रीरामचन्द्र गमन पथ न्यास को मंजूरी

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भगवान राम हिंदू समाज के आराध्य देव है, उन्हें भगवान विष्णु का सातवां अवतार माना जाता है। अपने इस जीवन काल में उनके द्वारा अनेक राक्षसों का वध किया गया, जिनमें से सबसे प्रमुख रावण था। लेकिन रावण तक पहुंचने से पहले उन्हें वनवास भोगना पडा। इसी वनवास के अंतिम काल में उनके द्वारा रावण का वध किया गया था। ऐसे में आयोध्या से श्रीलंका तक भगवान श्रीराम जिस रास्ते से होते हुए लंका पहुंचे थे, यह रास्ता ही श्रीराम वन गमन पथ (Ram Van Gaman Marg) कहलाता है। ऐसे में श्रीराम मध्यप्रदेश के भी अनेक स्थानों से होते हुए दक्षिण भारत को गए थे, इनमें से मध्यप्रदेश का वह भाग जिस मार्ग से होते हुए श्रीराम गुजरे वहीं पथ मध्यप्रदेश का श्रीराम वन गमन पथ (Ram Van Gaman Marg) कहलाता है।

यहां आपको बताते चलें कि मान्यता के अनुसार वनवास के दौरान भगवान श्रीराम ने सबसे ज्यादा दिन चित्रकूट में बिताए। ऐसे में पग-पग पर राम की निशानियां चित्रकूट में बसी (shivraj cabinet) हैं। मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश की सीमा पर बसे चित्रकूट नगरी के विकास के लिए लंबे समय से कोशिशें चल रही हैं। इसका कारण यह है कि यह मप्र में श्रीराम वन गमन पथ (Ram Van Gaman Marg) का मुख्य हिस्सा है। ऐसे में आज शिवराज सरकार ने एक कदम आगे बढाते हुए गुरुवार को हुई कैबिनेट बैठक (shivraj cabinet) में श्रीरामचन्द्र गमन पथ न्यास को मंजूरी दे दी है।

मध्यप्रदेश- राम के वनवास का केंद्र
भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास मिला, वहीं राम के वनवास में सबसे ज्यादा सौभाग्यशाली मध्यप्रदेश रहा है। यहां पर श्रीराम ने सीता और लक्ष्मण सहित वनवास का सबसे अधिक 11 साल 11 महीने और 11 दिन का समय गुजारा। ज्ञात हो कि मध्य प्रदेश में राम वन गमन पथ चित्रकूट से अमरकंटक तक 370 किलोमीटर है। कहा जाता है कि चित्रकूट में पग-पग पर राम की निशानियां बसी हैं।

ऐसे समझें मप्र में राम वन गमन पथ
मध्यप्रदेश में चित्रकूट से राम की वन की यात्रा शुरू होती है। यहां श्रीराम कामतानाथ मंदिर चित्रकूट से राम स्फटिक शिला और गुप्त गोदावरी के बाद सती अनुसुइया के आश्रम में पहुंचे। ये सभी स्थान सतना व चित्रकूट में स्थित हैं। इसके बाद श्रीराम, सलेहा मंदिर पन्ना, मैहर के बाद कटनी जिले के बड़वारा से होते हुए जबलपुर के शाहपुरा पहुंचे। यहां जबलपुर के ग्वारी घाट से भी भगवान श्रीराम गुजरे हैं। इसके बाद यहां से सतना जिले के राम मंदिर तालाधाम से शहडोल के सीतामढ़ी और फिर अमरकंटक पहुंचे। राम के जन्म की सबसे ज्यादा लीला मध्यप्रदेश में ही हुई हैं।

ज्ञात हो कि चित्रकूट में ही भगवान श्रीराम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचे थे। यहीं से वह राम की चरण पादुका लेकर लौटे। यहां भगवान श्रीराम,पत्नी सीताजी और अनुज लक्ष्मण के साथ साढ़े ग्यारह साल रहे। इसके बाद सतना, पन्ना, शहडोल,जबलपुर,कटनी,अनूपपुर, रीवा आदि के वन क्षेत्रों से होते हुए वह दंडकारण्य चले गए।

रामायण के मुताबिक भगवान राम ने वनवास का वक्त दंडकारण्य में बिताया। छत्तीसगढ़ का बड़ा हिस्सा ही प्राचीन समय का दंडकारण्य माना जाता है। अब उन जगहों को नई सुविधाओं के साथ विकसित किया जा रहा है, जिन्हें लेकर यह दावा किया जाता है कि वनवास के वक्त भगवान यहीं रहे।

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