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विधानसभा से पहले दिया था शिगूफा, लोकसभा तक नहीं मिले सिंधी विस्थापितों को पट्टे

- भोपाल में हैं दो हजार से ज्यादा लोग, 16 मार्च को विधानसभा में हुई थी घोषणा, एक माह में देने थे पट्टे

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Bemetara Patrika

मॉनीटरिंग नहीं होने के कारण जला दिए गए सैकड़ों पेड़, सूख गए हजारों पौधे

भोपाल। शासन की घोषणा के बाद सिंधी विस्थापितों में जो हर्ष की लहर थी वो अब ठंडी पड़ गई है। विधानसभा चुनाव से पहले पट्टे वितरित करने की बात कही गई थी, लेकिन लोकसभा तक भोपाल में बड़ी संख्या में लोगों को पट्टे नहीं मिले।

मूल पट्टेधारियों का रिकॉर्ड जुटाने के लिए उसी समय बैरागढ़ में लगाए गए शिविर में विस्थापितों ने दस्तावेज तो पेश कर दिए, लेकिन इनमें से बड़ी संख्या में लोगों के पास रिफ्यूजी कार्ड नहीं थे, इसके बाद मामला अटकता चला गया। प्रशासन ने राज्य शासन को बचे हुए लोगों की सूची बनाकर भेज दी है। उसके आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई।

भोपाल में ही करीब दो से ढाई हजार सिंधी विस्थापित लंबे समय से रह रहे हैं। इनमें से कई परिवारों में पुरानी पीढ़ी के लोग अब नहीं रहे हैं। ऐसे में नई पीढ़ी के पास दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं। जबकि वे 30 साल से ज्यादा समय से पुराने पट्टों पर ही रह रहे हैं।

इस संबंध में पुनर्वास विभाग से भी जानकारी मांगी तो वहां से 31 दिसंबर 1976 तक की स्थिति में बारह सौ सिंधी विस्थापितों को पट्टे की जानकारी पेश की थी। रिकॉर्ड सिर्फ गांधीनगर में बांटे गए 40 पट्टों का ही मिला है। अन्य पट्टों के रिकॉर्ड कहां है किसी को जानकारी नहीं है। 70 पुराने दस्तावेज भी लोगों के पास नहीं बचे, ऐसे में पट्टों को लेकर पेच फंस गया है।

16 मार्च को हुई थी घोषणा, एक माह में देना था

विधानसभा में 16 मार्च को प्रदेश भर के साढ़े चार हजार सिंधी विस्थापितों को पट्टे देने की बात कही गई थी। ये पूरा काम एक माह में होना था। लेकिन आज तक पूरा नहीं हुआ। भोपाल में ये लोग ईसरानी मार्केट, गांधी नगर, बैरागढ़ और करोंद में रहते हैं।

सब हवा हवाई है, एक को नहीं मिला

70 साल बाद लोगों से पुराने दस्तावेज मांगे जा रहे हैं। जो लोगों के पास होना असंभव सा है। सरकार ने घोषणा में एक माह में पट्टा देने की बात कही थी, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ। भाजपा ने भी कुछ नहीं किया। भोपाल में करीब दो से ढाई हजार सिंधी विस्थापित रह रहे हैं।

भगवान दास ईसरानी, अध्यक्ष, सिंधी सेंट्रल पंचायत भोपाल

शासन के निर्देश के बाद जिला प्रशासन के अधिकारियों के पास पावर थे कि वे इसका हल निकाल सकें, लेकिन उन्होंने सूची बनाकर शासन के पास भेज दी है।

जगदीश छावानी, अधिवक्ता

हमनें इस संबंध में प्रस्ताव बनाकर शासन के पास भेज कर मार्ग दर्शन मांगा है। अब तो चुनावों के बाद ही कुछ हो सकेगा।

केके रावत, एसडीएम बैरागढ़