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रणनीतिक दांवपेंच: आखिरकार श्यामा भैया ने ही पार लगाई नैया

भोपाल। मध्यप्रदेश व देश की राजनीति से जुड़ी कुछ पुरानी यादें...

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रणनीतिक दांवपेंच: आखिरकार श्यामा भैया ने ही पार लगाई नैया

बात 1967 की है। देश की राजनीति संक्रमण काल से गुजर रही थी। ऐसे में डॉ. राममनोहर लोहिया ने गैर कांग्रेसी सरकार और मजबूत विपक्ष का नारा बुलंद किया। 1967 से 1972 के बीच प्रदेश की विधानसभा में काफी उठा-पठक होती रही।

विधानसभा भंग होने की नौबत आ गई, तब संविद सरकार ने प्रदेश को मध्यावधि चुनाव से बचाया। आखिर में श्यामाचरण शुक्ल ने दोबारा कांग्रेस सरकार का मुखिया बनकर नैय्या पार लगाई।

पूर्व सांसद व समाजवादी नेता कल्याण जैन ने कहा- मैं इंदौर से और आरिफ बेग सोशलिस्ट विधायक बने। पं. यज्ञदत्त शर्मा कम्यूनिस्ट पार्टी समर्थित नागरिक समिति से विधायक चुने गए। सरकार कांग्रेस की बनी। डीपी मिश्र को मुख्यमंत्री बनाया गया। करीब चार माह बाद विधानसभा सत्र शुरू हुआ और अलग-अलग मुद्दों पर बहस हुई।

प्रदेश में शिक्षा के एक मुद्दे पर मत विभाजन की स्थिति बनी, जद्दोजहद के बाद भी सरकार हार गई। मिश्र हाईकमान के पास पहुंच गए। उन्होंने बागी कांग्रेस विधायकों की मंशा बताते हुए विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर डाली।

पार्टी के शीर्ष नेताओं ने इसे नजरअंदाज कर दिया। इसी बीच कांग्रेस के बागी विधायक, जनसंघी और हम लोग दिल्ली पहुंच गए। आखिरकार संविद सरकार बनना तय हुआ और गोविंद नारायणसिंह मुख्यमंत्री बने। उस समय विधानसभा में हम करीब 18 समाजवादी थे।

डेढ़ साल बाद पलटा पासा
संविद सरकार बनने के करीब डेढ़ साल बाद कांग्रेस ने बागी विधायकों को फिर पार्टी में लेने का मन बना लिया। पासा पलट गया, सिंह को इस्तीफा देना पड़ा। आदिवासी नेता राजा नरेशचंद्र को मुख्यमंत्री बनाया गया। इससे भी काम नहीं चला।

आखिरकार कांग्रेस ने 14 दिन बाद अपने सभी विधायकों को राजी करके पार्टी की ओर से श्यामाचरण शुक्ल का नाम रखा, जिस पर सभी की सहमति बनी। उन्होंने विधानसभा का कार्यकाल पूरा किया। चुनाव हुए तो फिर कांग्रेस सरकार बनी, जो 1977 तक चली।

नौ राज्यों में बनी थी संविद सरकार
डॉ. लोहिया ने उस समय विपक्षी दलों को एक करने के लिए गैर कांग्रेसी सरकार की रणनीति बनाई और प्रदेश सहित पूरे देश में गठबंधन नेतृत्व को आगे लाए। इससे तीन बार सरकारें बनीं और टूटीं। आखिर में कांग्रेस की ओर से श्यामाचरण शुक्ल मुख्यमंत्री बने। उसी दौरान उत्तर प्रदेश में चरण सिंह उभरे, बिहार में महादेव प्रसाद का नाम चला, हरियाणा, उड़ीसा सहित नौ राज्यों में संविद सरकार यानी विपक्ष की मदद से सत्ता पक्ष के बागियों की सरकारें बनीं।
(जैसा पूर्व सांसद व समाजवादी नेता कल्याण जैन ने संदीप पारे को बताया।)