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सनीचरी ने जिदंगी में कभी हार नहीं मानी, पेट की खातिर बन जाती है रुदाली

128 मिनट की फिल्म पर भारी है 120 मिनट का यह नाटक,शहीद भवन में नाटक रुदाली का मंचन...

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रुदाली

भोपाल। बांग्ला की विख्यात लेखिका महाश्वेता देवी की एक प्रसिद्ध कहानी पर आधारित नाटक 'रुदालीÓ का मंचन सोमवार को त्रिकर्षि नाट्य संस्था के कलाकारों ने शहीद भवन में किया। महाश्वेता देवी की यह कहानी स्त्री जीवन की विडंबना को प्रतिबिंबित करती है। कई मंचों पर सफलतापूर्वक खेले जा चुके इस नाटक की लोकप्रियता आज भी उतनी ही है। भोपाल में इस दो घंटे के नाटक का निर्देशन वरिष्ठ रंगकर्मी केजी त्रिवेदी ने किया। नाटक का यह दूसरा शो था, इससे पहले मई 2018 में भी इस नाटक का मंचन शहीद भवन में हो चुका है।

नाटक में दिखी सनीचरी के संघर्ष की कहानी

नाटक का केन्द्रीय चरित्र सनीचरी है जिसे शनिवार के दिन पैदा होने के कारण यह नाम मिला है। साथ ही उसे मिली हैं कुछ सजाएं। यानी समाज मानता है कि वह असगुनी है इसलिए उसके परिवार में कोई नहीं बच पाया। एक-एक कर के सब काल की भेंट चढ़ गए। लेकिन सनीचरी की आंखें कभी नम नहीं हुईं। वह कभी नहीं रोई, जब बेटा मरा तब भी नहीं। पोते का छोड़ चला जाना, इस दुख के बाद उसकी बचपन की सहेली बिखनी का मिलना उसके जीवन की क्षणिक खुशी है। सनीचरी जीवन भर संघर्षों करती और लड़ती है। लेकिन आखिरकार ऐसी परिस्थितियां बननी हैं कि उसे रोटी के लिए रुदाली का काम करना पड़ता है।

एक पात्र के रूप में सनीचरी उस तबके का प्रतिनिधित्व करती है जिसके पास न चुनाव की स्वतंत्रता होती है, न निश्चिंत न होने के साधन, लेकिन वह कभी टूटती नहीं है। उसकी जिजीविषा हमेशा उसका साथ देती है। वह अपना सहारा खुद बनती है।

रुदाली पर बन चुकी है फिल्म

बंगाली की मशहूर साहित्यकार महाश्वेतादेवी राजस्थानी संस्कृति से प्रभावित थीं। उनकी राजस्थान की पृष्ठभूमि पर आधारित कहानी रुदाली पर कल्पना लाजमी ने इसी नाम से वर्ष 1993 में एक फिल्म भी बनाई थी। फिल्म उस समय बहुत चर्चित रही थी। फिल्म का गीत दिल हूम हूम करे... गीत आज भी लोगों की जुबां पर है। गुलजार के गीत, भूपेन हजारिका के संगीत और लता की आवाज में सजा यह गीत हमेशा महाश्वेतादेवी की याद दिलाता है। 128 मिनट की इस फिल्म में डिंपल कपाडिय़ा, राखी गुलजार, राज बब्बर और अमजद खान मुख्य भूमिका में थे।

मंच पर नजर आई कलाकारों की दमदार एक्टिंग
प्ले में पूजा मालवीय सनीचरी के किरदार को पूरे नाटक के दौरान जिया। एक्टिंग के दम पर पूजा ने दर्शकों की आंखे नम कर दीं। वहीं परवतिया के किरदार में शारदा सिंह ने खड़ूस बहू की एक्टिंग ऐसी कि हर शख्स को उसके किरदार से नफरत हो जाए। वहीं सनीचरी की पड़ोसन के रूप में लक्ष्मी की रोल प्रज्ञा चतुर्वेदी ने निभाया।

लक्ष्मी का किरदार एक कूबड़ महिला का था जिसे प्रज्ञा ने पूरे नाटक के दौरान बखूबी निभाया। वहीं ठाकुर माधव सिंह के मुनीम बच्चन लाल के किरदार में सिद्धार्थ दाभाड़े खूब हंसाते नजर आए। प्ले के दौरान प्रॉप्स बेहतर थे लेकिन बिन पानी का मटका दर्शकों का खटकता है, पानी पीने के सीन में महसूस हुआ कि सीन बनावटी है।

तीन डायलॉग से किया समाज पर कटाक्ष

- गरीबों का जीना मुश्किल, मरना और भी मुश्किल होता है।
- देश के प्रधान से लेकर मसान तक हर कोई कमीशन लेता है।

- आज पैसों के लिए बेटा, मां-बाप को मार देता है।

असल में कौन हैं रुदाली
ऐसी मान्यता रही है कि पहले के जमाने में पश्चिमी राजस्थान के कुछ इलाकों में उच्च श्रेणी के पुरुष के निधन पर एक विशेष वर्ग की महिलाओं को रोने के लिए बुलाया जाता था। रोने के बदले उन्हें अनाज और कुछ रुपए दिए जाते थे। ऐसा कहा जाता है कि गांव वालों को निधन की सूचना देने का माध्यम भी माना जाता था।