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भाजपा-कांग्रेस में गुटबाजी, नेताओं के वर्चस्व की चाह में उलझा संभाग

भाजपा-कांग्रेस में गुटबाजी, नेताओं के वर्चस्व की चाह में उलझा संभाग ताई-भाई की खींचतान, इंदौर को नहीं मिली मंत्री की कुर्सी

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mahamukabla-2018

इंदौर. विधानसभा में दूसरा सबसे ज्यादा 37 सीटों वाला इंदौर संभाग प्रदेश का भविष्य तय करता है। यहां वर्चस्व रखने वाली पार्टी की प्रदेश में सरकार तय करने में अहम भूमिका रहती है, लेकिन दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के बड़े नेताओं की आपसी खींचतान के चलते ये क्षेत्र दोनों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। भाजपा के तो यह हाल है कि इंदौर जिले को ताई-सुमित्रा महाजन और भाई-कैलाश विजयवर्गीय की आपसी खींचतान के कारण मंत्री का एक भी पद लंबे समय से शिवराज कैबिनेट में नहीं मिला।


- इंदौर : टिकट के समय साफ दिखता है मतभेद
इंदौर की नौ सीटों पर सुमित्रा महाजन और कैलाश विजयवर्गीय के साथ ही भाजपा के बड़े नेताओं का दखल रहता है। 2013 में ज्यादा से ज्यादा समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए भाजपा नेताओं का मतभेद सतह पर आ गया था। सुमित्रा महाजन इंदौर-1 और सांवेर से अपने समर्थक सुदर्शन गुप्ता और राजेश सोनकर को टिकट दिलवाने कामयाब रही थीं। वहीं, कैलाश विजयवर्गीय ऊषा ठाकुर, रमेश मंदोला और जीतू जिराती को टिकट दिलाने में कामयाब रहे थे। इंदौर में तीसरी ताकत महापौर मालिनी गौड़ की है। वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की करीबी मानी जाती हैं। इंदौर में कांग्रेस के भले ही एक विधायक है, लेकिन आंतरिक मतभेद भाजपा से कम नहीं है। कांग्रेस मीडिया सेल की अध्यक्ष शोभा ओझा, राष्ट्रीय सचिव सज्जन सिंह वर्मा, वरिष्ठ नेता महेश जोशी सहित वर्तमान कार्यवाहक अध्यक्ष जीतू पटवारी, प्रदेश उपाध्यक्ष तुलसी सिलावट में आपसी खींचतान चल रही है। हालत ये है कि यहां कांग्रेस का शहर और जिला संगठन ही नहीं खड़ा हो पाया है।


- धार : विक्रम और रंजना के बीच अदावत
भाजपा के वरिष्ठ नेता विक्रम वर्मा और पूर्व मंत्री रंजना बघेल में आपसी अदावत काफी ज्यादा है। धार में सांसद सावित्री ठाकुर भी इस बार विधानसभा चुनाव लडऩा चाहती हैं। वर्मा की पैठ धार शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्र में है। हालांकि, बघेल इसे नकारने की कोशिश करती रही हैं। धार शहर में वर्मा की खिलाफत करने वालों को नगरीय निकाय चुनावों में मिली जीत ने यहां के समीकरणों को बदला है। कांग्रेस में भी आपसी खटपट कम नहीं है। जिलाध्यक्ष बालमुकुंद सिंह गौतम, विधायक उमंग सिंघार और हनी बघेल के अपने-अपने इलाके तय हैं, जिनमें आपसी वर्चस्व को लेकर लड़ाई लगातार जारी है। वहीं, आदिवासी सीटों वाले इस जिले में आदिवासी संगठन जयस गहरी पैठ बना चुका है।

- बड़वानी-खरगोन : आदिवासी जिलों में उलझनें ज्यादा
दोनों आदिवासी जिलों में भी राजनीतिक विवाद गहरे हैं। यहां से दो मंत्री अंतरसिंह आर्य और बालकृष्ण पाटीदार हैं। भाजपा सांसद सुभाष पटेल और पाटीदार समाज का नेतृत्व करने वाले राज्यमंत्री बालकृष्ण पाटीदार में उलझनें हैं। इसका नतीजा संगठन स्तर पर कई बार देखा जा चुका है। वहीं, बाबूलाल महाजन भी यहां प्रमुख ताकत हैं। चुनावों में उम्मीदवारी के लिए उन्होंने जिलाध्यक्ष का पद तक छोड़ दिया था। कांग्रेस में भी यहां सबकुछ ठीक नहीं है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव के साथ ही वर्तमान कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बाला बच्चन सहित विजयलक्ष्मी साधौ लगातार अपना वर्चस्व जताने की कोशिश करते रहते हैं। यादव जहां पछड़ा वर्ग और किसानों की राजनीति करते हैं, वहीं बच्चन आदिवासियों के नेता के तौर पर अपनी ताकत दिखाते हैं। पार्टी में पदों का मामला हो या टिकटों का मामला दोनों ही अपने-अपने तरीके से खुद को बड़ा बताने की कोशिश करते रहे हैं।


- खंडवा-बुरहानपुर : बगावत की सुर यहां भी
पूर्वी निमाड़ के ये दोनों जिले भाजपा की राजनीति में त्रिकोणीय संघर्ष के लिए जाने जाते हैं। सांसद और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान, मंत्री विजय शाह और अर्चना चिटनीस के बीच में वर्चस्व को लेकर झगड़े चलते रहे हैं। यहां आपसी रार इतनी ज्यादा रही है कि पिछले चुनावों में चौहान के चलते शाह ने बगावत करने की धमकी तक दे दी थी। चिटनीस और नंदकुमार का विवाद जगजाहिर है। कांग्रेस में भी यहां पहले तनवंत सिंह कीर और हुकमसिंह यादव में ठनी रहती थी। वहीं, वर्तमान में भी यहां पर विवाद कम नहीं है।

- झाबुआ-अलीराजपुर : भूरिया-पटेल परिवार में तनातनी
ये क्षेत्र कभी कांग्रेस का गढ़ रहा है। यहां की राजनीति भूरिया और पटेल परिवारों के बीच ही रही है। कांग्रेस में यहां से कांतिलाल भूरिया का परिवार जहां राजनीति करता रहा है। वहीं, भाजपा से दिलीप सिंह भूरिया नेतृत्व करते रहे थे। दिलीप की मृत्यू के बाद उनकी बेटी निर्मला भूरिया भाजपा की बड़ी नेता के तौर पर उभरी हैं, लेकिन रतलाम-झाबुआ लोकसभा उपचुनाव में हार के बाद उनका ग्राफ गिरा है। यहां पर सबसे ज्यादा झगड़े कांग्रेस के अंदर चलते रहे हैं। पिछले चुनावों में जहां कांतिलाल भूरिया के परिवार में बगावत हो गई थी उस समय कलावती भूरिया निर्दलीय चुनाव लड़ी थी। वहीं, दिलीप के न रहने पर भाजपा को भी दिक्कत आ रही है।