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‘तैयार रखिए कैश’…1 सितंबर से अस्पतालों में नहीं होगा ‘कैशलेस’ इलाज !

MP News: एक सितंबर से दो प्रमुख बीमा कंपनियों के बीमाधारकों का कैशलेस इलाज अस्पताल नहीं करेंगे।

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फोटो सोर्स: पत्रिका

फोटो सोर्स: पत्रिका

MP News: हेल्थ इंश्योरेंस यानी स्वास्थ्य बीमा कंपनियों के कैशलेस इलाज को लेकर अभी असमंजस बरकरार है। क्योंकि, बीमा कंपनियों और अस्पतालों के बीच पेमेंट को लेकर छिड़ी जंग पर अभी कोई फैसला नहीं हो पाया है। ऐसे में एक सितंबर से दो प्रमुख बीमा कंपनियों के बीमाधारकों का कैशलेस इलाज अस्पताल नहीं करेंगे।

अस्पताल और इंश्योरेंस के बीच मचे घमासान से बीमाधारक मरीज जूझ रहे हैं। उन्हें इलाज के लिए नकद राशि का इंतजाम करना पड़ेगा। प्रदेश में 30 लाख लोगों ने निजी कंपनियों से इंश्योरेंस लिया है।

क्यों है विवाद

हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों ने पुराने कॉन्ट्रैक्ट की दरों को बढ़ाने से इनकार कर दिया है। जबकि, बीमा नियामक कंपनी, इरडा सभी अस्पतालों के लिए कॉमन इंपैनलमेंट के प्रस्ताव पर जोर दे रही हैं।

मप्र में हेल्थ इंश्योरेंस

-30 लाख हेल्थ इंश्योरेंस के कवर में

-०5 से 50 लाख रुपए तक के बीमाधारक

-०3 से 5 लाख रुपए तक का ज्यादातर बीमा क्लेम

-26 बीमा कंपनियों में से 13 की सेवाएं एमपी-सीजी में

-5 कंपनियां हेल्थ इंश्योरेंस में मप्र में कर रही हैं काम

अस्पतालों का तर्क

क्लेम में देरी, रिंबर्समेंट अमाउंट में कटौती और क्लेम सेटेलमेंट में देरी की वजह से कैशलेस इलाज नहीं कर रहे। जबकि हर साल इलाज महंगा होने के बावजूद बीमा कंपनियां टैरिफ घटाने पर जोर दे रही हैं। इसके बाद एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स इंडिया ने 15,000 सदस्य अस्पतालों से कहा है कि वे एक सितंबर से बजाज एलायंज के ग्राहकों के लिए कैशलेस इलाज बंद कर दें।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

अस्पताल कैशलेस की शर्तों के अनुसार इलाज करते हैं। लेकिन कई बार बीमाधारक मरीज के अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद बीमा कंपनी अस्पताल को पूरा क्लेम नहीं देतीं। हालांकि,सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियां-न्यू इंडिया इंश्योरेंस, यूनाईटेड इंडिया इंश्योरेंस, नेशनल इंश्योरेंस और ओरिएंटल इंश्योरेंस की कैशलेस सुविधा में कोई दिक्कत नहीं है। पूषण भट्टाचार्य, सहसचिव, सेन्ट्रल जोन इंश्योरेंस एपलाइज एसोसिएशेन (मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़)

अक्सर अस्पताल नहीं बताते कि इलाज में कितना खर्च आएगा। कई चार्जेस भी जोड़ते हैं। डिस्चार्ज की तारीख आगे बढ़ाते हैं। लेकिन सरकारी बीमा कंपनियों में ऐसा नहीं होता। इस तरह के मुद्दे को सुलझाना चाहिए। ताकि कंपनियों की साख बनी रहे। एमटी सुशीलन, महासचिव, वेस्टर्न रीजन जनरल इंश्योरेंस एपलाइज एसोसिएशन, भोपाल