
ठीक 9 बजे यूनियन कार्बाइड परिसर से निकला पहला कंटेनर (left to right), गुरुवार सुबह 4.17 पर पीथमपुर पहुंच गया जहरीला कचरा।
Toxic Waste Shifted: चालीस साल पहले दुनिया के सबसे बड़े औद्योगिक हादसे के बाद उसके कचरे से अब जाकर भोपाल को मुफ्त मिली। पांच दिन यानी 114 घंटे ये आपरेशन चला। वीवीआइपी सिक्योरिटी के बीच 12 ट्रकों में 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को बुधवार रात 9 बजे रवाना कर दिया। वहीं ये सुबह 4.17 मिनट पर पीथमपुर पहुंच गए। कचरे के विरोध में रहवासियों में आक्रोश है, वे विरोध कर रहे हैं, सुरक्षा के लिहाज से 300 से ज्यादा जवान यहां तैनात हैं। कचरा जलाने के विरोध में आज रैली निकाली जाएगी तो कल शहर बंद का आह्वान किया गया है।
इधर भोपाल में कजरा उठाने के दौरान सुरक्षा के लिए आगे पुलिस फोर्स थी तो ट्रैफिक बाधित न हो इसके लिए हर चौराहे पर इंतजाम। नजारा बॉलीवुड फिल्म जैसा था। गैसकांड के बाद यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री का कचरा भोपाल के पर्यावरण से लेकर लोगों की सेहत के लिए घातक बना था। उच्च स्तर पर बातचीत के बाद हटाने का काम शनिवार सुबह 4 बजे से शुरू हुआ। रामकी इनवायरो के 12 कंटेनर पीथमपुर के तारापुर औद्योगिक क्षेत्र से भोपाल पहुंचे। गैस राहत, प्रशासन, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी और सुरक्षा बल मौजूद रहा।
फैक्ट्री के अंदर जाने वाले रास्तों पर बैरीकेड लगाकर सील की स्थानीय निवासियों का प्रवेश पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया। बुधवार रात जब कचरे से लदे कंटेनर का काफिला निकला डीआइजी बंगला चौराहे से गणेश मंदिर तक करीब एक किमी का क्षेत्र में ट्रैफिक रोक दिया।
शनिवार से शुरू हुई इस कवायद में 100 एक्सपर्ट सहित एक हजार लोगों का अमला जुटा। इसमें अधिकारी, सुरक्षा एजेंसी सहित टेक्निकल लोग शामिल रहे। तारापुर इंसीनरेटर में बनेगा राख: तीन माह में कचरे को पीथमपुर के तारापुर इंडस्ट्रियल एरिया में जलाया जाएगा। यहां राख बनाया जाएगा। इस राख का भी ट्रीटमेंट होगा।
कचरा कचरा 126 करोड़ रुपए में डिस्पोज होगा। प्रतिकिलो लागत 3750 रुपए होगी। 2012 में जर्मन कंपनी जीआइजेड ने 22 करोड़ मेें हैंबर्ग में इसे खत्म करने का प्रस्ताव दिया, तब सरकार ने महंगा बता खारिज कर दिया।
वह 2 दिसंबर, 1984 की रात थी, यह 1 जनवरी, 2025 की रात है। तब देर रात शहर की हवा में जहर घुल गया था, आज उस जहर के अवशेष विदा हो रहे हैं। उस रात गैस के असर से आंखों में आंसू थे, आज जहर के अवशेषों की विदाई से दिल में सुकून है। 40 साल से दिल में जख्म जिंदा थे, वे तो मिट नहीं सकेंगे पर कलंक का कचरा साफ होने से हमारी जमीन फिर से आबाद हो सकेगी।
हकीकत यह भी है कि गैस त्रासदी के निशान कभी नहीं मिटाए जा सकेंगे। अब तक तीन पीढिय़ां गैस के दर्द को झेल चुकी हैं। कैंचीछोला, राजेंद्र नगर, जेपी नगर, चांदबड़, रेलवे कॉलोनी से लेकर अशोका गार्डन तक नई जनरेशन की नसों में भी गैस का असर मौजूद है।
आज तक कोई असरकारक दवा नहीं मिली न संतोषजनक मुआवजा। संतोष यह है कि 40 साल बाद यूनियन कार्बाइड कारखाने का कचरा भोपाल से अलविदा हुआ। अब इस खाली जमीन पर नए सिरे से सुनियोजित ढंग से कोई ऐसा उम्मीदों का चमन खिलना चाहिए, जो दर्द की बजाय इंसानों के लिए दवा का काम कर सके।
Updated on:
02 Jan 2025 10:55 am
Published on:
02 Jan 2025 10:52 am
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