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भोपाल

ट्रेड यूनियन नेताओं को साधने श्रमिकों का हो रहा शोषण

भेल भोपाल में ठेका श्रमिकों की विभिन्न परिभाषाएं, प्रबंधन उदासीन
 

भोपालMar 26, 2020 / 07:24 pm

Rohit verma

ट्रेड यूनियन नेताओं को साधने श्रमिकों का हो रहा शोषण

ट्रेड यूनियन नेताओं को साधने श्रमिकों का हो रहा शोषण

भोपाल. भेल भोपाल के अंदर यूं तो श्रम कानून के उल्लंघन को लेकर विभिन्न बातें सामने आती रहती हैं, पर ठेका श्रमिक की नब्ज पकड़कर प्रबंधन ने श्रमिकों के शोषण के जो विभिन्न तरीके इजाद किए हैं ये देश में शायद कहीं नहीं मिलेंगे। भेल भोपाल में ठेका श्रम कानून के तहत कार्य करने वाले करीब 8 हजार ठेका श्रमिक नियोजित हैं। यह ठेका श्रमिक श्रम अधिनियम के तहत कार्य करते हैं। प्रबंधन भी अधिनियम का लाभ उठाकर पल्ला झाड़ लेता है।

ऐसे आते हैं श्रमिक
भेल भोपाल में वर्ष कान्टै्रक्ट, लेबर सप्लाई, जॉब सहित अन्य कान्टै्रक्ट हैं। इन सभी को प्रबंधन सुविधानुसार और श्रमिकों को भ्रमित करने के लिए विभिन्न माध्यम तैयार किए हैं। इसमें सर्व प्रथम पांच सोसायटियों के माध्यम से आने वाले करीब 12000 हजार ठेका श्रमिक कार्यरत हैं। यह वर्षों से लेबर सप्लाई के माध्यम से भेल में नियोजित हैं। इन्हें कर्मचारियों जैसी पूरी सुविधा देने के साथ ही नौकरी में बे्रक भी नहीं दिया जाता।

 

भ्रष्ट्राचार कहां
सूत्रों की माने तो वर्ष जॉब कान्टै्रक्ट के माध्यम से होने वाले कार्यों में अधिकारियों द्वारा मनपसंद व्यक्तियों को पास रख लिया जाता है। जो कि उनके पीए या चाय-पानी पिलाने का काम करते हैं। इनका पेमेंट ठेकेदार द्वारा कराया जाता है। उनके वेतन के बराबर जॉब का भुगतान ठेकेदारों को कर दिया जाता है। फिर भी ठेकेदार की राशि पूरी नहीं हो पाती है तो टेम्परेरी काम बताकर 10-20 हजार रुपए का अलग से भी भुगतान करा दिया जाता है। भेल भोपाल एक मात्र अकेली संस्था है, जहां ऐसी व्यवस्था चलाई जा रही है। अधिकारी इसे बदलने में खास रुचि नहीं दिखा रहे हैं। दूसरी ओर पांच लेबर सप्लाई संस्थाओं के माध्यम से ट्रेड यूनियन नेताओं को साधने, प्रोत्साहित करने का काम प्रबंधन करता आ रहा है।

इस तरह रुक सकता है ठेकेदारी का खेल
भेल के अधिकारियों ने जरूरत से ज्यादा ठेका श्रमिक रखे हुए हैं। ठेकेदारों को मिलने वाली राशि को अदेश समाहित होने के पूर्व ठेका श्रमिकों में बांट दी जाती है। ठेकेदारों द्वारा श्रमिकों को काम पर रखने एवं उनके वेतन के अनुसार राशि की मांग की जाती है, जिसे पूरा करने अधिकारी कंटरजेंसी वर्क के नाम पर ठेकेदारों को पैसा दिलाते हैं। जो कार्य किया ही नहीं जाता उस बिल का भी भुगतान होता है, या ऐसे ठेकेदार जिसकी राशि बची होती है, का फर्जी बिल भुगतान कर ठेकेदार को राशि दिलाई जाती है। इन भ्रष्टाचार को रोकने भेल के सीएलसी विभाग (ठेका श्रमिक प्रकोष्ठ) को भेल के समस्त ठेकों की कंट्रोलिंग, टेंडर, बिलिंग का कार्य सौंपा जाना चाहिए। यह सीधे तौर पर भेल कार्पोरेट कार्यालय और सेंट्रल विजिलेंस की देखरेख में होना चाहिए।

 

ब्लू कम्प्यूटर सेंटर: इससे भेल द्वारा कम्प्यूटर ऑपरेटर लिए जाते हैं। इन्हें समय पर वेतन मिलने के साथ ही सोसायटी वर्करों की तरह सुविधाएं दी जाती हैं। वर्ष में एक माह का बे्रक दिया जाता है।

स्किल डवलपमेंट व ब्ल्यू टेक्निकल: यह संस्थाएं भी भेल लेडीज क्लब के तहत आती हैं। यहां से भेल के विभिन्न उत्पादन विभागों में लेबर सप्लाई की जाती है। इन कर्मचारियों को ड्रेस, जूता आदि सुविधाओं के साथ ही मार्केट रेट पर आवास भी मुहैया कराए गए हैं। इन्हें महीने में कभी 15-20 दिन तो कभी महीने भर का बे्रक दे दिया जाता है।

हेल्पिंंग हैंड: यह भी भेल लेडीज क्लब की एक संस्था है, जिसके माध्यम से भेल के विभिन्न विभागों में मेन पावर सप्लाई की जाती है। यूं तो यह संस्था भेल के मृत कर्मचारियों की विधवाओं को रोजगार देने के लिए बनाई गई थी, लेकिन अब यहां उन्हें ही काम मिलता है, जिन पर भेल अधिकारियों की मेहरबानी हो।

 

वर्ष कान्टै्रक्ट : इसके माध्यम से कार्य के आधार पर श्रमिकों को विभिन्न ठेकेदारों के माध्यम से रखा जाता है, जिसमें कि विभिन्न कार्यों का ठेका दिया जाता है।

जांब कान्टै्रक्ट : भेल के निर्माण विभागों में जॉब निर्माण के लिए जॉब की संख्या के आधार पर ठेका दिया जाता है। यह श्रमिक उन जॉबों की संख्या पूरी होने तक रहते हैं।

भेल के सीएलसी विभाग में कुछ अधिकारियों द्वारा लॉ सीएलसी व आईआर विभागों को अपने अधीन करने श्रम कानूनों की मनगढ़ंत परिभाषा बना ली है। इसके दुष्परिणाम हैं कि भेल के ठेका श्रमिक दुर्गति के शिकार हो रहे हैं।
मनोज सिंह जादौन, अध्यक्ष, ठेका श्रमिक

ठेका श्रमिकों के वेतन सहित अन्य सुविधाएं जैसे पीएफ, इएसआई आदि का ख्याल सीएलसी विभाग द्वारा रखा जाता है। वेतन के लिए ठेकेदारों को भुगतान किया जाता है, ठेकेदार श्रमिकों का समय पर भुगतान करते हैं।
संजय राजवंशी, पीआरओ भेल

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