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Ramzan 2022 : क्यों आम दिनों से अलग और खास हैं रमज़ान? जानिये खास बातें

...तो इसलिये साल के दूसरे महीनों से खास है रमज़ान।

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Ramzan 2022

Ramzan 2022 : क्यों आम दिनों से अलग और खास हैं रमज़ान? जानिये खास बातें

भोपाल. इस्लािमिक मान्यताओं के अनुसार, वैसे तो अल्लाह से अपनी जरूरतों के लिये जीवन में किसी भी समय मांग जा सकता है। लेकिन, रमज़ान को अल्लाह की इबादत के लिये एक विशेष महीना बताया गया है। जिस तरह कोई भी महीना साल में एक बार ही आता है, उसी तरह रमजान भी अरबिक हिसाब से एक महीना है, जो साल में एक बार आता है। इस महीनें में रखे जाने वाले रोज़े हर सेहतमंद मुसलमान पर फर्ज (जरूरी) हैं। इन दिनों में मुसलमान दिन में रोजे के माध्यम से जीवन की बुराइयों से दूर रहते हैं, जबकि रमज़ान की रातों में अल्लाह की इबादत करते हैं।


साल 2022 में रमजान की शुरुआत 2 अप्रैल से चांद दिखने पर होने की उम्मीद काफी ज्यादा है। ऐसे में अगर 2 अप्रैल यानी शनिवार को चांद दिखता है तो इसी से माह-ए-मुबारक की शुरुआत हो जाएगी। हालांकि, बीते दो साल आए रमजान कोरोना के प्रतिबंधों के बीच गुजरे हैं। ऐसे में इस बार राजधानी भोपाल के बाजारों में रोनक बढ़ गई है। क्योंकि, अकसर लोग दिन में रोजा होने की वजह से ज्यादातर खरीदारी पहले ही कर लेते हैं। बाजारों में ग्राहकों की चहलपहल देखने को मिल रही है।

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रमज़ान क्यों है खास?

भोपाल की बैत-उल-मुकर्रम मस्जिद के इमाम मुफ्ती फैयाज आलम ने रमजान की फ़जीलत (महत्व) के बारे में बताते हुए कहा कि, रोज़ा हमारे ऊपर इसलिए भी फ़र्ज़ है कि, हम इस पूरे माह के दिनों में बुराइयों से बचकर अच्छे कामों पर किस तरह चल सकें और इसी नियम को साल के अन्य 11 महीनों में अपने ऊपर लागी रखें। हर मुसलमान को इस महीने अपने रब की खूब-खूब इबादत करता है, उससे अपने अंदर की बुराइयों से माफी देने की मांग करता है, ताकि अपने रब को राजी कर सके। बता दें कि, कुरआन (आसमानी किताब) के मुताबिक, इस महीने की खास बात ये है कि, इस महीने में सच्चे दिल से माफी मांगने वाले बंदे की दुआ को कबूल करते हुए अल्लाह उसकी माफी को कबूल करता है।


तीन खास अशरों से मिलकर बना रमजा़न

रमजान के तीस दिनों को दस दस दिनों के अशरा (10 दिनों के समूह) में बांटा गया है। रमजान के इन तीनों अशरों का अलग अलग महत्व होता है। हर दस दिन को 1 आशरा कहते है पहला आशरा रहमत का अशरा होता है। दूसरा आशरा मगफिरत के दस दिन कहलाते हैं और तीसरा आशरा यानी जहन्नम से छुटकारे के लिये खास माने जाते हैं। यानी अगर कोई बंदा अपने रव से सच्चे दिल से इस अशरे में किये गए पापों का प्राश्चित करे, तो उसे अल्लाह जरू माफ कर देता है।


तराबीह क्या है?

दिन के समय रोजा रखने वाले रोजदार रात में एक विशेष नमाज (तराबीह) पढ़ते हैं। ये विशेष नमाज रात की आखिरी फर्ज नमाज़ ईशां के बाद अदा की जाती है। इस विशेष नमाज में नमाजी को 2-2 करके 20 रकात पढ़नी होती हैं।


रोजा क्या है?

रोज़ा का मतलब होता है, खुद को मनचाही से रोककर रब चाही की ओर लाना। अच्छे काम करना और खुद को बुराइयों से रोका रखना, रोज़े और रमज़ान के आदर्शों को अपने जीवन में लागू करना है।


कौनसा रोजा अल्लाह कबूल करता है?

रोजा हर एक सेहतमंद मुसलमान पर फर्ज है। ऐसे में लगभग सभी लोग रोजा रखते हैं। लेकिन, रोज़े को अल्लाह के यहां कबूल होने के लिए जरूरी है कि, हम झूठ, धोखाधड़ी, चुगलखोरी और गीबत (लोगों के राज दूसरों को बताना) से बचना होगा। रमज़ान हमे जितना ज्यादा हो सके गरीबों की मदद करें। रमज़ान का संदेश है कि, वो हमें एक दूसरे से प्रेम करना सिखाता है, बड़ों की इज्जत और छोटों से स्नेह सिखाता है।

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