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राजस्थान में इन 2 हजार सरकारी कर्मचारियों की छिन सकती है नौकरी, दो जिलों में 58 की हो चुकी है पहचान

राजस्थान में करीब 2000 लिपिकों की नौकरी खतरे में हैं। सरकार ने साल 2017 में ही इनको बर्खास्त करने का आदेश दिया था, लेकिन अभी तक इस मामले को दबा के रखा गया।

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राजस्थान में 2 हजार क्लर्क की जा सकती है नौकरी (फोटो- एआई)

बीकानेर। बानसूर विधायक देवी सिंह शेखावत की ओर से विधानसभा में पूछे गए एक सवाल से यह खुलासा हुआ है कि अलवर की दो पंचायत समितियों में 9 व बीकानेर में 49 लिपिक ऐसे मिले हैं, जिन्होंने दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से कंप्यूटर की डिग्री हासिल की है। पंचायती राज विभाग के मुताबिक लिपिक की नौकरी के लिए यह डिग्री मान्य नहीं है।

बताया जा रहा है कि प्रदेश में ऐसे लिपिकों की संख्या करीब 2 हजार हो सकती है। अभी बाकी जिलों से जानकारी आना बाकी है। यदि अन्य जिलों से भी जवाब आ गया, तो सरकार को एक्शन लेना होगा। सरकार खुद ही लिपिक भर्ती की जांच राज्य व जिला स्तर पर करवा रही है।

विधायक ने विधानसभा में पूछे ये सवाल

जनवरी में विधानसभा में बानसूर विधायक देवी सिंह शेखावत की और से यह प्रश्न पूछा गया था कि राज्य में पंचायती राज लिपिक भर्ती-2013 के तहत अब तक ऐसे कितने लिपिक विश्वविद्यालयों में दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से कंप्यूटर प्रमाण पत्र हासिल किए हैं।

सरकार ने 2017 में नौकरी से हटाने के दिए थे आदेश

शेखावत ने यह भी पूछा कि सरकार की ओर से इन्हें वर्ष 2017 में बर्खास्त करने के आदेश दिए थे, उसकी पालना अब तक क्यों नहीं हुई? पालना नहीं करने वालों पर क्या कार्रवाई हुई? यह प्रश्न पूछने के बाद पूरे राजस्थान में फर्जी लिपिकों में हड़कंप मच गया।

अलवर में 60 लिपिकों की जा सकती है नौकरी

बीकानेर जिले में 49 लिपिक ऐसे मिले है जिन्होंने दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से कंप्यूटर डिग्री हासिल की है। अलवर में अभी तक पंचायत समिति गोविंदगढ़ और बहरोड़ में 9 लिपिकों की जानकारी मिली है, जो दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से कंप्यूटर प्रमाण पत्र लिए हैं। अभी जिले की 14 पंचायत समितियों से सूचना आना बाकी है। ऐसे में अलवर का आंकड़ा भी 60 से ऊपर पहुंच सकता है।

इस तरह दबाए बर्खास्तगी के आदेश

राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला देते हुए पहले वर्ष 2017 में और फिर 2018 में एक परिपत्र जारी किया, जिसके तहत इन सभी दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से कंप्यूटर प्रमाण पत्र लेने वालों को नौकरी से बर्खास्त करना था। लेकिन पंचायती राज विभाग ने इन आदेशों को दबा लिया और फर्जी लिपिक 10 साल तक नौकरी करते रहे।