
बीकानेर. राजस्थान के सांस्कृतिक वैभव का प्रतीक है घूमर। घूमर राजस्थान के प्राचीनतम नृत्यों में से एक है। यह राजस्थान का पारंपरिक लोक नृत्य है। इसका शताब्दियों पुराना इतिहास है। गोल घेरे में घूम-घूम कर नृत्य किए जाने के कारण यह ‘घूमर’ के रूप में प्रसिद्ध है। राजपूत राजघरानों में ‘घूमर’ का प्रचलन रहा है। जनानी डयोढ़ी में भी यह पुष्पित पल्लवलित हुआ है। यह नृत्य शादियों, त्योहारों और अन्य विशेष अवसरों पर किया जाता है। प्रदेश सहित देश और विदेश में इस नृत्य ने विशेष याति अर्जित की है। यह नृत्य मुख्य रूप से महिलाओं का नृत्य है, जिसमें महिलाएं राजस्थान की पारंपरिक वेशभूषा, आभूषणों से सज-धज कर विशेष हाव-भाव के साथ इस नृत्य को सिर पर घूंघट ओढ़कर करती हैं।
गोल्ड जुबली उत्सव में हुआ घूमर
राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान बीकानेर के वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी डॉ. नितिन गोयल के अनुसार, बीकानेर रियासत के महाराजा गंगासिंह के शासन काल के 50 वर्ष (1887 - 1937) पूर्ण होने पर मनाए गए ‘बीकानेर गोल्डन जुबली’ उत्सव के अवसर पर पारंपरिक रूप से ‘घूमर’ नृत्य के आयोजन का उल्लेख मिलता है। इस पुस्तक में महाराजा गंगासिंह के शासनकाल के पचास वर्षों के राज्यकाल का वर्णन फोटो सहित है।
छोटे व बडे़ पर्दे पर पाया स्थान
‘घूमर’ नृत्य की प्रसिद्धि और ऐतिहासिकता का अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि इस नृत्य ने समय -समय पर टीवी पर प्रसारित हुए नाटक, हिन्दी फिल्मों में भी अपनी छाप छोड़ी है। प्रदेश में होने वाले हर छोटे-बड़े आयोजनों, अवसरों, शादियों, उत्सवों, पर्वों आदि पर घूमर का आयोजन होता है। वर्ष 2013 में हुए एक सर्वे में घूमर को विश्व का चौथा सबसे बड़ा ग्लोबल नृत्य का दर्जा मिला था।
सांस्कृतिक विकास का प्रतीक
लोक परंपरा और स्पष्ट लोक मानसिकता के भाव लिए घूमर नृत्य मनुष्य की जीवन पद्धति, उसके सौन्दर्य बोध, अनुशासन और सांस्कृतिक विकास का प्रतीक है। इस नृत्य में समाज को एकसूत्र में बांधने की क्षमता है। यह नृत्य नारी प्रधान है और इसका इतिहास शताब्दियों पुराना है। इस नृत्य को आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखा जाना आवश्यक है।
डॉ. नितिन गोयल, वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी, राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, बीकानेर।
Published on:
21 Nov 2025 11:19 pm
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