237 साल पहले ऊन व कंबलों का निर्यात अभिलेखागार विभाग के निदेशक डॉ. नितिन गोयल के अनुसार अभिलेखागार में संरक्षित वर्ष 1787 की ऊन रे लुणकारा जगात री बही में उल्लेख मिलता है कि बीकानेर से ऊन तथा ऊन से बने कंबलों का निर्यात होता था। तत्समय रचित कागद बही, सावा बही, जगात बहियों से ज्ञात होता है कि रियासत काल में बीकानेर राज्य की ओर से बाजरा, मोठ, तिल, पगड़ी, मिश्री, तलवारें, मुल्तानी मिट्टी, नमक, साजी, पशु के रूप में भेड़, बकरी, ऊंट, ऊंट की खाल एवं पलाण मुख्य रूप से निर्यात किए जाते थे।
हींग, केसर, घोड़े, पान, रत्नों का होता था आयात रियासतकालीन बीकानेर की कागद बही वर्ष 1797 एवं कागद बही वर्ष 1814 से जानकारी मिलती है कि बीकानेर रियासत में प्रमुख रूप से घोड़े, गहने, रेशम के कपड़े, पीतल के बर्तन, हथियार, सूखे मेवे, चावल, तम्बाकू, नील, कागज, हींग, केसर, इत्र, पान, कालीमिर्च, रत्नों आदि का आयात किया जाता था।
मुल्तान, गुजरात, काबुल व मालवा से व्यापार निदेशक डॉ. गोयल के अनुसार सावा बही मण्डी सदर बीकानेर वर्ष 1750 से ज्ञात होता है कि बीकानेर के व्यापारियों का व्यवसाय क्षेत्र उस दौर में दूर-दूर तक प्रसारित था। गोपाल दास खत्री, भनव दास अरोड़ा जैसे बीकानेर के व्यापारियों ने पंजाब, गुजरात, मुल्तान, मालवा, काबुल आदि स्थानों पर लम्बी दूरी के व्यापार में सफल भागीदारी निभाई।
चूना, पत्थर व जिप्सम के लिए प्रसिद्ध बीकानेर रियासत में खनिज खनन व इनसे निकला चूना, पत्थर, मुल्तानी मिट्टी आदि प्रसिद्ध रहे। डॉ. गोयल के अनुसार सावा बही खजानादेसर वर्ष 1767 से ज्ञात होता है कि घटियाली से तांबा निकलता था। अच्छी गुणवत्ता का चूना पत्थर चूरू, राजगढ़, रेणी सुजानगढ़ से मिलता था। पत्थर की चौखट के लिए बीदासर एवं सुजानगढ़ प्रसिद्ध थे। बीकानेर के दुलमेरा से निकलने वाले लाल पत्थर की मांग चूरू एवं शेखावटी क्षेत्र में थी। जिप्सम राजगढ़ क्षेत्र में पाया जाता था।
टॉपिक एक्सपर्ट – उपज-उत्पाद का होता था आयात-निर्यात बीकानेर रियासत से लम्बी दूरी के व्यापारिक मार्ग गुजरते थे। दिल्ली, हांसी, हिंसार, बीकानेर से मुल्तान होते हुए काबुल तक व्यापारिक मार्ग जाता था। मालवा से आने वाला व्यापारिक मार्ग बीकानेर, जैसलमेंर, कराची के मार्ग से जुड़ता था। व्यापार में चिलका डाक, माल का बीमा, हुंडावन आदि उन्नत तरीकों का प्रचलन था। बीकानेर रियासत के व्यापारिक घराने दूरस्थ स्थानों तक अपने व्यापार के प्रसार में संलग्न थे। चूरू के पोद्दारों की हुंडी अमृतसर, लाहौर और मिर्जापुर से आगे तक मान्य थी। बीकानेर रियासत की रामपुरिया रेकॉर्ड श्रृंखला मे व्यापारिक गतिविधियों से संबंधित जानकारी संधारित है। मोडी भाषा की रचित इन बहियों में रियासतकाल के समय की व्यापारिक गतिविधियां, लंबी दूरी के व्यापारिक मार्ग, आयात-निर्यात होने वाली वस्तुओं और व्यापारिक वर्गों की बहुतायात जानकारी मिलती है।
डॉ. नितिन गोयल निदेशक, राजस्थान राज्य अभिलेखागार, बीकानेर।