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बीकानेर। यहां तीन-चार दशक पहले तक दुल्हन के लिए चांदी से कपड़े पर कढ़ाई कर लहंगा तैयार करवा कर पहनने की परम्परा रही है। कई परिवारों में पीढ़ी दर पीढ़ी यह पोशाक बेटी के लिए शादी में उपयोग लेने की चल रही है। हालांकि चांदी के बढ़ते दाम और इसे तैयार करने वाले कारीगर अब उपलब्ध नहीं रहने से यह परम्परा आगे नहीं बढ़ पा रही है। दो दिन पहले एक परिवार में दुल्हन के चांदी की पोशाक पहनने से इस परिवार में चालीस साल पुरानी चल रही परंपरा की चमक फिर देखने को मिली।
यहां अंबेडकर कॉलोनी निवासी रामनिवास कुमावत की बेटी मंजू ने 12 दिसम्बर को शादी में चांदी के तार की कढ़ाई वाली विशेष पोशाक पहनी। मंजू ने बताया कि शादी के लिए कपड़ों की तैयारी के दौरान मां ग्यारसी देवी की चालीस साल पुरानी विवाह की ड्रेस देखी। परिवार के लोगों ने पहले शादी में बेटी के चांदी के तार की कढ़ाई से तैयार विशेष पोशाक पहनने की परम्परा के बारे में बताया। इसके बाद मंजू ने भी चांदी की पोशाक पहनने का निर्णय कर लिया। मां की चांदी से बने लहंगे की जगह नए रूप में राजपूती पोशाक तैयार कराने का प्रस्ताव पिता के सामने रखा। पिता भी अपनी लाडो के लिए ऐसी ड्रेस बनवाने के लिए तैयार हो गए। हालांकि पुरानी ड्रेस की चांदी का ही उपयोग किया गया है।
चूंकि पहले से चांदी का उपयोग कर बनी ड्रेस उनके पास थी, ऐसे में उसी तर्ज पर ड्रेस बनवाने के लिए टेलर की खोज की गई। कारीगर से चांदी की तार तैयार करवा कर उससे कपड़े पर कढ़ाई कराई गई। करीब डेढ़ महीने में यह ड्रेस तैयार हुई। मंजू जब शादी में यह पोशाक पहन कर मंडप में पहुंची तो देखने वालों की आंखें चांदी की चमक से चौंधिया गई। इस राजपूती पोशाक की हर कोई तारीफ किए बिना नहीं रह पाए।
इस पोशाक को तैयार करने में एक लाख 35 हजार रुपए की लागत आई। इसमें बीस हजार रुपए का कपड़ा खरीदा गया। सिलाई-कढ़ाई पर 35 हजार रुपए खर्च आया। करीब 400 ग्राम चांदी का उपयोग किया गया। इसकी बाजार कीमत इस समय 75 हजार रुपए के करीब है। इसके कुछ और राशि भी खर्च हुई। पोशाक का वजन करीब एक किलोग्राम है। कारीगर ने चांदी का धागा तैयार कर इसे बनाने में मूर्त रूप दिया। इसकी डिजाइन अनुराधा कुमावत ने तैयार की।
Published on:
15 Dec 2025 04:36 pm
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