
rajasthan election- Opposition leader Rameshwar Dudi
बीकानेर. महत्वाकांक्षाओं की टकराहट राजनीति का सबसे पुराना शगल रहा है। ये टकराव विपक्षी दलों के नेताओं के साथ भी चलता है, तो अपने दल में उभरते नेताओं के साथ भी। अपने दल में उभरते नेताओं के साथ ये टकराव कभी तेज तो कभी धीमी होती रहती है। लेकिन इस टकराहट के साथ राजनीति के आधुनिक दौर में अपनी सीट को सुरक्षित बनाने अथवा सुरक्षित सीट तलाशने का सिलसिला भी बढ़ता जा रहा है। हर दल के बड़े नेता अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए ऐसे दावं चलते है कि सामने वाला कुछ समझ ही नहीं पाता। राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए प्रदेश के सभी प्रमुख दल टिकट बांटने की प्रक्रिया के दौर से गुजर रहे है।
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जहां अपनी-अपनी परम्परागत सीटों से चुनाव लडऩे जा रहे है, वहीं कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट टोंक विधानसभा से भाग्य आजमाने जा रहे है। विधानसभा प्रतिपक्ष नेता रामेश्वर डूडी भी नोखा की परम्परागत सीट से तीसरी बार चुनावी अखाडे में उतर रहे है। पिछली बार नोखा से कन्हैयालाल झंवर को हराकर विधानसभा पंहुचें डूडी २००८ में इसी सीट से झंवर से हार भी चुके है। तब निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में झंवर ने डूडी को हराया था। डूडी अपनी नोखा सीट को सुरक्षित बनाना चाहते थे, सो लम्बे समय से झंवर को कांग्रेस में लाकर किसी दूसरी सीट से चुनाव लड़वाने के प्रयास में थे, ताकि उनके विधानसभा में पहुंचने की राह आसान हो सके।
पिछले चुनाव में नोखा से भाजपा ने भी अपना प्रत्याशी उतारा था, लेकिन वह पांच हजार वोट भी नहीं पा सका। डूडी की योजना थी कि झंवर किसी दूसरी सीट से चुनाव लडेगें तो उनके लिए नोखा सीट आसान हो जाएगी। डूडी अपनी योजना में सफल हो भी गए। अपने खिलाफ दो बार चुनाव लड़े झंवर को उन्होंने काग्रेस की पहली सूची आने से आधा घण्टे पहले पार्टी में शामिल कराकर बीकानेर पूर्व से प्रत्याशी बनवा दिया। इस खेल में डूडी ने झंवर से मेल तो कर लिया, लेकिन बीकानेर जिले की अनेक सीटों के समीकरण बिगाड दिए। टिकटों के संतुलन को साधने के प्रयास में झंवर का बीकानेर पूर्व सीट से लडऩा कांग्रेस में असंतोष के बीज बो गया है।
बीकानेर पूर्व सीट से कांग्रेस दावेदार को पड़ोस के बीकानेर पश्चिम भेजा गया। लिहाजा वहां से टिकट के प्रबल दावेदार रहे पूर्व प्रदेशाध्यक्ष बीडी कल्ला का टिकट कट गया। अव वहां दोनों सीटों पर बगावत के आसार बन रहे है। कल्ला का जिले की बाकी सीटों पर भी प्रभाव है और उनका विरोध कांग्रेस के लिए भारी पड़ सकता है। एक सीट बचाने के खेल ने बीकानेर जिले के राजनीतिक समीकरणों को गडबडा दिया है। प्रदेश की राजनीति के साथ-साथ कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति समझने वाले जानकारों का मानना है कि नोखा सीट को सुरक्षित बनाने का सियासी दावं कितना प्रभावी होगा, अभी कहना मुश्किल है।
Published on:
17 Nov 2018 10:48 am
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