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पंडित विश्वमोहन भट्ट ने मोहन वीणा वादन के साथ अपनी गायकी से भी श्रोताओं को रूबरू कराया

'ए मीटिंग बाय द रीवर' से केसरिया बालम तक खूब जमाया रंग  

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पंडित विश्वमोहन भट्ट ने मोहन वीणा वादन के साथ अपनी गायकी से भी श्रोताओं को रूबरू कराया

पंडित विश्वमोहन भट्ट ने मोहन वीणा वादन के साथ अपनी गायकी से भी श्रोताओं को रूबरू कराया

बीकानेर. मोहन वीणा पर राग जोग में निबद्ध धुन, तो दूसरी तरफ जाज की झंकार। ग्रेमी अवार्ड विजेता पंडित विश्वमोहन भट्ट ने मंगलवार को बाफना स्कूल में स्वर-ताल का ऐसा रंग जमाया कि श्रोता दो घंटे तक बंधे रहे। भट्ट ने अपने एल्बम 'ए मीटिंग बाय द रीवर' में किए शास्त्रीय व पाश्चात्य धुन के मिश्रण के प्रयोग को बखूबी सुनाया। मोहन वीणा वादन से पहचान रखने वाले श्रोताओं को मंगलवार को उन्होंने अपने गायन से भी रूबरू कराया। मौका था बाफना स्कूल की ओर से आयोजित संगीत संध्या का। इसमें पंडित विश्वमोहन भट्ट व उनके पुत्र सलिल भट्ट ने मोहन वीणा वादन से समां बांध दिया।

पिता-पुत्र ने मोहन वीणा पर जुगलबंदी की मुधर प्रस्तुति दी। उन्होंने मोहन वीणा के तार छेड़े तो श्रोता रोमांचित हो उठे। कलाकारों ने राग गावती से कार्यक्रम शुरू किया, तो परिसर तालियों से गूंज उठा। तबले पर हिमांशु महंत ने एेसी ताल मिलाई कि स्वर-ताल की सरिता में हर कोई हिलोरे लेने लगा। विश्वमोहन व सलिल भट्ट ने राग विहाग में दु्रत लय की प्रस्तुति देकर अपने घराने की छाप छोड़ी। कार्यक्रम के अंत में वंदेमातरम धुन सुनाकर जमकर दाद बटोरी।

वादन के साथ गायन
पं. विश्वमोहन भट्ट ने वीणा वादन के साथ 'केसरिया बालम आओ नी पधारो म्हारे देसÓ राजस्थानी गीत सुनाया।
इसके बाद गजल 'आज जाने की जिद ना करोÓ सुनाई तो स्कूल परिसर तालियों से गूंज उठा। पं. भट्ट ने मोहन वीणा के तारों को झंकार कर कोयल की मधुर आवाज निकाली।


ये रहे मौजूद
कार्यक्रम में आर्मी के ग्रुप सीओ मेजर जनरल ऑस्कर फनार्डिंस, जिला कलक्टर कुमार पाल गौतम, भिवंडी पुलिस अधीक्षक डॉ.अमनदीप कपूर, विधायक सिद्धि कुमारी, पूर्व न्यायाधीश माणक मोहता, उद्यमी राजकरण पूगलिया, शहर भाजपा अध्यक्ष अखिलेश प्रताप सिंह, सुरेन्द्र सिंह शेखावत आदि मौजूद रहे।


संस्कृति संरक्षण का प्रयास करें
बाफना स्कूल के सीईओ डॉ. पीएस वोहरा ने इस मौके पर कहा कि आज शिक्षण संस्थाओं का दायित्व बनता है कि वे अपनी संस्कृति का संरक्षण करने का प्रयास करें। इसके लिए इस तरह की शास्त्रीय संगीत संध्याएं होनी चाहिए, ताकि संस्कृति को बचाएं रखने का सकारात्मक संदेश जाए। साथ ही युवा पीढ़ी में अपनी संस्कृति को जानने, परखने की ललक बढ़े। पढ़ाई के साथ ही यह भी जरूरी है।