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दूसरों के गुणों को ग्रहण कर बनो एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी – जैन मुनि पंथक

जैन मुनि पंथक का प्रवचन

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Jain Muni Panthak

दूसरों के गुणों को ग्रहण कर बनो एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी - जैन मुनि पंथक

बिलासपुर. जिसको भी धर्म मार्गानुसारी यानी कि धर्म की राह पर आगे बढऩा है उनमें गुण ग्रहण करने की जानकारी और उसका किस तरह से आचरण करना है यह अत्यंत जरूरी है। क्योंकि सभी व्यक्ति सर्वगुण संपन्न नहीं होता। सभी में एक ही प्रकार का गुण या अवगुण भी हो सकता है, तो हम में कोई गुण नहीं है और किसी अन्य में ऐसा गुण हो तब हमें उससे वह गुण ग्रहण कर लेना चाहिए। क्योंकि सामान्य दिखने वाले आदमी के पास से भी कई गुण मिल सकता है। बस उसे पहचानने की आवश्यकता है। यह बातें बुधवार की सुबह जैन मुनि पंथक ने प्रवचन के दौरान श्रावक-श्राविकाओं से कही।

टिकरापारा स्थित गुजराती जैन समाज भवन में जैन मुनि पंथक ने दूसरों से अच्छा गुण ग्रहण करने के विषय में कहा। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि एक बार एक न्यूज़ रिपोर्टर एक नई बिल्डिंग बन रही थी वहां गया और वहां एक मजदूरी करने वाले से पूछा तुम यहां क्या काम करते हो और तुम्हें यह काम करने में कैसा लगता है तो उसने जवाब दिया कि मैं ट्रक में से ईट को उठाकर जमीन पर जमाता हूं, गुलाम जैसा काम करता हूं पगार, पैसा भी कम मिलता है और जिंदगी बेकार सी चल रही है। ऐसा ही वहां एक और व्यक्ति कार्य कर रहा था रिपोर्टर ने उससे भी यही सवाल पूछा तो उस आदमी ने कहा कि मैं बहुत ही नसीब वाला हूं क्योंकि मेरे द्वारा इस बिल्डिंग की सुंदरता बढ़ाने वाला और अगत्य का जैसे एक आर्किटेक्ट की एक अंश बनने का काम कर रहा हूं और एक मामूली सी ईट को एक सुंदर सुहावनी वस्तु बनाने का काम से मैं जुटा हूं। अब आप देखो कि काम एक ही प्रकार का है किंतु दृष्टिकोण अलग-अलग है एक का दृष्टिकोण आर्डिनरी है और दूसरे का एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी संसार में ऐसे कई काम एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी होते हैं इन गुणों को हम कितना ग्रहण करते हैं या अपने ऊपर है कोई भी व्यक्ति अपने काम को छोटा ना समझे और अपने काम से शर्मिदा ना हो बल्कि उस काम को अपनी लगन से खुशी-खुशी करना चाहिए। जैन समाज के अमरेश जैन ने बताया कि मुनि के सुबह की गोचरी गांधी परिवार एवं दोपहर को आहार चर्या नीलम बेन मीठाणी परिवार को लाभ मिला।