
Bilaspur High Court: प्रदेश में प्राचार्य प्रमोशन का मामला एक बार फिर हाईकोर्ट पहुंच गया है। इस बार प्राचार्य बनने के लिए बीएड की डिग्री अनिवार्य करने की मांग की गई है। वहीं, प्राचार्य पदोन्नति फोरम की तरफ से इस मामले में हस्तक्षेप याचिका दायर की गई है, जिसमें प्रशासनिक पद होने के कारण प्राचार्य के लिए बीएड को जरूरी नहीं माना गया है।
लेक्चरर अखिलेश त्रिपाठी ने प्राचार्य प्रमोशन को लेकर अपने वकील के जरिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें कहा है कि जिस तरह से प्राइमरी स्कूल के शिक्षकों के लिए डीएलएड डिप्लोमा अनिवार्य है। उसी तरह हाई और हायर सेकेंडरी स्कूल शिक्षकों के लिए बीएड की डिग्री को अनिवार्य किया गया है।
ऐसे में प्राचार्य प्रमोशन के लिए भी बीएड डिग्री को अनिवार्य किया जाए। याचिका में बताया गया है कि शिक्षकों की भर्ती के लिए न्यूनतम योग्यता राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद ने तय की है। लेक्चरर पद पर प्रमोशन के लिए बीएड की योग्यता भी एनसीटीई के तहत तय की गई है। इसी तरह प्राचार्य प्रमोशन के लिए भी योग्यता तय करने की मांग की गई है।
प्राचार्य पदोन्नति फोरम की ओर से व्यायाता लूनकरण ठाकुर ने अपने वकील के माध्यम से हस्तक्षेप याचिका दायर की है। इसमें बताया गया है कि प्राचार्य प्रशासनिक पद और व्यायाता शैक्षणिक पद है। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद 2014 के नोटिफिकेशन का हवाला देते हुए कहा गया है कि यह शर्तें प्राचार्यों के लिए अनिवार्य नहीं है।
हस्तक्षेपकर्ता का कहना है कि शिक्षा विभाग में ऐसे शिक्षक जो वर्षों से बीएड, बीटीआई और डीएलएड प्रशिक्षित हैं, उनको लेना होगा। 2019 एकीकृत भर्ती नियम बना है। आदिम जाति कल्याण विभाग में कार्यरत शिक्षकों का 2011 भर्ती नियम था। 2015 में शिक्षा विभाग में इनका संविलियन हो गया है। शिक्षाकर्मियों का भर्ती नियम अलग था।
Published on:
20 Mar 2025 10:35 am
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