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दिव्यांगता को जज्बा बना खुद की संवारी जिंदगी… ऐसे बच्चों को भी शिक्षा के लिए प्रेरित कर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ रहे जागेश्वर

दिव्यांग शब्द सुन मन में उस व्यक्ति के प्रति सहानुभूति जागृत होती है, पर शहर के जागेश्वर गोंड ऐसी शख्सियत हैं जो सहानुभूति नहीं हम जैसों के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं ।    

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दिव्यांगता को जज्बा बना खुद की संवारी जिंदगी...

दिव्यांगता को जज्बा बना खुद की संवारी जिंदगी...

शरद त्रिपाठी

दिव्यांग शब्द सुन मन में उस व्यक्ति के प्रति सहानुभूति जागृत होती है, पर शहर के जागेश्वर गोंड ऐसी शख्सियत हैं जो सहानुभूति नहीं हम जैसों के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं ।
दिव्यांगता को उन्होंने कमजोरी नहीं जज्बा बनाया और फिर स्वयं को शिक्षा से जोड़ अपनी जिंदगी संवारी। यही नहीं दिव्यांग बच्चों को समाज की मुख्यधारा से जोडऩे उन्हें लगातार शिक्षा के लिए प्रेरित कर रहे हैं। यहां तक कि बच्चों के अभिभावकों की काउंसलिंग कर उनके बच्चों का स्वयं स्कूलों में एडमिशन कराना, शैक्षिक गतिविधियों में आने वाले खर्च का स्वयं वहन करना उनकी हावी है। दिव्यांग बच्चों को वे इस कदर प्रेरित कर रहे की वह सक्षम या कमजोर नहीं बल्कि ईश्वर से वरदान प्राप्त व्यक्ति हैं। गुरुजी के नाम से मशहूर जागेश्वर कहना है कि नेत्रहीन होने के बाद भी उन्होंने इसे अपनी कमजोरी नहीं समझी। प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा शहर स्थित अंध मूक बधिर स्कूल में मिली। आगे की पढ़ाई के लिए भी अजमेर गए वहां 12वीं तक की पढ़ाई की। लौटकर मनेंद्रगढ़ में ग्रेजुएशन किया। इसी दौरान वर्ष 1985 में शहर में राज्य का इकलौता ब्रेल प्रेस खुला। यहां उन्हें बकायदा प्रूफ रीडर की नियुक्ति मिली। 37 वर्ष से इस पद पर पदस्थ रहते हुए हजारों किताबों की प्रूफ रीडिंग की है। पिछले वर्ष ब्रेल प्रेस को राष्ट्रपति सम्मान से नवाजा गया, इसमें इनकी अहम भूमिका रही।
दिव्यांगों का विवाह कर बसा रहे उनका घर बार
जागेश्वर न सिर्फ दिव्यांग बच्चों की शिक्षा दीक्षा पर ध्यान दे रहे बल्कि उनका घर बार बरसाने में भी
अहम भूमिका निभा रहे हैं आमतौर पर दिव्यांगों का विवाह मुश्किल होता है, ऐसे में जगह उनके लिए न सिर्फ विवाह योग्य लड़की खोज रहे बल्कि विवाह लगाने से लेकर उनकी पूरी शादी कराने में भूमिका निभा रहे हैं अब तक उन्होंने करीब आधा दर्जन लोगों का विवाह करा उनका घर बसाया है।
शास्त्र ज्ञान के साथ संगीत में भी माहिर
गुरु जी को शहर का सूरदास कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी उन्हें वेद पुराण से लेकर समस्त शास्त्रों का ज्ञान है यही नहीं तबला हारमोनियम सहित अन्य पारंपरिक वाद्य यंत्रों में भी वह माहिर हैं सुमधुर गायन भी करते हैं । नवधा गायन के लिए उनकी राज्य भर से डिमांड होती है।