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इसलिए प्रभावित है बच्चे
श्री शिशु भवन के संचालक व शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ. श्रीकांत गिरी ने बताया कि कोरोना वायरस का नया स्ट्रेन के वजह से बच्चों पर प्रभाव पड़ रहा है। मौजूदा लहर में कोरोना वायरस का डबल और ट्रिपल म्यूटेंट सामने आया है, जो ज्यादा तेजी से फैलता है। पहली लहर के बाद जनजीवन पटरी पर आने लगा तो लोगों ने एहतियात या सावधानियों की अनदेखी शुरू कर दी। बच्चे भी आपस में मिलने लगे, घर से बाहर निकले और खेलने लगे। जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ गया। वहीं कई विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों के लिए टीकाकरण ना होना भी एक वजह है। वैसे फिलहाल कहीं भी बच्चों का टीकाकरण शुरू नहीं हुआ है। जिले में 18 साल से अधिक आयु के लोगों का टीकाकरण अभियान शुरु किया है।
इस तरह के बच्चों में दिख रहे लक्षण
डॉ श्रीकांत गिरी ने बताया कि कोरोना संक्रमित बच्चों को तीन केटेगरी में बांट सकते है। इसमें 1 से लेकर 5 साल के बच्चों को दस्त लूज मोशन मोशन टाइप के लक्षण दिख रहे है। दूसरी कैटेगरी में 5 से 13 साल वाले बच्चे जिनमें कोरोना से बुखार, कमजोरी जैसे लक्षण दिख रहें है। वहीं तीसरी कैटेगरी में 14 से 18 बच्चों में बड़ों जैसे लक्षण दिख रहे है। इन्हें सर्दी खांसी, बुखार के लक्षण दिख रहे है। वहीं डॉ.गिरी ने बताया कि ज्यादा वजन जैसे 70 से 80 किलो वजन वाले बच्चों को सांस लेने में भी परेशानी हो रही है।
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जिले में बच्चों के इलाज के लिए केवल 80 बिस्तर वो भी निजी
जिले में कोरोना की दूसरी लहर के बीच 0 से लेकर 18 वर्ष तक के बच्चे कोरोना के चपेट में आ रहें है। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग इसके इलाज को लेकर अभी भी सचेत नहीं हुई है। सरकारी व्यवस्था की बात करें तो बिलासपुर में बच्चों के इलाज के लिए एक भी सरकारी बिस्तर नहीं है। लेकिन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि संभागीय कोविड अस्पताल में कुछ 12 से 15 वर्ष के बच्चों को भर्ती कर उपचार किए है। दो डॉक्टर भी है। इसके अलावा निजी दो अस्पताल स्टॉर चिल्ड्रन और श्री शिशु भवन में संक्रमित बच्चों के लिए 40-40 बिस्तर की व्यवस्था की गई है।
– शुरुआती लक्षण दिखते ही सावधान हो जाएं और डॉक्टर की सलाह लें।
– डॉक्टर की सलाह पर कोरोना टेस्ट करवाएं ताकि संक्रमण की पुष्टि हो सके।
– संक्रमण होने पर बच्चे को घर के अन्य सदस्यों से अलग रखें (क्वारंटीन करें)
– डॉक्टर की सलाह पर दवा लें और गुनगुने पानी से गरारे करें।
– शरीर में पानी की मात्रा कम ना होने दें, तरल पदार्थ देते रहें।
– बच्चे के ऑक्सीजन लेवल पर नजर रखें, स्तर कम होने पर अस्पताल में भर्ती कराएं।
– बिना डॉक्टरी सलाह के बच्चों को कोई भी दवाई ना दें।