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कोरोना के बाद पेमेंट गेटवे ने पीओएस को छोड़ा पीछे, 10 में 8 ट्रांजैक्शन पेमेंट गेटवेज से

Payment Gateway: नोटबंदी के बाद बढ़ा था पीओएस (POS) और पेटीएम (Paytm) जैसे पेमेंट गेटवे का चलन, अब सब्जी, कबाड़ी, चाय से लेकर मजदूरों (Workers) तक का भुगतान पेमेंट गेटवे (Payment Gateway) से

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बिलासपुर. Payment Gateway: नोटबंदी के बाद से पेमेंट गेटवे और डिजीटल ट्रांजैक्शन (Digital Transaction) का चलन तो बढ़ा था, लेकिन इसमें अभूतपूर्व वृद्धि कोरोना के बाद हुई है। बीते 2 सालों के आंकड़े कहते हैं, यह वृद्धि सौ फीसद से भी अधिक की है।

साल 2016 में जब नोटबंदी हुई तो पेटीएम सिगंल प्लेयर बनकर उभरा था, लेकिन अगले साल 2017 तक आते-आते बैंकों के डिजीटल प्लेफॉम्र्स के अलावा फोनपे, मोवीक्विक समेत आधा दर्जन से अधिक गेटवे स्पर्धा में आए।

कोरोना के बाद इनमें व्यापक वृद्धि देखी गई। नगदी लेन-देन में वायरस की रिस्क ने भी लोगों को इस तरफ बढ़ाया। वहीं नगदी जेब में रखने से मुक्ति भी इसका एक कारण रही। पेमेंट गेटवे का चलन इस तरह से हुआ कि अब यह पीओएस को पछाडऩे लगा है।


बिलासपुर में पेट्रोल पंप्स पर 50 फीसद तक गेटवेज से भुगतान
बिलासपुर में पेट्रोल पंप संघ के मुताबिक क्यूआर कोड, पीओएस मशीन (POS machine) के माध्यम से 10 में से 5-6 लोग भुगतान कर रहे हैं। पेट्रोप पंपों ने अलग-अलग पेमेंट गेटवे की सेवाएं ले रखी हैं। यह सबसे आसान तरीका है।


पीओएस घटा, क्यूआर कोड बढ़ा
पेट्रोल पंप पर भुगतान के लिए पीओएस की शुरुआत तो बहुत पहले हुई थी, लेकिन इसने रफ्तार 2016 के बाद से पकड़ी। लेकिन अब पीओएस और क्यूआर कोड के जरिए भुगतान की तुलना करें तो 10 ऑनलाइन ट्रांजैक्शन में से 2 से 3 ही पीओएस वाले होते हैं, शेष क्यूआर कोड के जरिए ही हो रहे हैं।

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सब्जी, चाय, कबाड़ी, मजदूरी तक पेमेंट गेटवे पर शिफ्ट
बिलासपुर, सरगुजा संभाग में काम कर रहे पेटीएम के रीजनल पदाधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, बीते 2 साल में सौ फीसद तक की वृद्धि हुई है। सरगुजा के भीतरी इलाकों तक में जहां भी नेटवर्क उपलब्ध है हम सेवाएं दे रहे हैं। वहीं जशपुर से भी डिमांड रहती है।

मोबाइल नंबर के जरिए ट्रांजैक्शन के कारण यह एक आसान तरीका है। रायगढ़ के सांरगढ़ जैसे दुर्गम क्षेत्रों में जहां से मजदूरों के मुकद्दम देशभर में मजदूर सप्लाई करते हैं, उन्होंने भी मोबाइल नंबर से ट्रांजैक्शन शुरू किया है।

मुंगेली के ग्रामीण अंचलों में जो मजदूर काम करने बाहर जाते हैं, उनके भुगतान काम करवाने वालों से वे कई बार सीधे घर में परिजनों को भेजते हैं। मजदूर ठेकेदार यानी मुकद्दमों को भी हमने कई बार बिजनेस ट्रांजैक्शन के खाते दिए हैं। वहीं अन्य गेटवेज फोनपे, मोविक्विक, गूगलपे, अमेजन आदि का चलन भी तेजी से बढ़ रहा है।


दिवाली, धनतेरस पर कम रीते एटीएम
बैंकर्स मामलों के जानकार ललित अग्रवाल के मुताबिक कुल लेन-देन का 60 से 70 फीसद तक लेन-देन डिजीटल और पेमेंट गेटवे पर शिफ्ट हो गया है। बैंकों के अपने प्लेटफॉर्मस, ई-बैंकिंग, पीओएस और अन्य गेटवेज पर ट्रांजैक्शन ने लेन-देन आसान किया है।

इसका असर दिवाली, धनतेरस जैसे त्योहारों पर जो दो-चार साल पहले एटीएम फीडिंग का काम बढ़ जाता था, वह अब उतना नहीं है। वित्तीय मामलों के जानकार देव प्रभाकर कहते हैं, दिवाली जैसे त्योहारों पर 10 में से 8 एटीएम बारंबार फीड करने पड़ते थे, लेकिन अब इनकी फीडिंग सामान्य दिनों से थोड़ी ही ज्यादा करना पड़ती है।

By बरुण सखाजी