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CG High Court: पॉक्सो एक्ट में सजा तभी जब आयु और रेप साबित हो, सहमति से संबन्ध पर सजा नहीं

CG High Court: हाईकोर्ट ने दोहराया कि जब तक वैध दस्तावेज या चिकित्सा राय उपलब्ध नहीं हो, तब तक पीड़िता की अल्पायु होने की बात स्वीकार नहीं की जा सकती।

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CG High Court:

पिता और दादी के हत्यारे को हाईकोर्ट ने किया बरी ( File Photo - patrika )

CG High Court: हाईकोर्ट ने रेप-अपहरण और पॉक्सो अधिनियम के तहत एक युवक की 10 साल की सजा को रद्द किया है। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता का बयान “स्टर्लिंग (विशुद्ध) क्वालिटी” का नहीं है। इसलिए आरोपी को केवल उसके बयान के आधार पर दोषी नहीं माना जा सकता। मामले में यह साबित भी नहीं हुआ कि संबन्ध जबरन बनाए गए। दुर्ग की फास्ट ट्रैक विशेष पॉक्सो कोर्ट द्वारा 31 अक्टूबर 2022 को सुनाई गई सजा के विरुद्ध हाईकोर्ट में अपील दायर की गई थी।

यह भी पढ़ें: हाईकोर्ट का अहम फैसला! सहमति से बने संबंध टूटने पर नहीं बनता बलात्कार का मामला, आरोपी दोषमुक्त

अपीलकर्ता ललेश उर्फ लाला बर्ले को निचली अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 366, 506बी तथा पॉक्सो अधिनियम की धाराओं 3 और 4 के तहत दोषी करार देते हुए 10 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी। आरोपों के अनुसार 25 मार्च 2019 को आरोपी ने कथित रूप से एक नाबालिग लड़की का अपहरण कर उसके साथ बलात्कार किया। पीड़िता की मां द्वारा उसी दिन पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई गई थी।

आरोपी पीड़िता को कई स्थानों पर ले गया और अंततःअपने नाना के घर में उसके साथ दुष्कर्म किया। न्यायालय ने कहा कि अभियोजन न तो पीड़िता की अल्पायु सिद्ध कर सका, न ही यह प्रमाणित कर सका कि सहमति के बिना यौन संबंध बनाए गए। हाईकोर्ट ने आरोपी को सभी आरोपों से बरी करते हुए यदि वह किसी अन्य मामले में हिरासत में न हो तो तत्काल रिहाई के निर्देश दिए।

पीड़िता के नाबालिग होने का प्रमाण नहीं

अपीलकर्ता की ओर से अधिवक्ता श्रीकांत कौशिक ने दलील दी कि पूरा मामला केवल पीड़िता के बयान पर आधारित है, इसके अलावा कोई साक्ष्य समर्थन में नहीं हैं। पीड़िता की आयु 18 वर्ष से कम होने का कोई निर्णायक प्रमाण नहीं है।पीड़िता की सहमति भी इस मामले में स्पष्ट रूप से सामने आई है, इसलिए आरोपी को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए।राज्य की ओर से अधिवक्ता शरद मिश्रा ने कहा कि पीड़िता ने स्पष्ट रूप से आरोपी के विरुद्ध आरोप लगाए हैं और निचली अदालत ने साक्ष्यों के आधार पर सही निर्णय दिया है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लेख

सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लेख करते हुए हाईकोर्ट ने दोहराया कि जब तक वैध दस्तावेज या चिकित्सा राय उपलब्ध नहीं हो, तब तक पीड़िता की अल्पायु होने की बात स्वीकार नहीं की जा सकती। पीड़िता के बयान पर भी सवाल उठाते हुए कोर्ट ने कहा कि उसने घटना के बाद आरोपी के परिवारजनों और नाते-रिश्तेदारों से मिलने के बावजूद किसी को घटना की जानकारी नहीं दी, जो संदेह को और गहरा करता है। कोई बाहरी चोट नहीं मिली। वहीं फॉरेंसिक रिपोर्ट में भी ऐसे प्रमाण नहीं मिले, जिससे रेप की पुष्टि हो।


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