CG High Court: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि यदि सहमति से बना संबंध बाद में टूट जाए या मनमुटाव हो जाए, तो उसे धारा 376 (बलात्कार) के आपराधिक मुकदमे का आधार नहीं बनाया जा सकता।
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की सिंगल बेंच ने यह आदेश पारित करते हुए आरोपी को बलात्कार के अपराध से दोषमुक्त कर दिया। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट) रायगढ़ ने 3 जुलाई 2021 को पारित आदेश में अभियुक्त को बलात्कार का दोषी ठहराया था।
इसे चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की गई। 3 मार्च 2020 को दर्ज एफआईआर में शिकायतकर्ता महिला ने आरोप लगाया था कि वह वर्ष 2008 से आरोपी के साथ कर रही थी। आरोपी ने उससे विवाह का झूठा वादा कर यौन संबंध बनाए और अंततः विवाह नहीं किया और वर्ष 2019 में उसे छोड़कर चला गया। पुलिस जांच के बाद 22 अक्टूबर 2020 को अभियुक्त के विरुद्ध धारा 376 के तहत प्रकरण प्रस्तुत किया गया, जिसके आधार पर सत्र न्यायालय ने आरोप तय किए।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ने हाईकोर्ट में तर्क रखे कि शिकायतकर्ता स्वेच्छा से आरोपी के साथ विवाहिता की तरह रह रही थी। शिकायतकर्ता के आधार कार्ड, राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र तथा रायपुर विकास प्राधिकरण के दस्तावेज प्रस्तुत किए, जिनमें उसने स्वयं को आरोपी की पत्नी बताया।
यह भी तर्क दिया गया कि महिला ने पहले महिला एवं बाल विकास रायगढ़ में 4 फरवरी 2020 को एक शिकायत देकर खुद को आरोपी की पत्नी बताते हुए वैवाहिक कर्तव्यों के निर्वहन की मांग की थी। इसके अतिरिक्त आरोपी द्वारा पुलिस महानिरीक्षक बिलासपुर को की गई शिकायत और अन्य दस्तावेजों से यह स्पष्ट होता है कि यह रिश्ता सहमति से बना था।
याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट के कुछ निर्णयों का हवाला भी दिया गया। इन निर्णयों में न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि सहमति से बने संबंधों को बाद में बलात्कार के आरोप में नहीं बदला जा सकता। रिकॉर्ड पर उपलब्ध तथ्यों और दस्तावेजों की समीक्षा करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि महिला अपनी सहमति से आरोपी के साथ पति-पत्नी की तरह रह रही थी और दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी सहमति से बने थे।
Published on:
24 Jun 2025 10:01 am