
Sprituality : जीवन में क्या है आत्मा का रहस्य ? मोह-ममता से क्या है इसका संबंध ? पंडित जी ने बताया राज
बिलासपुर. दसलक्षण महापर्व का नवम दिन ‘उत्तम आकिंचन्य’ धर्म के रूप में मनाया गया। आत्म कल्याण के इस महापर्व में प्रतिदिन बिलासपुर स्थित तीनों जैन मंदिर जी में प्रात: अभिषेक पूजन के साथ, श्री श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर से पधारे पं. आशीष शास्त्री द्वारा प्रात: सरकण्डा मंदिर जी में प्रवचन किया गया।
मोह-ममता के कारण ही द्वेष
पं. आशीष शास्त्री ने कहा कि मोह ममता के कारण यदि अन्य कोई व्यक्ति इस मोही आत्मा की प्रिय वस्तु की सहायता करता है तो उसको अच्छा समझता है, उसे अपना हित मानता है और जो इसकी प्रिय वस्तुओं को लेसमात्र भी हानि पहुंचाता है उसको अपना शत्रु समझकर उससे द्वेष करता है। इस तरह संसार का सारा झगड़ा संसार के अन्य पदार्थों को अपना मानने के कारण चल रहा है। अन्य पदार्थों की इसी ममता को परिग्रह कहते हैं।
दोपहर में क्रांतिनगर मंदिर जी में स्वाध्याय करवाया गया। सांध्यकालीन कार्यक्रम में क्रांतिनगर मंदिर जी में सामायिक कार्यक्रम के तत्पश्चात तीनों मंदिर में संगीतमय आरती, रात्रि में क्रांतिनगर जैन मंदिर के नायक हाल में धार्मिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। इस महापर्व पर समाज के प्रत्येक घरमें छोटी बड़ी तपस्या छोटे बच्चों से बड़े बुजुर्गों द्वारा किए जा रहे हैं।
यह भी पढ़ें : राजीव गांधी किसान न्याय योजना: 24.52 लाख किसानों को जारी हुई 1895 करोड़ रुपए की तीसरी किस्त, देखें
पंडित जी ने अपने प्रवचन में इस धर्म के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि आत्मा के अपने गुणों के सिवाय जगत में अपनी अन्य कोई भी वस्तु नहीं है, इस दृष्टि से आत्मा अकिंचन है। अकिंचन रूप आत्मा-परिणति को आकिंचन करते हैं। जीव मोहवश जगत के सब जड़ चेतन पदार्थों को अपनाता है। किसी के पिता, माता, भाई, बहन, पुत्र, पति, पत्नी, मित्र आदि के विविध सम्बंध जोड़कर ममता करता है। मकान, दूकान, सोना, चांदी, गाय, भैंस, घोड़ा, वस्त्र, बर्तन आदि वस्तुओं से प्रेम जोड़ता है। शरीर को तो अपनी वस्तु समझता ही है। यदि मन में पदार्थों के साथ मोह ममता है किन्तु दिगम्बर साधु है तो वह परिग्रही है।
Published on:
28 Sept 2023 03:37 pm
बड़ी खबरें
View Allबिलासपुर
छत्तीसगढ़
ट्रेंडिंग
