
बिलासपुर . समाज में लोगों को जागरूक करने का सशक्त माध्यम रंगमंच है। लेकिन रंगमंच का आयोजन काफी खर्चीला हो गया है। एक नाटक के मंच में लाख रुपए से अधिक खर्च होता है। रंगमंच के कलाकार आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहे है। सरकारें रंगमंच के कलाकारों के लिए अब तक कुछ नहीं की है। राज्य में रंगमंच कलाकारों के लिए ऐसा कोई प्लेटफार्म तैयार नहीं किया है। छत्तीसगढ़ राज्य गठन हुए 17 वर्ष हो गए पर अब तक प्रदेश में नाट्य अकादमी का गठन नहीं हुआ है। यह देश के इकलौता राज्य है,जहां पर नाटक अकादमी का गठन नहीं होना दुर्भाग्य की बात है। यहां संस्कृति विभाग के भरोसे सभी कला माध्यमों को संचालित किया जा रहा है।
भारतीय जननाट्य मंच के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य व शहर अध्यक्ष मधुकर गोरख ने रविवार को पत्रिका टॉपिक ऑफ द डे में रंगमच, कलाकारों, थियेटर पर बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भारत में रंगमंच की अपनी एक विरासत है। आजादी से पहले रंगमंच के माध्यम से लोगों में स्वतंत्रता आंदोलन के अलख जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सामाजिक अंतर्विरोधों को सामने लाने में रंगमंच एक बेहतर माध्यम है। गोरख ने बताया कि इप्टा से जुड़े कलाकारों ने सुप्रसिद्ध व्यग्ंयकार हरिशंकर परसाई और शहीद सफदर हाशमी के नाटक समरथ को नहीं दोष गोसाई ,हत्यारा नाटक का एक हजार से अधिक मंचन किया गया। इप्टा बिलासपुर की टीम ने नागपुर, शिमला, भोपाल, जबलपुर , रायपुर समेत अनेक शहरों में सुप्रसिद्ध नाटकों का सैकड़ों बार मंचन कर चुके है।
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इप्टा के शहर अध्यक्ष ने कहा कि सामाजिक विकृतियों को उजागर करने में नुक्कड़ नाटकों का मंचन सर्वाधिक कारगर है। यह सीधे जनमानस को जोड़ती है। लेकिन टीवी ने नुक्कड़ नाटकों और थियेटर को काफी हद का प्रभावित किया है। इससे रंगमंच के कलाकारों आर्थिक तंगहाली के दौर से गुजरना पड़ रहा है। राज्य सरकारें इन कलाकारों के माली हालत सुधारने के लिए प्रदेश स्तर पर कोई मुकम्मल योजनाएं अब तक तैयार नहीं की है। इससे सैकड़ों कलाकारों को समय पर इलाज नहीं मिल पा रहे है। पारिवारिक स्थिति तंगहाल दौर से गुजर रहीं है। राज्य सरकार ने पिछले डेढ़ दशक में रंगमंच कलाकारों के लिए कुछ नहीं किया। कलाकारों की माली हालत सुधारने के लिए राज्य सरकार को योजनाएं बनानी चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रदेश में सांस्कृतिक माफिया पैदा हो गए है। जो कलाकारों के नाम पर अपनी रोटी सेंकने में जुटे हुए है।
गोरख का मानना है कि देश के सुप्रसिद्ध कलाकार पृथ्वी राजकपूर की इन पंक्तियों को आधार मानते है जिसमें उन्होंने कहा कि मेरे लिए कला एक तड़प है,स्पन्दन है, जीवन है। मैं चाहता हूं कि कला जन-जीवन का दर्पण बने जिसमें वह अपने आपको देख सके, सॅवार सके, सुन्दर बन सके और उन्नति कर सके। अत: सच्ची कला वह है जो जीवन को सही मायने में चित्रित करे- कला समाज की अवस्था का प्रतिबिम्ब है।
Published on:
28 Jan 2018 02:27 pm
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