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इंडियन सिनेमा के 109 साल, जानिए किस फिल्म से हुई थी बॉलीवुड की शुरुआत

locationनई दिल्लीPublished: May 02, 2022 11:57:57 am

Submitted by:

Sneha Patsariya

इंडियन सिनेमा के 109 साल पूरे हो चुके हैं। 3 मई, 1913 को रिलीज हुई फिल्म राजा हरिश्चंद्र से शुरू हुआ सिनेमा का सफर आज तक जारी है।

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हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को दुनिया भर में बॉलीवुड के नाम से जाना जाता है। दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्में बनाने का रिकॉर्ड भारत के नाम है। सेंसर बोर्ड के मुताबिक भारत में हर साल करीब 20 से भी ज्यादा भाषाओं में 1500 से 2000 फिल्में बनाई जाती हैं। इंडियन सिनेमा के 109 साल पूरे हो चुके हैं। 3 मई, 1913 को रिलीज हुई फिल्म राजा हरिश्चंद्र से शुरू हुआ सिनेमा का सफर आज तक जारी है। 109 साल में भारतीय सिनेमा ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं। ‘आलम आरा’ फिल्म भारतीय सिनेमा इतिहास की एक खास फिल्म है। ‘आलम आरा’ के डायरेक्टर अर्देशीर इरानी थे। फिल्म में मास्टर विट्ठल और जुबैदा मुख्य भूमिका में थे। फिल्म का प्रसारण 1931 में हुआ था। सिनेमा के इस लंबे सफर में कई दिलचस्प पड़ाव आए। कई दौर तो बॉलीवुड के लिए मील का पत्थर साबित हुए। 109 सालों की ये जर्नी कैसी रही और दशक दर दशक इंडियन सिनेमा कैसे बदला? चलिए जानते हैं …
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बॉलीवुड की शुरुआत

भारतीय सिनेमा के पिता दादासाहेब फाल्के ने भारत की पहली लंबी फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ बनाई थी, जो सन् 1913 में प्रदर्शित हुई। मूक फिल्म (ध्वनिरहित) होने के बावजूद, इसे व्यावसायिक सफलता मिली। दादा साहब केवल निर्माता नहीं थे, बल्कि निर्देशक, लेखक, कैमरामैन, संपादक, मेकअप कलाकार और कला निर्देशक भी थे। भारतीय सिनेमा की पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ थी, जिसे 1914 में लंदन में प्रदर्शित किया गया था। हालाँकि, भारतीय सिनेमा के सबसे पहले प्रभावशाली व्यक्तित्व दादासाहेब फाल्के ने 1913 से 1918 तक 23 फिल्मों का निर्माण और संचालन किया, भारतीय फिल्म उद्योग की प्रारंभिक वृद्धि हॉलीवुड की तुलना में तेज नहीं थी। 1920 के दशक की शुरुआत में कई नई फिल्म निर्माण करने वाली कंपनियां उभरकर समाने आई। 20 के दशक में महाभारत और रामायण पौराणिक और ऐतिहासिक तथ्यों और एपिसोड के आधार पर फिल्मों का बोलबाला रहा, लेकिन भारतीय दर्शकों ने हॉलीवुड की फिल्मों, विशेष रूप से एक्शन फिल्मों का स्वागत किया।
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टॉकीज की शुरुआत

अर्देशिर ईरानी द्वारा निर्मित ध्वनि सहित पहली ‘आलम आरा’ फिल्म थी, जो कि सन् 1931 में बाम्बे में प्रदर्शित हुई। यह भारत की पहली ध्वनि फिल्म थी। आलम आरा के प्रदर्शन ने भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक नए युग की शुरुआत की। फिरोज शाह ‘आलम आरा’ के पहले संगीत निर्देशक थे। 1931 में आलम आरा के लिए रिकॉर्ड किया गया पहला गीत ‘दे दे खुदा के नाम पर’ था। यह वाजिर मोहम्मद खान द्वारा गाया गया था। इसके बाद, कई निर्माण कंपनियों ने कई फिल्मों को रिलीज किया, जिसकी वजह से भारतीय सिनेमा में काफी वृद्धि हुई। 1927 में, 108 फिल्मों का निर्माण किया गया था, जबकि 1931 में 328 फिल्मों का निर्माण किया गया। इसी समय, एक बड़ा फिल्म हॉल भी निर्मित किया गया जिससे दर्शकों की संख्या में एक महत्वपूर्ण वृद्धि हुई। 1930 और 1940 के दौरान कई प्रख्यात फिल्म हस्तियों जैसे देवकी बोस, चेतन आनंद, एस.एस. वासन, नितिन बोस और कई अन्य प्रसिद्ध लोग को फिल्मी परदे पर उतारा गया।
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रंगीन फिल्मों का दौर
बोलती फिल्में ब्लैक एंड वाइट हुआ करती थीं इसलिए पर्दे को रंगीन करने का जिम्मा उठाया डायरेक्टर मोती.जी गिदवानी ने, जिन्होंने 1937 आलम आरा के निर्देशक अर्देशिर ईरानी के साथ मिलकर पहली रंगीन फिल्म किसान कन्या बनाई। वैसे 1933 में आई वी शांताराम की शिरंध्री पहली रंगीन फिल्म हो सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। दरअसल, वी शांताराम ने फिल्म को रंगीन बनाने के लिए काफी जतन किए और इसे जर्मनी तक लेकर भी गए लेकिन बात नहीं बन सकी और शांताराम ये इतिहास रचने से चूक गए।
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बॉलीवुड – मसाला फिल्मों का खोजकर्ता

बॉलीवुड में मसाला फिल्मों का आगमन 1970 के दशक में हुआ। राजेश खन्ना, धर्मेंद्र, संजीव कुमार, हेमा मालिनी जैसे और कई अन्य अभिनेताओं की आभा ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध और मोहित किया। सबसे प्रमुख और सफल निदेशक, मनमोहन देसाई को कई लोगों ने मसाला फिल्मों के जनक (पिता) के रूप में माना था। मनमोहन देसाई के अनुसार, “मैं चाहता हूँ कि लोग अपने दुःख को भूल जाएं। मैं उन्हें उन सपने की दुनिया में ले जाना चाहता हूँ जहाँ कोई गरीबी नहीं है, जहाँ कोई भिखारी नहीं है, जहाँ भाग्य दयालु है और भगवान अपने समुदाय की देखभाल करने में व्यस्त हैं।” रमेश सिप्पी द्वारा निर्देशित फिल्म ‘शोले’ ने न केवल अंतर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित की, बल्कि अमिताभ बच्चन को ‘सुपरस्टार’ भी बनाया। 1980 के दशक में, कई महिला निर्देशकों जैसे मीरा नायर, अपर्णा सेन और अन्य लोगों ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। 1981 में फिल्म ‘उमराव जान’ में रेखा के असाधारण और शानदार प्रदर्शन को हम कैसे भूल सकते है।
1990 के दशक में शाहरुख खान, सलमान खान, माधुरी दीक्षित, आमिर खान, जूही चावला, चिरंजीवी और कई अन्य कलाकारों का एक नया दल फिल्मी दुनिया में दिखाई दिया। अभिनेताओं की इस नई शैली ने अपने प्रदर्शन को बढ़ाने के लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल किया, जिसने आगे बढ़कर भारतीय फिल्म उद्योग को उन्नत के शिखर पर पहुँचा दिया। वर्ष 2008 में, भारतीय फिल्म उद्योग के लिए भारतीय फिल्म स्लमडॉग मिलियनेयर में सर्वश्रेष्ठ संगीत के लिए ए. आर. रहमान को दो अकादमी पुरस्कार मिले। भारतीय सिनेमा अब भारत तक सीमित नहीं है और अब इसकी सराहना अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों द्वारा की जा रही है। बॉलीवुड बॉक्स ऑफिस संग्रह में विदेशी बाजार का योगदान काफी उल्लेखनीय है। 2013 में, भारत के नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में 30 फिल्म प्रोडक्शन कंपनियों को सूचीबद्ध किया गया था। मल्टीप्लेक्स भी कर प्रोत्साहनों के कारण संसेक्स भारत में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।
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कैसे आया ‘ब्लॉकबस्टर’ शब्द
फिल्मों की लोकप्रियता के बारे में बताते हुए अक्सर आपने ‘ब्लॉकबस्टर’ (Blockbuster) शब्द का प्रयोग देखा होगा लेकिन क्या आपको मालूम है ये शब्द आया कहां से? ब्लॉकबस्टर दो शब्दों ‘ब्लॉक’ और ‘बस्ट’ से मिलकर बना है। पहली बार इसका प्रयोग बड़े धमाके के तौर पर किया गया था जिसकी चपेट में बहुत से लोग आए हों। लेकिन अब लोकप्रिय और सफल फिल्मों के लिए ब्लाकबस्टर शब्द का उपयोग किया जाता है। हिंदी सिनेमा की कई ब्लॉकबस्टर फिल्में (Blockbuster Movies) हैं जैसे नरगिस दत्त की मदर इंडिया, आमिर खान की लगान, शाहरुख और काजोल की दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे।
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