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मुंबई में गुंडई करने वाला ये एक्टर बना बॉलीवुड का मशहूर विलेन

अजीत ने साल 1945 से अपने करियर की शुरुआत की 'मोना डार्लिंग', 'लिली डोंट भी सिली' और 'लॉयन' जैसे डॉयलॉग से चर्चित थे अजीत खान

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नई दिल्ली। जब भी बॉलीवुड में विलेन के किरदार का नाम का जिक्र किया जायेगा तो हर किसी के दिमाग में उस अभिनेता की छवि जरूर उभर कर आएगी, जो अक्सर हाथों में पिस्तौल थामे लोगों को डराता -धमकाता रहा है।....गले में एक छोटा सा रुमाल बांधे और लंबे फैले हुए बाल वाले मशहूर विलेन एक्टर अजीत की छवि को आज तक कोई नही भूल पाया है।
हिंदी सिनेमा जगत को पहला एक ऐसा विलेन मिला था जो काफी सौम्य और प्रभावशाली ढंग से अपने विलेन के किरदार को बाखूबी पर्दे पर उतार देता था। अजीत का असली नाम हामिद अली खान था। इन्हें बचपन से ही एक्टर बनने का शौक था। और इसी सपने को पूरा करने के लिए वो घर से भागकर मुंबई आ गए थे। अजीत पर अपने इस सपने का जुनून इस कदर सवार था कि उन्होंने इसके लिए अपनी किताबें तक बेच डाली थीं। 1940 में अजीत ने अपने फिल्मी सफर की शुरुआत की। शुरुआती दौर में उन्होंने कुछ फिल्मों में बतौर हीरो काम किया लेकिन वो फ्लॉप रहे। जितनी भी फिल्मों में अजीत हीरो के तौर पर नजर आए वो सभी कामयाब नहीं हो पाईं। लगातार फ्लॉप से निराश ना होकर अजीत ने फिल्मों में विलेन के रोल करने शुरू दिए।

अजीत की अवाज में वो दम था कि विलेन बनकर उन्होनें ऐसा स्टारडम पाया जो शायद ही किसी हीरो को मिला हो। उनके भारी अवाज के साथ कई डायलॉग और वन लाइनर जबरदस्त हिट हुए। आज भी जब अजीत के नाम का जिक्र होता है तो अनायास ही 'मोना डार्लिंग', 'लिली डोंट भी सिली' और 'लॉयन' जैसे डॉयलॉग जुबां पर आ जाते हैं। अजीत ने विलेन के किरदार की ऐसी परिभाषा गढ़ दी, जो हमेशा के लिए हिंदी सिनेमा के इतिहास में दर्ज हो गया है
अजीत के फिल्मी सफर की बात करे तो उन्हें यंहा तक पहुचने में कई बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। घर से भागकर भले ही वो मुंबई में अपना पैर जमाने के लिए आ गए। पर यहां आने पर अजीत ने ऐसे दिन देखे जिनका जिक्र को करने से हर किसी के रोगंटे खड़े हो जाते हैं। मुंबई आने के बाद अजीत का कोई ठोस ठिकाना नहीं था। काफी समय तक तो उन्हें सीमेंट की बनी पाइपों में रहना पड़ा जिन्हें नालों में इस्तेमाल किया जाता है। उन दिनों लोकल एरिया के गुंडे उन पाइपों में रहने वाले लोगों से भी हफ्ता वसूली करते थे और जो भी पैसे देता उसे ही उन पाइपों में रहने की इजाजत मिलती।

एक दिन एक लोकल गुंडे ने अजीत से भी पैसे वसूलने चाहे। अजीत ने मना कर दिया और उस लोकल गुंडे की जमकर धुनाई की। लेकिन अगले ही दिन अजीत खुद लोकल गुंडे बन गए। इसका असर ये हुआ कि उन्हें खाना-पीना मुफ्त में मिलने लगा और रहने का भी बंदोबस्त हो गया। डर की वजह से कोई भी उनसे पैसे नहीं लेता था।
अजीत ने 200 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। नास्तिक, मुगल ए आजम, नया दौर और मिलन जैसी फिल्मों को अजीत ने अपने से सजाया। 22 अक्टूबर 1998 में अजीत ने हैदराबाद में अंतिम सांस ली। बॉलीवुड में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।