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हॉलीवुड के सुपरहीरो के लिए खतरे की घंटी! हिंदी सिनेमा में तेजी से बदल रहा है ये ट्रेंड

Hollywood vs Bollywood Superheroes: हॉलीवुड के सुपरहीरो के लिए खतरे की घंटी है, एक्सपर्ट का कहना है कि अब वह दौर आ गया है जब भारत के अपने सुपरहीरो वैश्विक दर्शकों का मनोरंजन करने को तैयार हैं।

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मुंबई

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Saurabh Mall

Nov 21, 2025

Hollywood vs Bollywood Super Hero

हॉलीवुड वर्सेस बॉलीवुड सुपर हीरो (इमेज सोर्स: पत्रिका डॉट कॉम)

Hollywood vs Bollywood Superheroes Movie: भारतीय सिनेमा में सुपरहीरो जॉनर का सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा है। हॉलीवुड की तुलना में हमारी फिल्में अक्सर बड़े बजट और स्पेशल इफेक्ट्स की चुनौतियों से जूझती रहीं, लेकिन हाल के वर्षों में साउथ की फिल्में इस जॉनर को नई जान दे रही हैं।

कृष से हनुमान तक: भारतीय सुपरहीरो फिल्मों का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन

‘सुपरमैन’ (2025) ने भारत में शुरुआती अच्छा प्रदर्शन किया (ओपनिंग वीकेंड ₹28.3 करोड़, कुल ₹44.55 करोड़ नेट), लेकिन साउथ की ‘लोका: चैप्टर 1 - चंद्रा’ (2025) और ‘हनुमान’ (2024) जैसी फिल्मों ने छोटे बजट में भी बड़े संग्रह (लोका: ₹303.5 करोड़ वर्ल्डवाइड; हनुमान: ₹296 करोड़) से अपनी क्षमता साबित की। पुरानी बॉलीवुड फिल्में जैसे ‘कृष 3’ (2013) (₹244 करोड़ नेट) और ‘कोई मिल गया’ (2003) (₹47.2 करोड़ नेट) ने सफलता पाई, जबकि ‘मिस्टर इंडिया’ (1987) एक कल्ट क्लासिक बनी।

फिल्म रिलीज वर्ष बजट (करोड़) भारत नेट कलेक्शन (करोड़)

चुनौतियां और सफलताएं

बॉलीवुड में सुपरहीरो जॉनर की शुरुआत ‘मिस्टर इंडिया’ (1987) से हुई, जो सादगी और हास्य से हिट बनी। फिर ‘कोई मिल गया’ (2003) ने साइ-फाई एलिमेंट जोड़कर ₹47 करोड़ कमाए, जो उस समय बड़ी सफलता थी। ‘भावेश जोशी सुपरहीरो’ (2018) कल्ट बनी, ‘शक्तिमान’ फिल्म प्रोजेक्ट अभी कागजों में अटका है। ‘हनुमान’ और ‘लोका: चैप्टर 1 - चंद्रा’ ने कम बजट में कमाई के नए रिकॉर्ड बनाए हैं। ये फिल्में साबित करती हैं कि भारतीय मिथकों से प्रेरित कहानियां (हनुमान, लोकल सुपरहीरो) दर्शकों को जोड़ती हैं। हाल के वर्षों में सुपरहीरो जॉनर में भारतीय फिल्में VFX पर भरोसा कर रही हैं, लेकिन सफलता कहानी और कल्चरल रूट्स पर निर्भर करती है।

एक्सपर्ट टिप्पणी: आनंद पंडित, प्रसिद्ध फिल्म निर्माता

जब हम सुपरहीरो की बात करते हैं, तो हमारा दिमाग अपने आप हॉलीवुड की सिनेमाई शब्दावली की ओर चला जाता है। लेकिन भारत में तो हमारे मिथक, महाकाव्य, पुराण और लोककथाओं में हमेशा से ही अलौकिक और अतिमानवीय शक्तियों वाले नायक रहे हैं। ऋषि-मुनि जिनके पास अपार शक्तियां थीं, देवता जो पांचों तत्वों को नियंत्रित कर सकते थे और सृष्टि की रचना, पालन या संहार कर सकते थे, और हनुमान जी जो उड़ सकते थे और एक हाथ पर पूरा पर्वत उठा लेते थे – हमारे संस्कृति में सुपरहीरो की कोई कमी कभी नहीं रही।

दरअसल दुनिया की हर प्राचीन सभ्यता में ऐसे आर्किटाइप्स मौजूद हैं। ग्रीक मिथकों में भी जीउस, एथेना, अपोलो जैसे देवी-देवता मानव मन की विभिन्न प्रवृत्तियों के प्रतीक हैं। मेरा कहना बहुत साधारण है– सुपरहीरो की खोज हॉलीवुड या कॉमिक बुक लेखकों ने नहीं की। ये कहानी कहने की परंपरा का हमेशा से हिस्सा रहे हैं।

भारतीय सिनेमा ने तो हमेशा ऐसे नायकों को सेलिब्रेट किया है जिनमें अतिमानवीय गुण दिखते हैं। 1913 की मौन फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ (दादासाहेब फाल्के निर्देशित) एक ऐसे राजा की कहानी थी जिनकी सत्यनिष्ठा इतनी अटल थी कि वे वचन निभाने के लिए कोई भी बलिदान देने को तैयार थे। शुक्र है, देवताओं ने हस्तक्षेप कर उनकी महिमा पुनःस्थापित कर दी।

हमारी ऐतिहासिक फिल्मों ने प्राचीन राजा-रानियों के साहस को उजागर किया। और अगर मुझसे पूछें तो सत्तर के दशक का ‘एंग्री यंग मैन’ भी एक बदला लेने वाला (एवेंजर) ही था। अस्सी के दशक में ‘मिस्टर इंडिया’ भी कमजोरों और मासूमों के लिए लड़ने वाला हीरो था।

यानि सुपरहीरो और सुपरहीरोइन का कॉन्सेप्ट हमारी कहानियों में हमेशा से अंतर्निहित रहा है। हम बस इसे आधुनिक रूप देते रहे हैं। 1988 में दूरदर्शन पर ‘कैप्टन व्योम’ (केतन मेहता निर्देशित), नब्बे के दशक में ‘शक्तिमान’, 2006 में ‘कृष’ फ्रेंचाइजी की शुरुआत, 2011 में ‘रा.वन’।

हाल के वर्षों में ‘भावेश जोशी सुपरहीरो’ (2018), ‘अ फ्लाइंग जट्ट’ (2016), और ‘मिन्नल मुरली’ (2021) जैसी फिल्में आईं। महिला सुपरहीरो की बात करें तो तीस के दशक में ‘हंटरवाली’ एक मास्क वाली बदला लेने वाली हीरोइन थीं। लेकिन ‘लोकाः चैप्टर 1: चंद्रा’ को मैं इस जॉनर की पहली ऐसी फिल्म मानता हूं जो एक ऐसा सिनेमाई यूनिवर्स रचती है जो पहले कभी नहीं देखा गया।

इस फिल्म के साथ हम एक नई जमीन पर कदम रख रहे हैं जहां विश्वस्तरीय तकनीकी कौशल का मिलन एक भारतीय कथा से हो रहा है और उसमें एक शक्तिशाली महिला बोनाफाइड सुपरहीरो की भूमिका में है। डोमिनिक अरुण और दुलकर सलमान ने इस स्टाइलिश थ्रिलर से नया कीर्तिमान गढ़ा है और कल्याणी प्रियदर्शन चंद्रा के रूप में पूरी तरह खुलकर आई हैं। मुझे पूरा यकीन है कि अब और भी निर्माता प्रेरणा लेंगे और नए-नए आकर्षक मल्टीवर्स बनाएंगे। ‘लोकाः’ को इस जॉनर की बाकी फिल्मों से अलग करने वाली बात यह भी है कि यह दुनिया और उसके मुद्दों को एक महिला की नजर से देखती है।

मैं यह देखकर बहुत उत्साहित हूं कि अब हम प्राचीन कथाओं को बताने के लिए कटिंग-एज एनिमेशन का इस्तेमाल कर रहे हैं। पहले ‘अर्जुन: द वॉरियर प्रिंस’ (2012), ‘चाहर साहिबजादे’ (2014), ‘रामायण: द एपिक’ (2010) जैसी फिल्में आईं और अब ‘महावतार नरसिंह’ ने पैन-इंडिया स्तर पर धमाकेदार सफलता हासिल की। इसी टीम के लोग अब परशुराम, रघुनंदन, द्वारकाधीश, कल्कि आदि के विश्व भी रचने जा रहे हैं।

मुझे लगता है कि जैसे-जैसे फिल्म निर्माण की तकनीक विकसित हो रही है, युवा फिल्मकार भी अपनी जड़ों को सेलिब्रेट करना चाहते हैं और अब वे विश्व स्तर के वीएफएक्स और प्रोडक्शन वैल्यू के साथ अनूठी भारतीय कहानियां दुनिया के सामने लाएंगे।

पीछे मुड़कर देखता हूं तो अमर चित्र कथा मुझे उन कहानियों का खजाना लगती है जिनमें ढेरों रोचक पौराणिक और ऐतिहासिक चरित्र हैं जिन्हें बड़े पर्दे पर जीवंत किया जा सकता है। अब हमारे पास आधुनिक ग्राफिक नॉवेल्स भी हैं जो एनिमेशन के साथ-साथ सिनेमाई रूपांतरण के लिए बेहतरीन सामग्री दे सकती हैं।

मुझे सचमुच लगता है कि अब वह दौर आ गया है जब भारत के अपने सुपरहीरो वैश्विक दर्शकों का मनोरंजन करने को तैयार हैं और वो भी ऐसे थीमैटिक सेटिंग्स में जो दुनिया ने पहले कभी नहीं देखे- विविध, जीवंत और पूरी तरह भारतीय।