
क्या सचमुच स्टेरॉयड ने छीनी अमजद खान की जिंदगी? (फोटो सोर्स: iMDB)
Amjad Khan Death Story: ‘अरे ओ सांभा… कितने आदमी थे’ यह सिर्फ एक लाइन नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा का आइकोनिक डायलॉग है। इस संवाद के साथ पर्दे पर जो चेहरा उभरा, उसने न केवल खौफ पैदा किया बल्कि एक ऐसे कलाकार को जन्म दिया, जिसकी अभिनय की गहराइयों को आज भी सिनेमा प्रेमी याद करते हैं। उस कलाकार का नाम है अमजद खान।
12 नवंबर 1940 को जन्मे अमजद खान ने 'शतरंज के खिलाड़ी', 'मुकद्दर का सिकंदर', 'याराना' और 'चमेली की शादी' जैसी कई शानदार फिल्मों में अभिनय किया। उनके पिता जयंत भी अभिनेता थे, और अमजद ने अभिनय की शुरुआत बचपन में ही कर दी थी। रंगमंच से फिल्मों तक, उन्होंने खलनायक को नई पहचान दी। 27 जुलाई 1992 को उनका निधन हो गया, लेकिन कैसे हुआ यह जानना जरूरी है।
साल 1986 की बात है। अमजद खान एक फिल्म की शूटिंग के लिए मुंबई से गोवा जा रहे थे, तभी रास्ते में उनकी कार का भयानक एक्सीडेंट हो गया। इस हादसे में उन्हें गंभीर चोटें आईं और कुछ समय के लिए वे कोमा में चले गए।
रिपोर्ट (IANS) के मुताबिक इस दौरान उन्हें स्टेरॉयड दिए गए जिसके कारण उनका वजन बढ़ता गया, जो उनके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हुआ। अंततः 27 जुलाई, 1992 को हृदय गति रुकने से उनका निधन हो गया। यह बात बहुत कम लोग जानते हैं।
उनकी अंतिम यात्रा में बॉलीवुड के तमाम दिग्गज शामिल हुए। उनकी शव यात्रा जब बांद्रा की गलियों से निकली, तो मानो पूरा हिंदी सिनेमा उनके सम्मान में सिर झुकाए खड़ा था।
आज के दौर में अमजद खान सिर्फ एक अभिनेता के रूप में नहीं, बल्कि एक युग के रूप में प्रतीत होते हैं, एक ऐसा युग जिसने विलेन को भी वही शोहरत दी जो हीरो को मिलती है। एक ऐसा अभिनेता जिसने स्क्रीन पर अपने भारी कद-काठी और गहरी आवाज से लोगों को डराया भी, हंसाया भी और सोचने पर मजबूर भी किया।
अमजद खान अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके संवाद, उनकी छवि और उनका अभिनय हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो गए हैं। भारतीय सिनेमा के सबसे महान खलनायकों में से एक होने के साथ-साथ, वह एक संवेदनशील अभिनेता, जिम्मेदार नेता और एक बेहतरीन इंसान थे।
साल 1972 में एक्टर ने शायला खान से विवाह किया, जो फेमस लेखक अख्तर उल इमान की बेटी थीं। उनके तीन संतानें, शादाब, अहलम और सिमाब हैं। शादाब खान ने भी पिता की राह पर चलने की कोशिश की, लेकिन अमजद खान जैसी छवि बना पाना शायद किसी के लिए संभव नहीं था।
1975 में आई रेमेश सिप्पी की फिल्म 'शोले' में गब्बर सिंह के किरदार ने उन्हें घर-घर में मशहूर कर दिया। दिलचस्प बात यह है कि इस किरदार के लिए उन्होंने 'अभिशप्त चंबल' नामक किताब पढ़ी थी ताकि वह असली डकैतों की मानसिकता को समझ सकें। गब्बर सिंह के रूप में वह भारतीय सिनेमा के पहले ऐसे विलेन बने, जिसने बुराई को ग्लैमर और शैली दी। एक ऐसा किरदार, जो खुद को बुरा मानता है और उस पर गर्व भी करता है।
'शोले' में उनके संवाद 'कितने आदमी थे?', 'जो डर गया समझो मर गया,' और 'तेरा क्या होगा कालिया' जैसे डायलॉग आज भी लोगों की जुबान पर हैं। गब्बर सिंह का किरदार इतना लोकप्रिय हुआ कि अमजद खान को बिस्किट जैसे प्रोडक्ट के विज्ञापन में भी उसी रूप में दिखाया गया। यह पहली बार था जब किसी विलेन को ब्रांड एंडोर्समेंट के लिए इस्तेमाल किया गया।
इसके अलावा उन्होंने 'याराना' और 'लावारिस' जैसी फिल्मों में पॉजिटिव किरदार निभाए, जबकि 'उत्सव' (1984) में वात्स्यायन के किरदार ने उनके अभिनय की बौद्धिक गहराई को उजागर किया। उनके हास्य अभिनय की मिसाल 'कुर्बानी', 'लव स्टोरी' और 'चमेली की शादी' जैसी फिल्मों में मिलती है, जहां उन्होंने दर्शकों को हंसी के साथ-साथ अपनी अदाकारी से हैरान किया।
1980 के दशक में उन्होंने 'चोर पुलिस' और 'अमीर आदमी गरीब आदमी' जैसी फिल्मों का निर्देशन भी किया, लेकिन निर्देशन में उन्हें वैसी सफलता नहीं मिली जैसी अभिनय में।
Published on:
26 Jul 2025 08:17 pm
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