
irfan khan
निर्देशक : होमी अदजानिया
सितारे : इरफान खाान, राधिका मदान, दीपक डोबरियाल, करीना कपूर, डिम्पल कपाडिय़ा, रणवीर शौरी, कीकू शारदा, पंकज त्रिपाठी और अन्य
लेखक : भावेश मंडालिया, गौरव शुक्ला, विनय सी और सारा बोदिनर
सिनेमैटोग्राफर : अनिल मेहता
संगीत : सचिन-जिगर और तनिष्क बागची
रन टाइम : 143 मिनट
रेटिंग : 3/5 स्टार
मनोरंजन और इमोशन से भरपूर 'अंग्रेजी मीडियम' दर्शकों को लुभाती है। पिता-पुत्री के रिश्तों के इर्द-गिर्द बुनी गई इस फिल्म में जीवन के कई रंग हैं। बेहतर डायलॉग और बेहतरीन एक्टिंग के कारण फिल्म पैसा वसूल है। फस्र्ट हाफ चुस्त-दुरुस्त है, लेकिन बाद में फिल्म बिखरने लगती है। लगता है जैसे दूसरे हाफ में कहानी के नाम पर राइटर के पास कुछ नहीं था। वे बिना सोचे-समझे कड़ी से कड़ी जोड़ते गए। नतीजतन यह सामान्य एंटरटेनर फिल्म बनकर रह गई। स्क्रिप्ट की कमजोरियों के बावजूद हर फ्रेम में इरफान, दीपक डोबरियाल और राधिका मदान की मौजूदगी फिल्म को संभाल लेती है। पिता-पुत्री के संबंधों के कई दृश्य दर्शकों की आंखें नम कर देते हैं।
कहानी
कहानी राजस्थान के एक शहर में रहने वाले व्यापारी चंपक बंसल (इरफान खान) और उसकी बेटी तारिका (राधिका मदान) की है। वह सिंगल फादर है, जो बेटी के सपनों को पूरा करने में जान लगा देता है। चंपक अपने चाचा के बेटे गोपी बंसल (दीपक डोबरियाल) से अपने पुरखों के नाम 'घसीटाराम हलवाई' को लेकर केस लड़ता है। तारिका पढ़ाई के लिए लंदन जाना चाहती है। चंपक पहले तैयार नहीं होता, लेकिन बाद में वह तारिका का साथ देता है। तारिका रात-दिन मेहनत करते हुए स्कूल की तरफ से लंदन जाकर पढ़ाई करने वाले तीन जनों में जगह बना लेती है। स्कूल के सालाना फंक्शन में चंपक गलती से जज की पोल खोल देता है, जो प्रिंसिपल का पति है। इससे गुस्साई प्रिंसिपल तारिका का फार्म फाड़ देती है। चंपक चुनौती देता है कि बेटी का लंदन में एडमिशन करवाकर रहेगा। रोज लडऩे वाले भाई साथ खड़े नजर आते हैँ। वे लंदन पहुंचते हैं और एडमिशन के लिए जद्दोजहद शुरू होती है। वे लंदन पुलिस में काम करने वाली नैना (करीना कपूर) और उसकी मां (डिंपल कपाडिय़ा) से टकराते हैं।
डायलॉग पंच
हल्के-फुल्के अंदाज में बोले गए डायलॉग बेहतर हैं। बेटी एक जगह पिता से कहती है- 'नॉक करके आना चाहिए था।' इसके अलावा 'मिस्टर बंसल, यहां की सड़कों को गंदा नहीं करते' जैसे सामान्य डायलॉग भी दर्शकों पर प्रभाव छोड़ते हैं।
डायरेक्शन
डायरेक्शन के मामले में फस्र्ट हाफ अच्छी तरह बनाया गया है। हर दृश्य सलीके से प्रस्तुत किया गया। दूसरे हाफ में फिल्म लॉजिक से दूर हो जाती है। एयरपोर्ट पर अंग्रेजी न आने के कारण अपराधी मान कर डिपोट करना बचकाना है। लंदन पहुंची बेटी और पिता के बीच दरार का आधार भी कमजोर है। अंत भी दर्शकों के गले नहीं उतरता।
एक्टिंग
हर किरदार ने अपना काम बखूबी किया है। इरफान, दीपक की जोड़ी दर्शकों को भाएगी। छोटे परदे से आई राधिका मदान की एक्टिंग अच्छी है।छोटी-छोटी भूमिकाओं में करीना कपूर, कीकू शारदा, डिंपल कपाडिय़ा, पंकज त्रिपाठी, रणवीर शौरी का काम भी ठीक-ठाक है।
क्यों देखें
पिता-पुत्री के संबंधों की कहानी कहीं आपकी आंखों को नम करेगी तो कहीं मन को आनंद से भरेगी। दो भाइयों का टकराव और प्यार भी मन छुएगा। फिल्म एक बार देखी जा सकती है।
Updated on:
13 Mar 2020 03:59 pm
Published on:
13 Mar 2020 03:57 pm
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