24 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

‘रूही’ का सॉन्ग ‘नदियों पार सजन का ठाणा’ ही नहीं, ये गाने भी हैं विदेशी धुनों से प्रेरित

इटली के पॉप ग्रुप शामुर के 'लेट द म्यूजिक प्ले' का देसी रीमिक्स मौलिकता से दूर होता जा रहा है हिन्दी फिल्मों का संगीत पुराने दौर के संगीतकार भी 'प्रेरित' रहे विलायती धुनों से

3 min read
Google source verification
janhvi_kapoor_nadiyon_paar_sajan_da_thana.png

-दिनेश ठाकुर

जाह्नवी कपूर ( Janhvi Kapoor ) की नई फिल्म 'रूही' ( Roohi Movie ) का गाना 'नदियों पार सजन का ठाणा' जारी हुआ है। यह इटली के पॉप ग्रुप शामुर के 2004 में धूम मचा चुके गाने 'लेट द म्यूजिक प्ले' का रीमिक्स संस्करण है। जिन्होंने मूल गाना नहीं सुना, इसके रीमिक्स के जंतर-मंतर की सैर कर रहे हैं। गायिका सोना महापात्रा ( Sona Mohapatra ) गाने पर तमतमाई हुई हैं। इधर गाना जारी हुआ, उधर ट्विटर पर सोना महापात्रा मुखर हुईं। मोहतरमा की नाराजगी का सबब यह है कि हिन्दी फिल्मों का संगीत मौलिकता से दूर होकर बार-बार रीमिक्स की पनाह क्यों ले रहा है। वह इस पर भी नाराज हैं कि शामुर के अच्छे-भले गाने का इस रीमिक्स ने बैंड बजा दिया। सोना महापात्रा की नाराजगी कुछ हद तक जायज है, लेकिन उन्हें शामुर के गाने को 'मौलिक' मानने की गलतफहमी से बाहर आ जाना चाहिए। शामुर ग्रुप में एक पंजाबी गायक शामिल है। इसलिए 'लेट द म्यूजिक प्ले' में राजेश खन्ना की 'दाग' के 'नी मैं यार मनाना नी' की धुन साफ पकड़ी जा सकती है। यह धुन लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने तैयार की थी। यानी मामला 'क्या जाने कब कहां से चुराई मेरी गजल/ उस शोख ने मुझी को सुनाई मेरी गजल' वाला है।

यह भी पढ़ें :सोनू सूद ने तैयार किया ब्लड बैंक ऐप, सीधे डोनर से जुड़ पाएंगे मरीज, ऐसे काम करेगा ऐप

मैक्सिको से आई 'जीवन के सफर में राही' की धुन
ऐसा भी नहीं है कि हिन्दी फिल्म संगीत इसी दौर में मौलिकता से दूर जा रहा है। विलायती धुनों पर हाथ मारने का सिलसिला पुराने जमाने से चल रहा है। इस शिकार में कई नामी संगीतकार शामिल रहे हैं। मैक्सिको के हैट डांस गीत से 'प्रेरणा' लेकर एस.डी. बर्मन ने 'जीवन के सफर में राही' (मुनीमजी) की धुन रची थी। एक पॉलिश गीत ने 'दिल तड़प-तड़पके कह रहा है' (मधुमती) की धुन बनाने में सलिल चौधरी की मदद की। ओ.पी. नैयर को डोरिस डे के 'परहेप्स परहेप्स परहेप्स' की धुन इतनी भायी कि इसे 'बाबूजी धीरे चलना' (आर-पार) में भारतीयों को सुनाई। इटली का लोकगीत 'टेरनटेला नेपोलेटाना' सुनिए, तो पता चलेगा कि 'आजा सनम मधुर चांदनी में हम' (चोरी-चारी) की धुन रचने से पहले शंकर-जयकिशन ने भी इसे जरूर सुना होगा। पहले मामला 'प्रेरणा' तक सीमित था। आर.डी. बर्मन और बप्पी लाहिड़ी 'नोट टू नोट, बीट टू बीट' विलायती गानों की धुनें उठाने लगे।

'से यू लव मी' बन गया 'महबूबा महबूबा'
आर.डी. बर्मन ने यूनानी गायक डेमिस रौसॉस के 'से यू लव मी' की धुन जस की तस 'महबूबा महबूबा' (शोले) में उतार दी। यही 'उस्तादी' बप्पी लाहिड़ी ने ब्रिटिश बैंड बगल्स के 'वीडियो किल्ड द रेडियो स्टार' पर 'कोई यहां नाचे-नाचे' (डिस्को डांसर) तैयार करने में दिखाई। राजेश रोशन को कभी हिन्दी फिल्मों का आखिरी मौलिक संगीतकार बताया जाता था। वह भी विलायती धुनों के मुरीद रहे हैं। उन्होंने पीटर, पॉल और मैरी के 'फाइव हंड्रेड माइल्स' की धुन पर 'जब कोई बात बिगड़ जाए' (जुर्म) तैयार किया, तो 'न बोले तुम न मैंने कुछ कहा' (बातों-बातों में) की धुन पैट्रिक सार्सफील्ड गिलमोर के 'जॉनी कम्स मार्चिंग होम' से उठाई। अनु मलिक, नदीम-श्रवण, आनंद-मिलिंद, जतिन-ललित, राम लक्ष्मण आदि भी हाथ की सफाई दिखाने में पीछे नहीं रहे।

यह भी पढ़ें :लाइव रेडियो शो में कॉलर ने पीएम मोदी की मां को दी गाली! कंगना ने यूं लगाई लताड़

साये भी उठकर चलने लगे
फिल्म संगीतकार एक-दूसरे की धुनों से भी 'प्रेरित' होते रहे हैं। सज्जाद हुसैन के 'ये हवा, ये रात, ये चांदनी' की कार्बन कॉपी मदनमोहन ने 'तुझे क्या सुनाऊं ए दिलरुबा' में पेश की। इसे सुनकर सज्जाद हुसैन ने कहा था, 'आजकल तो हमारे साये भी उठकर चलने लगे हैं।'