scriptलखनऊ की गलियां, किताबी किरदार,…और ऐसे रेखा ही बन गईं ‘उमराव जान’ | Know about how Rekha became Umrao Jaan | Patrika News

लखनऊ की गलियां, किताबी किरदार,…और ऐसे रेखा ही बन गईं ‘उमराव जान’

locationनई दिल्लीPublished: Nov 06, 2021 06:28:09 pm

Submitted by:

Archana Pandey

1981 में आई एक फ‍िल्‍म ने रेखा को एक नई पहचान दी, इस फ‍िल्‍म का नाम था उमराव जान। इस फिल्म ने हमेशा के लिए रेखा को अमर कर दिया।

Know about how Rekha became Umrao Jaan

Rekha and Umrao Jaan

नई दिल्ली: Rekha and Umrao Jaan: रेखा, बॉलीवुड की वो अदाकारा हैं जिसकी खूबसूरती के किस्‍से आज भी कहे और सुने जाते हैं। रेखा (Rekha) जब भी सार्वजनिक तौर पर नजर आती हैं, उनके हजारों मस्‍तानों के दिल मानो उन्‍हीं के ल‍िए धड़कने लगते हैं। सिल्‍क की साड़ी, आंखों में काजल, लाल लिपस्टिक, बिंदी, लंबी चोटी और उसमें लगा गजरा रेखा की पहचान है।
इस फिल्म ने दी रेखा को नई पहचान
वैसे तो रेखा ने अपने करियर की शुरुआत फ‍िल्‍म सावन भादो से की थी। इसके बाद सुनील दत्‍त की फिल्म ‘प्राण जाए पर वचन न जाए’ में नजर आईं थी। इस फिल्म में रेखा ने न्‍यूड सीन तक दिया था, जिसने उन्हें सेक्‍स सिंबल बना दिया।
वहीं, रेखा को कॉमसूत्र जैसी फ‍िल्‍में भी कर‍ियर के शुरुआत में करनी पड़ीं थी। उस वक्त कोई नहीं जानता था कि एक दिन ये एक्ट्रेस हिंदी सिनेमा की सबसे ज्‍यादा पसंद की जाने वाली संजीदा अदाकारा बनेगी। हालांकि रेखा को सेक्‍स डॉल की छवि से बाहर लाने का श्रेय महान डायरेक्‍टर ऋषिकेश मुखर्जी को जाता है। उन्होंने 1973 की नमक हराम, 1977 की आलाप और 1980 में आई फ‍िल्‍म खूबसूरत में ऋषिकेश मुखर्जी ने ही रेखा को लिया और उनके भीतर छिपी एक खूबसूरत औरत और कलाकार सबके सामने लाए।
किताबी किरदार ने कर दिया अमर
इसके बाद 1981 में एक फ‍िल्‍म आई जिसने रेखा को एक नई पहचान दी, इस फ‍िल्‍म का नाम था उमराव जान। इस फिल्म ने हमेशा के लिए रेखा को अमर कर दिया। सवाल यह कि उमराव जान कौन थीं? क्या वह कोई हकीकत थीं या काल्‍पनिक किरदार। इसके जवाब में दोनों ही बातों को पुख्‍ता करने वाले लोग हैं।
1857 में मिर्जा हादी रुस्‍वा ने एक किताब लिखी थी- उमराव जान अदा। इसी किरदार को डायरेक्‍टर मुजफ्फर अली ने पर्दे पर जीवित किया। कहा जाता है कि मुजफ्फर अली ने जब इस फ‍िल्‍म की योजना बनाई तो वह अपनी बेगम साहिबा सुभाषिनी के साथ रेखा की मां के पास पहुंचे। उन्‍होंने कहा कि वह उमराव जान फ‍िल्‍म बनाना चाहते हैं लेकिन फीस नहीं दे पाएंगे। रेखा जब घर आईं तो मां ने कहा कि तुम्‍हें मुजफ्फर की उमराव जान करनी है।
यह भी पढ़ें

किन्नरों की मंजूरी मिलने के बाद ही अपनी फिल्मों में गाना रखते थे राज कपूर, दिलचस्प है कहानी

रेखा जब कहानी पर बात करने को मुजफ्फर अली से मिलीं तो उन्‍होंने कहा कि मैं तुम्‍हें फीस तो नहीं दे पाऊंगा लेकिन इस फ‍िल्‍म से तुम्‍हें अमर कर दूंगा। कहानी सुनकर रेखा काफी देर उसके खुमार में रहीं और फ‍िल्‍म के ल‍िए तैयार हो गईं। फ‍िल्‍मों के जानकार राजकुमार केसवानी ने एक लेख में इस बात का जिक्र किया है।
बुर्का और लखनऊ की गलियां
वहीं, संगीतकार ख्‍याम साहब ने रेखा को फिल्म से जुड़े कुछ शेर और संगीत सुनाया। संगीत से भी रेखा काफी प्रभावित हुईं। शूटिंग लखनऊ में हुई और अपने रोल के होमवर्क के लिए रेखा बुर्का पहनकर लखनऊ की गलियों में घूमीं। यह फ‍िल्‍म हिंदी सिनेमा की ऐसी फ‍िल्‍म बनी, जिसका आज तक कोई मुकाबला नहीं है। जिसके कारण आज रेखा ही उमराव जान है और उमराव जान ही रेखा। इस फ‍िल्‍म के लिए रेखा को सर्वश्रेष्‍ठ एक्ट्रेस के तौर राष्ट्रीय फ‍िल्‍म पुरस्‍कार से सम्मानित किया गया था।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो