′औलाद′, ′एक ही रास्ता′, ′साधना′, ′धूल का फूल′, ′वचन’, दुश्मन′, ′अभिमान′ और ′संतान′ आदि हिट फिल्मों की कथा-पटकथा, संवाद लेखक पंडित जी का नाम फिल्मों के पोस्टर पर ‘पंडित मुखराम शर्मा की फिल्म’ लिखा कर छपता था। सिनेमाघरों में फिल्म आरम्भ होने पर ऐसे ही पंडित मुखराम शर्मा की फिल्म के साथ फ़िल्म का टाइटल लिखा जाता था।

959 में आई ′धूल का फूल′ यश चोपड़ा की बतौर निर्देशक पहली फिल्म थी। इसकी कथा-पटकथा और संवाद पंडितजी (Mukhram Sharma) ने लिखे थे। 60 के दशक में दक्षिण में बनी पारिवारिक हिन्दी फिल्मों को बहुत पसंद किया जाता था। पंडित मुखराम शर्मा ने वहां के प्रसिद्ध ′जेमिनी बैनर′ की ′घराना′, ′गृहस्थी′, ′प्यार किया तो डरना क्या′ और ′हमजोली′ जैसी हिट फिल्में लिखीं। एलवी प्रसाद के बैनर के लिए ′दादी मां′, ′जीने की राह′, ′मैं सुन्दर हूं′, ′राजा और रंक′ और एवीएम के लिये ′दो कलियां′ जैसी जुबली हिट फिल्में उन्हीं की कलम से निकली थीं। उन दिनों तक ′दादा साहब फाल्के′ पुरस्कार शुरू नहीं हुआ था और कला क्षेत्र में ′संगीत नाट्य अकादमी′ पुरस्कार की बड़ी प्रतिष्ठा थी। 1961 में तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें ′संगीत नाट्य अकादमी′ पुरस्कार से नवाजा।
1950 से 1970 तक उनके उल्लेखनीय पुरस्कारों में तीन फिल्मफेयर पुरस्कार भी थे, जो उन्हें फिल्म ′औलाद′, ′वचन′ और ′साधना′ के लिए मिले थे। पंडित मुखराम शर्मा (Mukhram Sharma) ने बॉलीवुड में लेखक के काम को प्रतिष्ठा दिलाई। उनकी लिखी हिट फिल्मों की बदौलत उनका नाम इतना प्रसिद्ध हो गया कि फिल्म के क्रेडिट में उसे प्रमुखता दिया जाने लगा। उनके नाम से दर्शक सिनेमाघर की ओर खिंचे चले आते थे। इतनी शोहरत पाने के बावजूद वह सादा जीवन और उच्च विचार में यकीन रखते थे। उन्होंने तय कर रखा था कि 70 साल की उम्र के बाद बॉलीवुड को अलविदा कह देंगे और 1980 में उन्होंने यही किया। आपको बता दें सन् 1961 में तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें संगीत नाटक एकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था।