
सभी को हंसाने एक्ट्रेस का दर्द में बीता जीवन, जानें एक्ट्रेस टुनटुन की दिलचस्प कहानी (इमेज सोर्स: IMDb)
Tuntun Birth Anniversary Special Story: हंसते-खिलखिलाते चेहरे के पीछे कितना बड़ा तूफान छिपा हो सकता है, यह किसी ने सोचा भी नहीं था। मनोरंजन की दुनिया में सभी को हंसा देने वाली इस एक्ट्रेस की जिंदगी असल में दर्द और अकेलेपन से भरी रही। बचपन में ही माता-पिता की हत्या, नौ साल की उम्र में भाई की हत्या और फिर रिश्तेदारों के घर नौकरानी की तरह जीवन… उनकी कहानी सिर्फ दुखों की दास्तान नहीं, बल्कि उस हिम्मत का सबूत है, जिसने उन्हें टूटने नहीं दिया। यह कहानी दिल दहला देती है, लेकिन साथ ही इंसानी जज्बे की सबसे बड़ी मिसाल भी पेश करती है। चलिए अब आपको उस एक्ट्रेस के बारे में बताते हैं।
हिंदी सिनेमा में कॉमेडी की बात हो और टुनटुन (Tuntun) का नाम न आए, ऐसा हो ही नहीं सकता। जी हां, हम बात कर रहे हैं, उमा देवी खत्री की। एक ऐसी एक्ट्रेस जिसने अपने जीवन में बहुत कष्ट सहे। 11 जुलाई 1923 को यूपी के अमरोहा में जन्मी उमा देवी सिर्फ ढाई साल की थीं, जब जमीन के विवाद में उनके माता-पिता की हत्या कर दी गई। नौ साल की उम्र में उनके भाई की भी हत्या कर दी गई। इसके बाद रिश्तेदारों ने उन्हें अपने पास तो रखा, लेकिन नौकरानी की तरह। पढ़ाई का मौका नहीं मिला, लेकिन संगीत उनका सच्चा साथी था।
किशोरावस्था में उनकी (Tuntun) मुलाकात अख्तर अब्बास काजी नाम के युवक से हुई, जिन्होंने उन्हें आगे बढ़ने का हौसला दिया। लेकिन 1947 में देश के बंटवारे के दौरान काजी पाकिस्तान चले गए और उमा देवी फिर अकेली रह गईं।
उमा देवी (Uma Devi) बिना किसी को बताए मुंबई आ गईं। वहां उनकी मुलाकात कुछ फिल्मी कलाकारों और निर्देशकों से हुई। आखिरकार उन्हें एक बड़ा मौका तब मिला, जब वह संगीतकार नौशाद के पास पहुंचीं। नौशाद उनकी हिम्मत और आवाज दोनों से प्रभावित हुए और उन्हें फिल्म 'दर्द' में गाने का मौका दिया। 1947 में रिलीज हुए इस फिल्म का गाना 'अफसाना लिख रही हूं' जबरदस्त हिट हुआ। उमा देवी (Uma Devi) रातोंरात एक मशहूर गायिका बन गईं। उनकी आवाज पाकिस्तान में बैठे अख्तर अब्बास काजी तक भी पहुंची, जिन्होंने मुंबई आकर उनसे शादी कर ली।
शादी के बाद उमा देवी (Uma Devi) ने गायकी छोड़ दी थी, लेकिन जब हालात बिगड़ने लगे, तो वो फिर से काम की तलाश में नौशाद साहब के पास पहुंचीं। तब नौशाद ने साफ कहा था कि अब तुम्हारी आवाज से ज्यादा तुम्हारा अंदाज पर्दे पर चमकेगा, इसलिए एक्टिंग करो। उमा देवी ने भी तुरंत हामी नहीं भरी। उन्होंने एक शर्त रखी कि पहली फिल्म वो सिर्फ दिलीप कुमार के साथ ही करेंगी।
संयोग देखिए, दिलीप कुमार की फिल्म ‘बाबुल’ में उन्हें मौका मिला। शूटिंग के दौरान उमा देवी एक सीन में फिसलकर गिर गईं। सब घबरा गए, लेकिन दिलीप कुमार ने माहौल हल्का करते हुए मजाक में कहा था कि “अरे, कोई इस टुन-टुन को उठाओ!” बस, उसी पल ‘उमा देवी’ हमेशा के लिए ‘टुनटुन’ बन गईं और हिंदी सिनेमा को उसकी पहली महिला कॉमेडियन मिल गई।
1992 में पति के निधन के बाद टुनटुन फिल्मों से दूर होती गईं। 24 नवंबर 2003 को वे दुनिया से विदा हो गईं, लेकिन हंसाने की उनकी खूबी आज भी अमर है। उन्होंने दर्द भरी जिंदगी जी, लेकिन करोड़ों चेहरों पर मुस्कान छोड़ गईं।
Published on:
23 Nov 2025 10:13 pm
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