scriptबेगम अख्तर से जगजीत सिंह तक के अजीज थे सुदर्शन फाकिर | Sudarshan Faakir was best friend from Begum Akhtar to Jagjeet Singh | Patrika News

बेगम अख्तर से जगजीत सिंह तक के अजीज थे सुदर्शन फाकिर

locationमुंबईPublished: Feb 18, 2021 11:34:43 pm

० हालात से अनमने, अकेले, लेकिन मीठा बोलने वाले शायर० गजल गायकी के दौर में हर गायक ने कलाम को दी आवाज० कुछ फिल्मों में भी किया गया रचनाओं का इस्तेमाल

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-दिनेश ठाकुर
सुदर्शन फाकिर को याद करते हुए सत्तर और अस्सी का दौर यादों में झिलमिला जाता है। जिंदगी की भागदौड़ तब भी आज की तरह थी। फिर भी ‘फुर्सत के रात-दिन’ का सुकून था। संगीत इस सुकून में अमृत घोलता था। सलीकेदार रचनाएं फिल्मी हों या गैर-फिल्मी, दिलो-दिमाग में उजाला बिखेरती थीं। गजलों की महारानी बेगम अख्तर की जादुई आवाज में उन्हीं दिनों सुदर्शन फाकिर की गजल ‘कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया/ और कुछ तल्खी-ए-हालात ने दिल तोड़ दिया/ हम तो समझे थे कि बरसात में बरसेगी शराब/ आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया’ घटाओं की तरह उभरी, बारिश की तरह छा गई। इस गजल के बाद फाकिर दुनियाभर के गजल-प्रेमियों में जाना-पहचाना नाम हो गए। हर गायक के लिए गोया उनका कलाम गाना अनिवार्य हो गया। मोहम्मद रफी, आशा भौसले से शोभा गुर्टू तक और जगजीत सिंह से सुधा मल्होत्रा तक उनके कलाम पर फिदा रहे। जगजीत सिंह ने सबसे ज्यादा गाया। जगजीत की तरह सुदर्शन फाकिर भी जालंधर के थे। जालंधर की दोस्ती दोनों ने मुम्बई पहुंचकर खूब निभाई।

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वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी..
गालिब की तरह सुदर्शन फाकिर का भी ‘अंदाजे-बयां और’ रहा। वह अपनी अलग दुनिया में सफर करने वाले शायर थे। हालात से अनमने, अकेले, लेकिन मीठा बोलने वाले शायर। वह आम जुबान में एहसास बुनते थे। ‘आप बीती’ को ‘जग बीती’ बनाने का हुनर जानते थे। उनके गीत, गजलों और नज्मों में हर किसी को अपने दिल की आवाज महसूस होती है। मसलन जगजीत सिंह और चित्रा सिंह की आवाज में उनकी बेहद मकबूल नज्म- ‘ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो/ भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी/ मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन/ वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी।’ यह नज्म हमें बचपन की यादों से जोड़ती है। उनकी एक दूसरी नज्म में अपने गांव-शहर से दूर होने का दर्द है- ‘एक प्यारा-सा गांव/ जिसमें पीपल की छांव/ छांव में आशियां था/ एक छोटा मकां था/ छोड़कर गांव को/ उस घनी छांव को/ शहर के हो गए हैं/ भीड़ में खो गए हैं।’ इसे राजेंद्र मेहता- नीना मेहता ने गाया था।

रिश्तों का सच टटोलती शायरी
शायरी सच की खोज है। ‘गहरे पानी पैठ’ से ही बात बनती है। सुदर्शन फाकिर की शायरी जिंदगी और रिश्तों के सच टटोलती है। यह सच कभी नज्म की शक्ल में सामने आता है, तो कभी गजलों में उजागर होता है। जगजीत-चित्रा की आवाज में उनकी एक नज्म है- ‘उस मोड़ से शुरू करें फिर ये जिंदगी/ हर शै जहां हसीन थी, हम तुम थे अजनबी।’ यह ‘सौ साल पहले मुझे तुमसे प्यार था, आज भी है और कल भी रहेगा’ की रूमानी कल्पनाओं से अलग रिश्तों में पैदा होने वाली ऊब की अभिव्यक्ति है। फाकिर की रूमानी रंगत भी थोड़ी हटकर है- ‘शायद मैं जिंदगी की सहर लेके आ गया/ कातिल को आज अपने ही घर लेके आ गया/ ताउम्र ढूंढता रहा मंजिल मैं इश्क की/ अंजाम ये कि गर्दे-सफर (यात्रा की धूल) लेके आ गया।’

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मेरे घर आना जिंदगी…
कुछ फिल्मों में भी सुदर्शन फाकिर की रचनाओं का इस्तेमाल हुआ। शर्मिला टैगोर और उत्तम कुमार की ‘दूरियां’ (1979) में उनकी दो रचनाएं ‘मेरे घर आना जिंदगी’ और ‘जिंदगी में जब तुम्हारे गम नहीं थे’ (भूपेंदर, अनुराधा पौडवाल) काफी लोकप्रिय हुई। इस फिल्म का संगीत जयदेव ने दिया था। राजेश खन्ना की ‘खुदाई’, स्मिता पाटिल की ‘रावण’ और फिरोज खान की ‘यलगार’ में भी उन्होंने गीत लिखे।

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