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सनी देओल-मनीषा की ‘Dushmani’ के 25 साल, शैली बदली और उड़ गए रंग

शेखर कपूर फिल्म अधूरी छोड़कर अलग हुए, निर्माता ने जैसे-तैसे पूरी की पटकथा के झोल के कारण धमाका नहीं कर सकी हिंसक प्रेम कहानी सिर्फ एक गाना 'बन्नो तेरी अंखियां सूरमेदानी' के लिए याद की जाती है

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-दिनेश ठाकुर
किसी रचनाकार की अधूरी रचना को क्या उसी की शैली में पूरा किया जा सकता है? राज खोसला की सस्पेंस फिल्म 'अनीता' का गीत 'तुम बिन जीवन कैसे बीता पूछो मेरे दिल से' अधूरा छोड़कर गीतकार राजा मेहंदी अली खान दुनिया से रुखसत हो गए। इसके बाकी अंतरे आनंद बक्षी ने इस खूबी से रचे कि पता नहीं चलता यह दो गीतकारों की रचना है। दूसरी तरफ 'मुगले-आजम' वाले के. आसिफ के इंतकाल से अधूरी पड़ी उनकी 'लव एंड गॉड' को के.सी. बोकाडिय़ा ने पूरा किया। इस फिल्म में पुरानी मखमल में टाट के नए पैबंद साफ महसूस हुए। हाल ही प्रदर्शन के रजत जयंती साल में प्रवेश करने वाली सनी देओल ( Sunny Deol ) और मनीषा कोइराला ( Manisha Koirala ) की 'दुश्मनी' के साथ भी यही मामला रहा। निर्देशक शेखर कपूर ( Shekhar Kapur ) यह फिल्म अधूरी छोड़कर अलग हो गए। निर्माता बंटी सूरमा ने जैसे-तैसे इसे पूरा कर सिनेमाघरों में उतारा। इसमें फिल्म निर्माण की दो अलग-अलग शैलियां साफ नजर आती हैं। पटकथा के झोल के कारण यह हिंसक प्रेम कहानी कारोबारी मैदान में कोई धमाका नहीं कर सकी। एक गाना 'बन्नो तेरी अंखियां सूरमेदानी' जरूर चला था। फिल्म में जैकी श्रॉफ, अनुपम खेर, दीप्ति नवल, मनोहर सिंह और रघुवीर यादव ने भी अहम किरदार अदा किए थे।

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मूडी फिल्मकार हैं शेखर कपूर
देव आनंद के भांजे शेखर कपूर मूडी फिल्मकार हैं। 'मासूम', 'मि. इंडिया' और 'बैंडिट क्वीन' जैसी कामयाब फिल्में बनाने के बावजूद निर्माताओं में उनको लेकर धारणा रही कि जाने कब मूड उखड़ जाए और वह फिल्म अधूरी छोड़कर अलग हो जाएं। धर्मेंद्र भी उनके मूड के झटके झेल चुके हैं। अपने छोटे बेटे बॉबी देओल की पहली फिल्म 'बरसात' वह शेखर कपूर से बनवा रहे थे। कई दिनों की शूटिंग के बाद शेखर कपूर 'बरसात' को बरसने लायक बनाने से पहले अलग हो गए। बाद में निर्देशक राजकुमार संतोषी ने यह फिल्म बनाई।

'जोशीले' भी अधूरी छोड़ दी थी
इससे पहले 'जोशीले' के साथ यही हुआ। शेखर कपूर ने यह फिल्म 'मासूम' के बाद शुरू की थी। उस दौर के बड़े सितारों की भीड़ जुटाई गई- सनी देओल, अनिल कपूर, श्रीदेवी, मीनाक्षी शेषाद्रि। इरादा 'शोले' जैसी फिल्म बनाने का था। काफी समय तक लेह, लद्दाख में शूटिंग चलती रही। इससे पहले कि फिल्म मुकम्मल होती, शेखर कपूर का मूड बदल गया। शूटिंग थम गई। दो-ढाई साल तक थमी रही। आखिरकार निर्माता सिब्ते हसन रिजवी ने फिल्म पूरी की। घाटे का सौदा रही, क्योंकि इसकी घटनाओं में तालमेल नजर नहीं आया। कुछ हिस्सों में यह 'मेरा गांव मेरा देश' जैसी लगती है, तो कुछ में सी ग्रेड की 'बिंदिया और बंदूक' हो जाती है। इसमें कोई शक नहीं कि दूसरे फिल्मकारों से शेखर कपूर की फिल्में काफी अलग होती हैं। वह जो फिल्म शुरू करेंगे, वह पूरी हो जाएगी, इसको लेकर जरूर शक के बादल मंडराते रहते हैं।

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'पानी' के लिए निर्माता की तलाश
दरअसल, ज्यादातर सृजनधर्मी फिल्मकार मूडी होते हैं। फिल्म इंडस्ट्री के ऐसे धन कुबेरों के साथ इनकी पटरी कम बैठ पाती है, जो खर्च से पहले आमदनी का हिसाब-किताब पक्का कर लेना चाहते हैं। शेखर कपूर के लिए ऐसा निर्माता तलाशना आसान नहीं है, जो उन्हें फिल्म बनाने की पूरी आजादी देकर पूंजी निवेश करे। इसीलिए वह 'पानी' नहीं बना पा रहे हैं। उन्होंने 2010 के कान्स फिल्म समारोह में यह फिल्म बनाने का ऐलान किया था। पहले ऋतिक रोशन और बाद में सुशांत सिंह राजपूत को लेकर 'पानी' बनने की खबरें आईं, लेकिन 11 साल बाद भी यह फिल्म शुरू नहीं हो सकी है। दुष्यंत कुमार का शेर है- 'यहां तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियां/ मुझे मालूम है पानी कहां ठहरा हुआ होगा।'