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याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में दलील दी थी कि उस एफआईआर में उसका नाम जांच के दौरान बाद में जोड़ा गया। इसके अलावा उसके पास से कोई हथियार बरामद नहीं हुआ था। अपर शासकीय अधिवक्ता ने जमानत याचिका का इस आधार पर विरोध किया कि यह एक ऐसा मामला है, जहां एक बेकाबू भीड़ ने पुलिस टीम पर हमला किया था और लोकेंद्र ने पुलिस अधिकारी की हत्या में प्रत्यक्ष भूमिका अदा की। बता दें कि दिसंबर 2018 में पुलिस निरीक्षक एसके सिंह के सिर में गोली मारी गई थी, जबकि पुलिस टीम ने हिंसक भीड़ से निपटने के दौरान एक प्रदर्शनकारी युवक की मौत हो गई थी। इस मामले की जांच के लिए गठित विशेष जांच टीम ने इस मामले में बजरंग दल, भाजपा और विहिप के नेताओं समेत 44 लोगों को आरोपी बनाया था और बाद में उन पर राजद्रोह के आरोप भी लगाए गए थे।